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*साईं बाबा कहां जन्मे थे, कहां है उनका असली जन्म स्थान?*

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साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट शिरडी तथा शहर के लोग इस समय बेहद नाराज हैं। इसका कारण है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे द्वारा महाराष्ट्र के पाथरी (परभणी में) को सांई बाबा की जन्मभूमि बताने और इस स्थल के विकास के लिए 100 करोड़ रुपए का बजट दिए जाने की घोषणा।

इस घोषणा के बाद साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट ने इसका विरोध करते हुए कहा कि हमने अफवाहों के ‍खिलाफ 19 जनवरी से शिर्डी को बेमियादी बंद करने की घोषणा की है। साल में यह पहला मौका होगा जब शिर्डी में बंद होगा।

ट्रस्ट मानता है कि साईं बाबा पर एकमात्र प्रामाणिक पुस्तक है श्रीगोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित ‘श्री साईं सच्चरित्र’ जिसमें इसका कोई उल्लेख नहीं है कि साईं बाबा का जन्म कहां हुआ था। इस पुस्तक में उनके जन्म और बचपन की कोई जानकारी नहीं मिलती है। यही वजह है कि साईं ट्रस्ट पाथरी को सांई के जन्म के रूप में विकसित करने का विरोध करता है।

साईं बाबा के जन्मस्थान को लेकर क्या हैं अन्य आधार : हालांकि साईं बाबा के जन्म, बचपन और शिरडी में उनके द्वारा बिताए जीवन के बारे में अन्य कई किताबें लिखी गई हैं जिनमें से कुछ में उनके जन्म स्थल के बारे में संक्षिप्त जानकारी मिलती है।

‘सद्‍गुरु साईं दर्शन’ (एक बैरागी की स्मरण गाथा) : साईं के बचपन पर एक किताब कन्नड़ में भी लिखी गई है जिसका नाम अज्ञात है। लेखक का नाम है- बीव्ही सत्यनारायण राव (सत्य विठ्ठला)। विठ्ठला ने यह किताब उनके नानानी से प्रेरित होकर लिखी थी। उनके नानाजी साईं बाबा के पूर्व जन्म और इस जन्म अर्थात दोनों ही जन्मों के मित्र थे। इस किताब का अंग्रेजी में अनुवाद प्रो. मेलुकोटे के. श्रीधर ने किया और इस किताब के कुछ अंशों का हिन्दी में अनुवाद शशिकांत शांताराम गडकरी ने किया। हिन्दी किताब का नाम है- ‘सद्‍गुरु सांईं दर्शन’ (एक बैरागी की स्मरण गाथा)। इस किताब में साईं बाबा का जन्म स्थान ‘पाथरी’ ही बताया गया है।

‘ए यूनिक सेंट साईं बाबा ऑफ शिर्डी’ : यह किताब श्री विश्वास बालासाहेब खेर और एमवी कामथ ने लिखी थी। खेर ने यह किताब साईं बाबा के समकालीन भक्त स्वामी साईं शरणानंद की प्रेरणा से लिखी थी। इस किताब में पाथरी को शिरडी के साईं बाबा का जन्म स्थान माने जाने के प्रमाण दिए गए हैं।

खेर ने ही साईं की जन्मभूमि पाथरी में बाबा के मकान को भुसारी परिवार से चौधरी परिवार को खरीदने में मदद की थी जिन्होंने उस स्थान को साईं स्मारक ट्रस्ट के लिए खरीदा था। शरणानंदी की किताब का नाम है- ‘श्री साईं द सुपरमैन’

सत्य साईं बाबा ने किया था खुलासा : साईं बाबा के बारे में सबसे सटीक जानकारी सत्य साईं बाबा द्वारा दी गई है जिन्हें बाबा का अवतार ही माना जाता है। उन्होंने उनका जन्म स्थान पाथरी गांव ही बताया है। सत्य साईं बाबा मानते थे कि शिरडी के सांई बाबा का जन्म 27 सितंबर 1830 को महाराष्ट्र के पाथरी (पातरी) गांव में हुआ था।

ऐसा विश्वास किया जाता है कि महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में साईं बाबा का जन्म हुआ था और सेल्यु में बाबा के गुरु वैकुंशा रहते थे। पाथरी में सांई के जन्म स्थान पर एक मंदिर है। मंदिर में सांई की आकर्षक मूर्ति रखी हुई है। वहां पुरानी वस्तुएं जैसे बर्तन, घट्टी और देवी-देवताओं की मूर्तियां भी रखी हुई हैं।

मंदिर के व्यवस्थापकों के अनुसार यह साईं बाबा का जन्मस्थान है। इस किताब के अनुसार शिरडी सांई बाबा का जन्म भुसारी परिवार में हुआ था, जिनके पारिवारिक देवता कुम्हार बावड़ी के श्री हनुमान थे, जो पाथरी के बाहरी इलाके में है।

उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने एक खबर दिखाई गई थी जिसके अनुसार साईं बाबा के वंशज आज भी औरंगाबाद, निजामाबाद और हैदराबाद में रहते हैं। साईं के बड़े भाई रघुपति के 2 पुत्र थे- महारुद्र और परशुराम बापू।

महारुद्रजी के जो बेटे हैं, उनमें से एक रघुनाथजी थे जिनके पास पाथरी का मकान था। रघुनाथ भुसारीजी के 2 बेटे और 1 बेटी है- दिवाकर भुसारी, शशिकांत भुसारी और एक बेटी जो नागपुर में है। दिवाकर हैदराबाद में और शशिकांत निजामाबाद में रहते हैं। परशुराम के बेटे भाऊ थे। भाऊ को प्रभाकर राव और माणिक राव नामक 2 पुत्र थे। प्रभाकर राव के प्रशांत, मुकुंद, संजय नामक बेटे और बेटी लता पाठक हैं, जो औरंगाबाद में रहते हैं। माणिकराव भुसारी को 4 बेटियां हैं- अनिता, सुनीता, सीमा और दया।

हालांकि शिरडी के साईं बाबा की जन्मतिथि और स्थान को लेकर कोई पुख्ता प्रणाम नहीं हैं। उपरोक्त सभी संदर्भ पुस्तकों और अन्य सूत्रों के हवाले से हैं।

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पितृ पक्ष में इस तरह करें तुलसी के उपाय, श्राद्ध कर्म का मिलेगा पूरा फल..

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हरिद्वार. पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण का विशेष महत्व है. पितृपक्ष में पितरों की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. पितृपक्ष में पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म के कार्य किए जाते हैं. वैदिक पंचांग के भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष रहता है. पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रहा है . इसका समापन 2 अक्टूबर को होगा. इस दौरान पितरों और पूर्वजों के निमित्त उनके श्राद्ध के दिन विधि विधान से उनका श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण, कर्मकांड आदि किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से उन्हें शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. ज्योतिष के अनुसार पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध कर्म को पवित्रता और शुद्धता के साथ किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों जैसे वेद, पुराण, उपनिषद में तुलसी को सबसे अधिक पवित्र बताया गया है. तुलसी दल का प्रयोग अधिकतर आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यों और क्रियाओं में पवित्रता बनाए रखने के लिए किया जाता हैं. वहीं श्राद्ध पक्ष के दिनों में पितरों के लिए भोजन, ग्रास और पूजा पाठ आदि में पवित्रता बनाए रखने के लिए तुलसी दल का प्रयोग किया जाता है. श्राद्ध कर्म, तर्पण, कर्मकांड, पिंडदान आदि को पितरों के निमित्त करने में तुलसी का प्रयोग करने से उसमें पवित्रता आने के साथ-साथ दोष भी समाप्त हो जाता है जिससे श्राद्ध का संपूर्ण फल मिलता है.

क्यों मिलाया जाता है तुलसी दल?
हरिद्वार के विद्वान ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री ने लोकल 18 को बताया कि सनातन धर्म में तुलसी को बहुत अधिक पवित्र माना गया है. श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त बनने वाले भोजन, ग्रास या पूजा-पाठ के कार्यों में पवित्रता और उसमें होने वाले दोष को समाप्त करने के लिए तुलसी को मिलाया जाता है. तुलसी को भोजन में मिलने से उसमें पवित्रता आती है और पूजा-पाठ के कार्यों में तुलसी का इस्तेमाल करने से हर प्रकार का दोष खत्म हो जाता है जिससे श्राद्ध का संपूर्ण फल प्राप्त होता है. हिंदू धर्म में तुलसी का प्रयोग करने से दोष समाप्त हो जाता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होने के साथ उन्हें परमधाम में स्थान मिलता हैं.

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विश्वकर्मा जयंती इस साल कब मनाई जाएगी 16 या 17 सितंबर को,जानें सही डेट और पूजा का शुभ मुहूर्त

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विश्वकर्मा पूजा की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बन गई है. इस बार कन्या संक्रांति का समय 16 सितंबर को शाम में है. इस व​जह से लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर को मनाया जाएगा या फिर 17 सितंबर को. वैसे तो विश्वकर्मा पूजा उस दिन मनाते हैं, जिस दिन कन्या संक्रांति होती है, लेकिन उसमें भी समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है

विश्वकर्मा पूजा 2024 की सही तारीख
इस साल विश्वकर्मा पूजा के लिए जरूरी कन्या संक्रांति 16 सितंबर को है. उस दिन सूर्य देव कन्या राशि में शाम को 7 बजकर 53 मिनट पर प्रवेश करेंगे, उस समय कन्या संक्रांति होगी. लेकिन विश्वकर्मा पूजा के लिए सूर्योदय की मान्यता होगी. 16 सितंबर को शाम 7:53 बजे से विश्वकर्मा पूजा नहीं होगी. ऐसे में इस साल विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर मंगलवार के दिन है. यह विश्वकर्मा पूजा की सही तारीख है. कुछ कैलेंडर में 16 सितंबर को ही विश्वकर्मा पूजा की तारीख बताई गई है.

विश्वकर्मा पूजा पर भद्रा का साया
विश्वकर्मा पूजा के दिन भद्रा का साया है. उस दिन भद्रा दिन में 11 बजकर 44 मिनट से लग रही है. यह रात 9 बजकर 55 मिनट तक रहेगी. इस भद्रा का वास पृथ्वी लोक पर है. धरती की भद्रा अशुभ प्रभाव वाली मानी जाती है, जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं. ऐसे में आपको विश्वकर्मा पूजा भद्रा से पहले कर लेनी चाहिए. उस दिन राहुकाल भी दोपहर 3 बजकर 19 मिनट से शाम 4 बजकर 51 मिनट तक है.

विश्वकर्मा पूजा 2024 मुहूर्त
इस साल विश्वकर्मा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह में ही है. दोपहर के समय में भद्रा है. ऐसे में आप विश्वकर्मा पूजा सुबह 06:07 बजे से दिन में 11:44 बजे के बीच कर सकते हैं.

रवि योग में है विश्वकर्मा पूजा
इस बार की विश्वकर्मा पूजा रवि योग में है. 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा के दिन रवि योग सुबह 6 बजकर 7 मिनट से प्रारंभ है, जो दोपहर 1 बजकर 53 मिनट तक है.

विश्वकर्मा पूजा पर लगेगा राज पंचक
विश्वकर्मा पूजा के दिन राज पंचक लगा है. इस पंचक का प्रारंभ 1 दिन पहले यानी 16 सितंबर सोमवार से हो रहा है. सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है. राज पंचक शुभ फलदायी होता है.

विश्वकर्मा पूजा के फायदे
विश्वकर्मा पूजा के दिन लोग अपनी दुकान, वाहन, मशीन, औजार, कलपुर्जे आदि की पूजा करते हैं. इस अवसर पर देवता के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है. उनके आशीर्वाद से बिजनेस में उन्नति होती है. पूरे साल भर काम अच्छे से चलता है. किसी भी प्रकार की कोई ​विघ्न बाधा नहीं आती है.

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पितरों को प्रसन्न करने के लिए घर में ऐसे करें श्राद्ध, पितृदोष होगा दूर

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श्राद्ध एक प्राचीन हिंदू परंपरा है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना के साथ ही श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और दान करते हैं। इस दौरान कई लोग अपने पितरों की आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध करने जाते हैं। काशी, हरिद्वार, ऋषिकेष, प्रयागराज, गया आदि उन पवित्र स्थलों में से एक हैं जहां श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। हालांकि जो लोग किसी तीर्थ स्थल पर नहीं जा पाते उन्हें घर पर ही पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। आज हम आपको इसी बारे में जानकारी देने वाले हैं कि, कैसे आप घर पर श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।

घर पर ऐसे करें श्राद्ध

पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध करने से पहले आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि, पितरों की पुण्य तिथि कब है। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि जानकर ही आप पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। वहीं जिन पूर्वजों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है उनका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या के दिन किया जाता है।

घर में पितरों के निमित्त श्राद्ध करने के लिए आपको सबसे पहले सुबह उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके सबसे पहले सूर्य देव को जल का अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद पितरों के लिए आपको उनकी पसंद का भोजन बनाना चाहिए और यह भोजन पंच जीवों (गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देवगणों) के लिए निकालना चाहिए। इसके बाद आपको पितरों की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के लिए आपको सबसे पहले पितरों की तस्वरी के सामने धूप-दीपक जलाना चाहिए, उनका ध्यान करते हुए गाय का दूध, घी, खीर, चावल, मूंग दाल, उड़द, सफेद फूल पितरों को अर्पित करने चाहिए। इसके बाद यथासंभव दान और ब्राह्मणों को भोजन आप करवा सकते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने और दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

पितरों की पूजा के दौरान आपने जो भोजन पांच जीवों के लिए निकाला है, उसे पूजा खत्म होने के बाद इन जीवों को खिलाना चाहिए। इसके साथ ही पितरों से अपनी सुख-समृद्धि की कामना आपको करनी चाहिए। इस सरल विधि से अगर आप अपने घर पर पितरों का श्राद्ध करते हैं तो आपके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती हैं। इसके साथ ही पितृ दोष से भी आपको मुक्ति मिलती है।

साल 2024 में कब से शुरू हैं श्राद्ध

इस साल 17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत होगी। सबसे पहले 17 तारीख को पूर्णिमा का श्राद्ध रखा जाएगा, इस दिन ऋषियों के नाम से तर्पण करने का विधान है। 18 सितंबर को प्रतिपदा का श्राद्ध रखा जाएगा। पितृ पक्ष का समापन 2 अक्तूबर 2024 के दिन सर्व पितृ अमावस्या के साथ होगा।

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