देश-विदेश
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में फिर भिड़े BJP और NC के विधायक, अनुच्छेद 370 पर हो रहा बवाल
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायकों के बीच अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर फिर भिड़ंत हो गई। बता दें कि जम्मू कश्मीर विधानसभा में पूर्ववर्ती राज्य का विशेष दर्जा बहाल किए जाने से संबंधित प्रस्ताव को लेकर गुरुवार को भी भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के विरोध और हंगामे के कारण विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही दिन भर के स्थगित कर दी थी।
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BJP सांसद तेजस्वी सूर्या के खिलाफ कर्नाटक में दर्ज हुई FIR, फेक न्यूज फैलाने का है मामला
बेंगलुरु: भारतीय जनता पार्टी के सांसद तेजस्वी सूर्या और कुछ कन्नड़ न्यूज पोर्टल्स के एडिटर के खिलाफ फर्जी खबर फैलाने के आरोप में केस दर्ज किया गया है। पुलिस ने शुक्रवार को इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सूर्य एवं अन्य के खिलाफ एक किसान की आत्महत्या के मामले को वक्फ बोर्ड के साथ भूमि विवाद से जोड़कर फर्जी खबर फैलाने का आरोप है। ‘X’ पर इन समाचार पोर्टल की खबर को साझा करते हुए सूर्या ने 7 नवंबर को आरोप लगाया था कि हावेरी जिले में एक किसान ने वक्फ बोर्ड द्वारा उसकी जमीन अधिगृहित किए जाने के बारे में पता चलने पर कथित रूप से खुदकुशी कर ली।
सूर्या ने बाद में हटा ली थी पोस्ट
तेजस्वी सूर्या ने अपनी पोस्ट में कर्नाटक सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था, ‘अल्पसंख्यकों को खुश करने की जल्दबाजी में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, कर्नाटक सरकार में आवास, वक्फ एवं अल्पसंख्यक विकास मंत्री बी. जेड. जमीर अहमद खान ने राज्य में विनाशकारी हालात पैदा कर दिए हैं, जिसे हर गुजरते दिन के साथ रोकना असंभव होता जा रहा है।’ बाद में हावेरी जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा न्यूज रिपोर्ट को फर्जी बताए जाने के बाद सांसद ने पोस्ट को हटा दिया था।
‘ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई’
पुलिस अधीक्षक ने कहा था, ‘शेयर की गई खबर फर्जी है। ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई। यहां जिस किसान रुद्रप्पा चन्नप्पा बालिकाई का जिक्र हुआ है उनकी 6 जनवरी 2022 को आत्महत्या की सूचना मिली थी। बताया जाता है कि उन्होंने कर्ज एवं फसल नुकसान के कारण आत्महत्या की थी।’ उन्होंने बताया कि आदर थाने में दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 174 के तहत केस दर्ज किया गया था और अंतिम रिपोर्ट पहले ही पेश की जा चुकी है।
‘हावेरी जिले के CEN थाने में FIR दर्ज’
एक सीनियर पुलिस अफसर ने कहा, ‘हावेरी जिला पुलिस के सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल में तैनात एक पुलिस अफसर की शिकायत के आधार पर BNS की धारा 353 (2) (विभिन्न समूहों के बीच घृणा, दुर्भावना या दुश्मनी की भावना पैदा करने या बढ़ावा देने के इरादे से बयान देना, प्रकाशित करना या प्रसारित करना) के तहत ‘कन्नड़ दुनिया ई-पेपर’ और ‘कन्नड़ न्यूज ई-पेपर’ के संपादकों और तेजस्वी सूर्या के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।’ उन्होंने बताया कि हावेरी जिले के CEN (साइबर अपराध, आर्थिक अपराध, स्वापक नियंत्रण) थाने में FIR दर्ज की गई है।
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इस राज्य का मामला..CM साहब का समोसा खा गया स्टाफ, 5 पुलिसकर्मियों को नोटिस
भारत में समोसे का क्रेज अलग ही लेवल पर है। होटल से लेकर सड़क किनारे लोग आपको समोसे खाते दिखा दे जाएंग। पर क्या आपने सोचा है कि समोसा पूरे पुलिस प्रशासन की नींद भी उड़ा सकता है? ऐसा ही कुछ हुआ है कांग्रेस शासित राज्य हिमाचल प्रदेश में। इन दिनों हिमाचल की राजनीति में समोसा छाया हुआ है। समोसे की वजह से पांच पुलिसकर्मियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इतना ही नहीं उनके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई है। राज्य की CID इसकी जांच कर रही है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, बीते 21 अक्टूबर को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू CID हेडक्वार्टर में साइबर विंग स्टेशन का उद्घाटन करने के लिए गए थे। यहां पर सीएम के लिए लाए गए केस और समोसे उनके स्टाफ को बांट दिए गए। इसकी जांच सीआईडी ने की। जांच में पता चला कि सिर्फ एसआई को ही पता था कि ये डिब्बे खास तौर पर सीएम सुक्खू के लिए थे।
समन्वय की कमी से हुई गलती
जांच में पता लगा है कि जब इन डिब्बों को महिला इंस्पेक्टर को सौंपा गया तो उन्होंने किसी वरिष्ठ अधिकारी से पुष्टि नहीं की और इन्हें नाश्ते के लिए जिम्मेदार मैकेनिकल ट्रांसपोर्ट (एमटी) सेक्शन को भेज दिया। इस गलती के कारण से ये बक्से को उनके उचित व्यक्ति तक पहुंचने से पहले ही इधर से उधर हो गए।रिपोर्ट में कहा गया है कि समन्वय की कमी इस गलती का एक महत्वपूर्ण कारण थी।
10/12 व्यक्तियों को चाय के साथ परोसा गया
जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि उपरोक्त तीनों बॉक्स में रखे सामान को IG के कार्यालय में बैठे 10/12 व्यक्तियों चाय के साथ परोस दिया गया था। तथाकथित तीन बाक्स जो होटल से लाए गए थे इनमें मौजूद खाने की वस्तुएं मुख्यमंत्री के लिये हैं, इस बात की जानकारी केवल SI को ही थी। इसके बावजूद उपरोक्त तीनों बॉक्स को इंस्पेक्टर द्वारा किसी भी उच्च अधिकारी को पूछे बगैर यह सामान MT Section को सौंपा गया। बॉक्स खोले गये व इसमे मौजूद सामान बांटा गया।
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर आया सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जा की बहाली की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से साल 1967 का अजीज बाशा फैसला पलट दिया है। कोर्ट ने कहा है कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं, 3 जजों की बेंच ये तय करेगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि AMU को अल्पसंख्यकों ने स्थापित किया था, इस बात को साबित करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मामले पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि संदर्भ के लिए प्रश्न था- किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान मानने के संकेत क्या हैं? क्या किसी संस्थान को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान इसलिए माना जाएगा क्योंकि इसकी स्थापना धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति (व्यक्तियों) द्वारा की गई थी या इसका संचालन किसी धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्ति(व्यक्तियों) द्वारा किया जा रहा है?
अनुच्छेद 30 में मिले अधिकार संपूर्ण नहीं- CJI
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि धार्मिक समुदाय संस्थान बना सकते हैं लेकिन चला नहीं सकते। अनुच्छेद 30 में मिले अधिकार संपूर्ण नहीं है। धार्मिक समुदाय को संस्थान चलाने का असीमित अधिकार नहीं है। अनुच्छेद 30 (1) को कमजोर नहीं कर सकते। अल्पसंख्यक संस्थाओं को भी रेगुलेट कर सकते हैं।
4:3 का फैसला
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मैंने बहुमत के साथ फैसला लिखा है। तीन असहमतियाँ हैं। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस शर्मा ने अपनी-अपनी असहमतियाँ लिखी हैं। इसलिए यह 4:3 का फैसला है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि धार्मिक समुदाय संस्थान बना सकते हैं लेकिन चला नहीं सकते। अनुच्छेद 30 में मिले अधिकार संपूर्ण नहीं है।
किन जजों ने सुनया फैसला?
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की संविधानिक बेंच ने ये फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आगे चलकर यह तय होगा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप मे दर्जा दिया जाए या नहीं।
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