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पितृ पक्ष में इस तरह करें तुलसी के उपाय, श्राद्ध कर्म का मिलेगा पूरा फल..

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हरिद्वार. पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण का विशेष महत्व है. पितृपक्ष में पितरों की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. पितृपक्ष में पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म के कार्य किए जाते हैं. वैदिक पंचांग के भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष रहता है. पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रहा है . इसका समापन 2 अक्टूबर को होगा. इस दौरान पितरों और पूर्वजों के निमित्त उनके श्राद्ध के दिन विधि विधान से उनका श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण, कर्मकांड आदि किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से उन्हें शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. ज्योतिष के अनुसार पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध कर्म को पवित्रता और शुद्धता के साथ किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों जैसे वेद, पुराण, उपनिषद में तुलसी को सबसे अधिक पवित्र बताया गया है. तुलसी दल का प्रयोग अधिकतर आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यों और क्रियाओं में पवित्रता बनाए रखने के लिए किया जाता हैं. वहीं श्राद्ध पक्ष के दिनों में पितरों के लिए भोजन, ग्रास और पूजा पाठ आदि में पवित्रता बनाए रखने के लिए तुलसी दल का प्रयोग किया जाता है. श्राद्ध कर्म, तर्पण, कर्मकांड, पिंडदान आदि को पितरों के निमित्त करने में तुलसी का प्रयोग करने से उसमें पवित्रता आने के साथ-साथ दोष भी समाप्त हो जाता है जिससे श्राद्ध का संपूर्ण फल मिलता है.

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क्यों मिलाया जाता है तुलसी दल?
हरिद्वार के विद्वान ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री ने लोकल 18 को बताया कि सनातन धर्म में तुलसी को बहुत अधिक पवित्र माना गया है. श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त बनने वाले भोजन, ग्रास या पूजा-पाठ के कार्यों में पवित्रता और उसमें होने वाले दोष को समाप्त करने के लिए तुलसी को मिलाया जाता है. तुलसी को भोजन में मिलने से उसमें पवित्रता आती है और पूजा-पाठ के कार्यों में तुलसी का इस्तेमाल करने से हर प्रकार का दोष खत्म हो जाता है जिससे श्राद्ध का संपूर्ण फल प्राप्त होता है. हिंदू धर्म में तुलसी का प्रयोग करने से दोष समाप्त हो जाता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होने के साथ उन्हें परमधाम में स्थान मिलता हैं.

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दिवाली की डेट को लेकर न हो कंफ्यूज, यहां जानें 31 अक्टूबर या 1 नवंबर कब मनाई जाएगी दीपावली

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हर साल दीवाली का त्यौहार कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश, मां सरस्वती और कुबेर जी की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि दीपावली के दिन मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण के लिए आती है। ऐसे में देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय को अपनाते हैं। माता लक्ष्मी के चरण जिस भी घर-आंगन में पड़ते हैं वहां धन-धान्य और सुख-समृद्धि की वर्षा होती है। धन की देवी लक्ष्मी की कृपा से उस घर में कभी भी पैसों या अन्य चीजों की कमी नहीं होती है। दीवाली को लक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। तो चलिए अब जानते हैं कि इस साल दीवाली का त्यौहार कब मनाया जाएगा।

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दीवाली 2024 डेट और लक्ष्मी पूजा मुहूर्त 

इस साल लोगों में दीवाली की तिथि को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। दरअसल, लोग 31 अक्टूबर और 1 नवंबर की डेट को लोग कंफ्यूज हो रहे हैं कि असल में दीवाली इन दोनों तिथि में से किस दिन मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की अमावस्या तिथि का आरंभ 31 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से होगा। अमावस्या तिथि का समापन 1 नवंबर को शाम 6 बजकर 18 मिनट पर होगा। ऐसे में दीवाली 1 नवंबर 2024 को मनाई  जाएगी। लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 1 नवंबर को शाम 5 बजकर 36 मिनट से शाम 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।

दीवाली 2024 कैलेंडर

  1. धनतेरस– 29 अक्टूबर 2024
  2. छोटी दीवाली, नरक चतुर्दशी–  31 अक्टूबर 2024
  3. दीवाली, दीपावली, लक्ष्मी पूजा– 1 नवंबर 2024
  4. गोवर्धन पूजा– 2 नवबंर 2024
  5. भैया दूज– 3 नवंबर 2024

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पितृ पक्ष में दिख रहे हैं ये 7 सपने तो हो जाएं सावधान

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स्वप्न शास्त्र में हर सपने के कुछ न कुछ संकेत बताए गए हैं। साथ ही विशेष मौकों पर दिखने वाले सपनों को अर्थ भी अलग-अलग होता है। इसी तरह पितृ पक्ष के दौरान आने वाले सपने भी हमें अच्छे-बुरे संकेत देते हैं। आज हम आपको अपने इस लेख में उन सपनों के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिन्हें पितृ पक्ष के दौरान देखना शुभ नहीं माना जाता। ये सपने पितृ की अतृप्ति का संकेत माने जाते हैं। साथ पितरों के नाराज होने पर भी ऐसे सपने आपको पितृ पक्ष के दौरान आ सकते हैं। आइए जानते हैं इन सपनों के बारे में ।

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पितृ पक्ष में आएं ये सपने तो हो जाएं सावधान

डूबने का सपना 

अगर आप पितृ पक्ष के दौरान खुद को या किसी और को नदी, तालाब या समुद्र में डूबता देखते हैं तो ये सपना अच्छा नहीं माना जाता। इस सपने का अर्थ है कि, पितृ अशांत हैं। ऐसा सपना आने के बाद आपको घर परिवार में नकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं। इसके साथ ही कोई बड़ी समस्या भी घर में आ सकती है।

बंजर स्थान का दिखना 
सपने में अगर आप बंजर स्थान देखते हैं तो समझ लीजिए आपके पितृ आपसे नाराज हैं। ऐसा सपना आने के बाद आपको कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जो लोग अपने पितरों का तर्पण, श्राद्ध आदि नहीं करते, उनको इस तरह का सपना आ सकता है।

सपने में रोते पितरों को रोते देखना
अगर आप सपने में अपने पूर्वजों को रोते देखते हैं तो, आपको सावधान हो जाना चाहिए। ऐसा सपना तब आता है जब आपके पितृ आपके कर्मों के कारण या फिर आपके द्वारा श्राद्ध, तर्पण न किए जाने के कारण भटकते रहते हैं। इस तरह का सपना आने के बाद आपको पितरों के श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए।

पितृ पक्ष में बिना सिर वाले या अधूरे शरीर का दिखना
अगर पितृ पक्ष में बिना सिर या अधूरे शरीर वाले किसी जीवन को देखते हैं तो ये सपना भी पितरों की अतृप्ति को दर्शाता है। इस तरह का सपना आने के बाद आपको मानसिक समस्याएं हो सकती हैं, साथ ही घर परिवार में भी लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

सपने में अचानक पितरों का छिप जाना 
पितृ पक्ष के दौरान अगर आप सपना देखें कि, आपका कोई पितृ आपके सपने में आया और एक झलक दिखलाकर अचानक से छुप गया, तो ऐसा सपना आने के बाद भी आपको सतर्क हो जाना चाहिए। ऐसा सपना आने के बाद मसीबतें आपको घेर सकती हैं। ये सपना भी बताता है कि पितरों की आत्मा को अभी शांति नहीं मिली है। इस तरह का सपना आने के बाद अपने इष्ट का ध्यान करें और उनसे अपने पितरों की शांति की कामना करें।

सपने में खुद को फंसा हुआ पाना
पितृ पक्ष के दौरान अगर आप सपना देखें कि आप कहीं फंसे हुए हैं, और बाहर निकलने का कोई साधन आपको नजर नहीं आ रहा, तो समझ जाइए पितृ आपको संकेत दे रहे हैं कि, आपको उनकी तृप्ति के लिए श्राद्ध-तर्पण आदि करने चाहिए। साथ ही यह सपना दर्शाता है कि, आपका कोई पितृ बहुत अशांत और परेशान है।

सपने में भूत-प्रेत का दिखना
अगर आप पितृ पक्ष के दौरान भूत-प्रेत या आत्माओं को सपने में देखते हैं तो ये सपना भी आपके पूर्वजों की नाराजगी का प्रतीक है। जब पितृ अशांत होते हैं तो सपनों में आकर वो आपको भी अशांत कर सकते हैं, इसलिए ऐसा सपना आने के बाद पितृ कर्म आपको करने चाहिए।

ये वो सपने हैं जिनका पितृ पक्ष में दिखना शुभ नहीं माना जाता। इन सपनों का सीधा संकेत ये होता है कि पितृ आपसे प्रसन्न नहीं हैं। इसलिए इन सपनों के बाद आपको तुरंत पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण आदि करने चाहिए। खासकर सभी पितरों को शांत करने के लिए पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म आप कर सकते हैं।

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पितृपक्ष के दूसरे दिन इस मुहूर्त में करें श्राद्ध, पितरों की आत्मा को मिलेगी शांति..

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हिन्दू धर्म में हर साल भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष शुरू हो जाते हैं. इस साल पितृपक्ष के दूसरे दिन का श्राद्ध कर्म 19 सितंबर दिन गुरुवार किया होगा. ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज पितृ लोक से धरती लोक पर आते हैं. इस दौरान श्राद्ध कर्म से करने पूर्वज प्रसन्न होते हैं और अपने परिवार के सदस्यों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं. पितृपक्ष के दूसरे दिन श्राद्ध कर्म के लिए कुछ शुभ मुहूर्त बन रहे हैं, जिसमें श्राद्ध करने से पितरों को प्रसन्न किया जा सकता है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दूसरे दिन यानि 19 सितंबर को उन पूर्वजों का श्राद्ध करें, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने की द्वितीया तिथि को हुआ हो. पंचांग के अनुसार, इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की द्वितीया तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है. पिता की तिथि अगर मालूम न हो तो पितृ विसर्जन को श्राद्ध करना चाहिए. द्वितीया श्राद्ध को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण, अपराह्न मुहूर्त आदि शुभ मुहूर्त माने जाते हैं.

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तिथि और शुभ मुहूर्त

1.पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष के दूसरे दिन की द्वितीया तिथि 19 सितंबर को 04 बजकर 19 मिनट पर शुरू हो चुकी है और 20 सिंतबर को 00 बजकर 39 मिनट पर खत्म होगी.

2.कुतुप मूहूर्त सुबह 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा. इस मुहूर्त में श्राद्ध के लिए केवल 49 मिनट का समय मिलेगा.

3.रौहिण मूहूर्त दोपहर 12 बजकर 39 मिनट से 13 बजकर 28 मिनट तक रहेगा. इस मुहूर्त में श्राद्ध-तर्पण के लिए भी 49 मिनट का समय मिलेगा.

4.अपराह्न काल का मुहूर्त 13 बजकर 28 मिनट से 15 बजकर 54 मिनट तक रहेगा. इस मुहूर्त में पितरों के श्राद्ध के लिए कुल 2 घण्टे 27 मिनट का समय मिलेगा.

कैसे करें द्वितीया श्राद्ध कर्म

1.पितृ पक्ष के दूसरे दिन घर के मुख्य द्वार पर फूल आदि डालकर पितरों का आह्वान करें.

2.पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय का ग्रास निकालें.

3.पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लें.

4.कुश और काले तिल से तीन बार तर्पण करें.

5.किसी ब्राह्मण को वस्त्र, फल, मिठाई आदि दान दें.

6.जिन्हें ब्राह्मण नहीं मिल सके, वे भोजन आदि मंदिर में बांट सकते हैं.

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