आस्था
*बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा क्यों की जाती है, जानिए महत्व और पूजा विधि*
बसंत पंचमी का दिन हिन्दू कैलेंडर में पंचमी तिथि को मनाया जाता है। जिस दिन पंचमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच में व्याप्त रहती है, उस दिन को ही सरस्वती पूजा के लिए सही माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर में सूर्योदय और दोपहर के मध्य के समय को पूर्वाह्न के नाम से भी जाना जाता है।
बसंत पंचमी के दिन किसी भी समय मां सरस्वती की पूजा की जा सकती है लेकिन पूर्वान्ह का समय पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है। सभी शिक्षा केंद्रों व विद्यालयों में पूर्वान्ह के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।
वसंत पंचमी का महत्व
भारतीय पंचांग में 6 ऋतुएं होती हैं। इनमें से बसंत को ‘ऋतुओं का राजा’ कहा जाता है। बसंत फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है। ऋतुराज बसंत का बहुत महत्व है। ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है।
इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ, आमों के पेड़ों पर आए फूल, चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है।
यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है। इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। इस ऋतु को काम बाण के लिए भी अनुकूल माना जाता है।
यदि हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक देखा जाए तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। यही कारण है कि यह त्योहार हिन्दुओं के लिए बहुत खास है। इस त्योहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं और इसके साथ ही वसंत मेले आदि का भी आयोजन किया जाता है।
वसंत पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा क्यों की जाती है?
सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्माजी ने मनुष्य और जीव-जंतु योनि की रचना की। इसी बीच उन्हें महसूस हुआ कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण सभी जगह सन्नाटा छाया रहता है। इस पर ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे 4 हाथों वाली एक सुंदर स्त्री, जिसके एक हाथ में वीणा थी तथा दूसरा हाथ वरमुद्रा में था तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी, प्रकट हुई।
ब्रह्माजी ने वीणावादन का अनुरोध किया जिस पर देवी ने वीणा का मधुर नाद किया। जिस पर संसार के समस्त जीव-जंतुओं में वाणी व जल धारा कोलाहल करने लगी तथा हवा सरसराहट करने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को ‘वाणी की देवी सरस्वती’ का नाम दिया।
मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी आदि कई नामों से भी जाना जाता है। ब्रह्माजी ने माता सरस्वती की उत्पत्ति वसंत पंचमी के दिन की थी, यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का जन्मदिन मानकर पूजा-अर्चना की जाती है।
सरस्वती व्रत की विधि
वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। प्रात:काल सभी दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के उपरांत मां भगवती सरस्वती की आराधना का प्रण लेना चाहिए। इसके बाद दिन के समय यानी पूर्वाह्न काल में स्नान आदि के बाद भगवान गणेशजी का ध्यान करना चाहिए।
स्कंद पुराण के अनुसार सफेद पुष्प, चंदन, श्वेत वस्त्रादि से देवी सरस्वतीजी की पूजा करना चाहिए। सरस्वतीजी का पूजन करते समय सबसे पहले उनको स्नान कराना चाहिए। इसके पश्चात माता को सिन्दूर व अन्य श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद फूलमाला चढ़ाएं।
देवी सरस्वती का मंत्र-
मिठाई से भोग लगाकर सरस्वती कवच का पाठ करें। मां सरस्वतीजी के पूजा के वक्त इस मंत्र का जाप करने से असीम पुण्य मिलता है-
मां सरस्वती की आराधना करते वक्त इस श्लोक का उच्चारण करना चाहिए-
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।
आस्था
पितृ पक्ष में इस तरह करें तुलसी के उपाय, श्राद्ध कर्म का मिलेगा पूरा फल..
हरिद्वार. पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण का विशेष महत्व है. पितृपक्ष में पितरों की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. पितृपक्ष में पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म के कार्य किए जाते हैं. वैदिक पंचांग के भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष रहता है. पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रहा है . इसका समापन 2 अक्टूबर को होगा. इस दौरान पितरों और पूर्वजों के निमित्त उनके श्राद्ध के दिन विधि विधान से उनका श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण, कर्मकांड आदि किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से उन्हें शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. ज्योतिष के अनुसार पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध कर्म को पवित्रता और शुद्धता के साथ किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों जैसे वेद, पुराण, उपनिषद में तुलसी को सबसे अधिक पवित्र बताया गया है. तुलसी दल का प्रयोग अधिकतर आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यों और क्रियाओं में पवित्रता बनाए रखने के लिए किया जाता हैं. वहीं श्राद्ध पक्ष के दिनों में पितरों के लिए भोजन, ग्रास और पूजा पाठ आदि में पवित्रता बनाए रखने के लिए तुलसी दल का प्रयोग किया जाता है. श्राद्ध कर्म, तर्पण, कर्मकांड, पिंडदान आदि को पितरों के निमित्त करने में तुलसी का प्रयोग करने से उसमें पवित्रता आने के साथ-साथ दोष भी समाप्त हो जाता है जिससे श्राद्ध का संपूर्ण फल मिलता है.
क्यों मिलाया जाता है तुलसी दल?
हरिद्वार के विद्वान ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री ने लोकल 18 को बताया कि सनातन धर्म में तुलसी को बहुत अधिक पवित्र माना गया है. श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त बनने वाले भोजन, ग्रास या पूजा-पाठ के कार्यों में पवित्रता और उसमें होने वाले दोष को समाप्त करने के लिए तुलसी को मिलाया जाता है. तुलसी को भोजन में मिलने से उसमें पवित्रता आती है और पूजा-पाठ के कार्यों में तुलसी का इस्तेमाल करने से हर प्रकार का दोष खत्म हो जाता है जिससे श्राद्ध का संपूर्ण फल प्राप्त होता है. हिंदू धर्म में तुलसी का प्रयोग करने से दोष समाप्त हो जाता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होने के साथ उन्हें परमधाम में स्थान मिलता हैं.
आस्था
विश्वकर्मा जयंती इस साल कब मनाई जाएगी 16 या 17 सितंबर को,जानें सही डेट और पूजा का शुभ मुहूर्त
विश्वकर्मा पूजा की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बन गई है. इस बार कन्या संक्रांति का समय 16 सितंबर को शाम में है. इस वजह से लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर को मनाया जाएगा या फिर 17 सितंबर को. वैसे तो विश्वकर्मा पूजा उस दिन मनाते हैं, जिस दिन कन्या संक्रांति होती है, लेकिन उसमें भी समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
विश्वकर्मा पूजा 2024 की सही तारीख
इस साल विश्वकर्मा पूजा के लिए जरूरी कन्या संक्रांति 16 सितंबर को है. उस दिन सूर्य देव कन्या राशि में शाम को 7 बजकर 53 मिनट पर प्रवेश करेंगे, उस समय कन्या संक्रांति होगी. लेकिन विश्वकर्मा पूजा के लिए सूर्योदय की मान्यता होगी. 16 सितंबर को शाम 7:53 बजे से विश्वकर्मा पूजा नहीं होगी. ऐसे में इस साल विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर मंगलवार के दिन है. यह विश्वकर्मा पूजा की सही तारीख है. कुछ कैलेंडर में 16 सितंबर को ही विश्वकर्मा पूजा की तारीख बताई गई है.
विश्वकर्मा पूजा पर भद्रा का साया
विश्वकर्मा पूजा के दिन भद्रा का साया है. उस दिन भद्रा दिन में 11 बजकर 44 मिनट से लग रही है. यह रात 9 बजकर 55 मिनट तक रहेगी. इस भद्रा का वास पृथ्वी लोक पर है. धरती की भद्रा अशुभ प्रभाव वाली मानी जाती है, जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं. ऐसे में आपको विश्वकर्मा पूजा भद्रा से पहले कर लेनी चाहिए. उस दिन राहुकाल भी दोपहर 3 बजकर 19 मिनट से शाम 4 बजकर 51 मिनट तक है.
विश्वकर्मा पूजा 2024 मुहूर्त
इस साल विश्वकर्मा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह में ही है. दोपहर के समय में भद्रा है. ऐसे में आप विश्वकर्मा पूजा सुबह 06:07 बजे से दिन में 11:44 बजे के बीच कर सकते हैं.
रवि योग में है विश्वकर्मा पूजा
इस बार की विश्वकर्मा पूजा रवि योग में है. 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा के दिन रवि योग सुबह 6 बजकर 7 मिनट से प्रारंभ है, जो दोपहर 1 बजकर 53 मिनट तक है.
विश्वकर्मा पूजा पर लगेगा राज पंचक
विश्वकर्मा पूजा के दिन राज पंचक लगा है. इस पंचक का प्रारंभ 1 दिन पहले यानी 16 सितंबर सोमवार से हो रहा है. सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है. राज पंचक शुभ फलदायी होता है.
विश्वकर्मा पूजा के फायदे
विश्वकर्मा पूजा के दिन लोग अपनी दुकान, वाहन, मशीन, औजार, कलपुर्जे आदि की पूजा करते हैं. इस अवसर पर देवता के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है. उनके आशीर्वाद से बिजनेस में उन्नति होती है. पूरे साल भर काम अच्छे से चलता है. किसी भी प्रकार की कोई विघ्न बाधा नहीं आती है.
आस्था
पितरों को प्रसन्न करने के लिए घर में ऐसे करें श्राद्ध, पितृदोष होगा दूर
श्राद्ध एक प्राचीन हिंदू परंपरा है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना के साथ ही श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और दान करते हैं। इस दौरान कई लोग अपने पितरों की आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध करने जाते हैं। काशी, हरिद्वार, ऋषिकेष, प्रयागराज, गया आदि उन पवित्र स्थलों में से एक हैं जहां श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। हालांकि जो लोग किसी तीर्थ स्थल पर नहीं जा पाते उन्हें घर पर ही पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। आज हम आपको इसी बारे में जानकारी देने वाले हैं कि, कैसे आप घर पर श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।
घर पर ऐसे करें श्राद्ध
पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध करने से पहले आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि, पितरों की पुण्य तिथि कब है। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि जानकर ही आप पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। वहीं जिन पूर्वजों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है उनका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या के दिन किया जाता है।
घर में पितरों के निमित्त श्राद्ध करने के लिए आपको सबसे पहले सुबह उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके सबसे पहले सूर्य देव को जल का अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद पितरों के लिए आपको उनकी पसंद का भोजन बनाना चाहिए और यह भोजन पंच जीवों (गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देवगणों) के लिए निकालना चाहिए। इसके बाद आपको पितरों की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के लिए आपको सबसे पहले पितरों की तस्वरी के सामने धूप-दीपक जलाना चाहिए, उनका ध्यान करते हुए गाय का दूध, घी, खीर, चावल, मूंग दाल, उड़द, सफेद फूल पितरों को अर्पित करने चाहिए। इसके बाद यथासंभव दान और ब्राह्मणों को भोजन आप करवा सकते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने और दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
पितरों की पूजा के दौरान आपने जो भोजन पांच जीवों के लिए निकाला है, उसे पूजा खत्म होने के बाद इन जीवों को खिलाना चाहिए। इसके साथ ही पितरों से अपनी सुख-समृद्धि की कामना आपको करनी चाहिए। इस सरल विधि से अगर आप अपने घर पर पितरों का श्राद्ध करते हैं तो आपके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती हैं। इसके साथ ही पितृ दोष से भी आपको मुक्ति मिलती है।
साल 2024 में कब से शुरू हैं श्राद्ध
इस साल 17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत होगी। सबसे पहले 17 तारीख को पूर्णिमा का श्राद्ध रखा जाएगा, इस दिन ऋषियों के नाम से तर्पण करने का विधान है। 18 सितंबर को प्रतिपदा का श्राद्ध रखा जाएगा। पितृ पक्ष का समापन 2 अक्तूबर 2024 के दिन सर्व पितृ अमावस्या के साथ होगा।
-
खबरे छत्तीसगढ़7 days ago
करोड़ों रुपए की सरकारी जमीन को बाहुबलियों के कब्जे से कराया गया मुक्त
-
खबरे छत्तीसगढ़5 days ago
पांचवीं कक्षा पढ़ने वाला बच्चे ने लगाई फांसी घर के अन्दर से दरवाजा था बंद पिता ने कुछ दिन पहले तम्बाकू खाने से किया था मना पुलिस मौके पर पहुंच कर जांच में जुटी आगे कार्यवाही जारी
-
खबरे छत्तीसगढ़5 days ago
शिक्षा में नवाचार, कौन बनेगा करोड़पति के तर्ज पर कौन बनेगा सैकड़ापति का आयोजन करते हैं शिक्षक गुलाब सिन्हा
-
खबरे छत्तीसगढ़3 days ago
छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन का बैठक संपन्न….
-
खबरे छत्तीसगढ़2 days ago
प्रदेश स्तरीय ओबीसी दिवस आज पेंड्री में मनाया गया
-
खबरे छत्तीसगढ़6 days ago
शंकरगढ़ विकास खण्ड स्तरीय शिक्षक दिवस समारोह बहुत ही धूम धाम से मनाया गया
-
खबरे छत्तीसगढ़4 days ago
छत्तीसगढ़ के पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू की धर्मपत्नी का निधन, आज गृहग्राम में किया जाएगा अंतिम संस्कार
-
खबरे छत्तीसगढ़13 hours ago
पुलिस में नौकरी का सुनहरा मौका, छत्तीसगढ़ में एक साथ इतने पदों को मिली मंजूरी