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प्रश्न कर रहे प्राचीन मंदिर, हमारा गुनाह क्या है? ( जनकपुर, घघरा के हजारों साल पुराने मंदिरों की बीरेन्द्र श्रीवास्तव की कलम से…. पर्यटन एवं धरोहर अंक 25

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एम सी बी : सैकड़ों वर्ष पहले पृथ्वी निर्माण के बारे में यह कहा जाता है कि यहां मानव सभ्यता और जीवन कई बार जन्म लेने के बाद समाप्त हो गई। इसी प्रकार प्राचीन इतिहास के बारे में भी यदि हम गहन अध्ययन करें तो यह पता चलता है कि इतिहास के कई पन्ने आज भी अज्ञात हैं। जिससे जुड़ी पुरानी संस्कृति, सभ्यता की स्मृतियों को उचित युद्ध समतेन का क्रम कहीं-कहीं टूटता दिखाई देता है। इसी तरह का एक मंदिर छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग जनकपुर के पास घघरा गांव में दिखाई देता है। उसके प्राचीनता के बारे में कई प्रश्न सामने आ रहे हैं। यह मंदिर कभी मौर्य कालीन मंदिर कहा गया था और कभी आठवीं शताब्दी और कभी 13वीं शताब्दी का था। यह जानने के लिए कि हमें इसकी चट्टानों की कार्बन डेटिंग एवं शिल्प कला की गहराईयों तक जाना होगा, यह तो तय है कि छत्तीसगढ़ के जनकपुर जैसे विशाल चट्टानों के बीच इस तरह की प्राचीन मंदिरों का पता यहां किसी मधुर संस्कृति और कला पर लगाया जाना चाहिए। सभ्यता की वह पहचान है जो आज भी गुमनामी के अंधेरे में बंद है। आज से पर्यटन एवं पर्यटन के इस अंक में छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ एमसीबी शामिल हो गया है। जिले के जनकपुर विकासखंड के घाघरा गांव के ऐतिहासिक लेकिन अनजान मंदिर के दर्शन। इस मंदिर की निर्मित एवं पंखुड़ियों के जोड़ को देखकर आप आश्चर्य के साथ अत्यंत सुन्दर कहे जाने को बाध्य हो जायेंगे।

प्रश्न कर रहे प्राचीन मंदिर, हमारा गुनाह क्या है? ( जनकपुर, घघरा के हजारों साल पुराने मंदिरों की

छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास में कोरिया एवं मनेन्द्रगढ़ (एमसीबी) जिले की जानकारी बहुत कम मिलती है, लेकिन पहाड़ नदी की अपनी प्राकृतिक पहचान के साथ यहां के प्राचीन मंदिर इस क्षेत्र में बसने वाली पुरानी सुसंस्कृत सभ्यता को जोड़ने का पर्याप्त आधार उपलब्ध कराते हैं। (एमसीबी) जिला मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ के उत्तर दिशा में स्थित घने जंगल पहाड़ों के बीच कई ऐसे मंदिरों की उपस्थिति आपको आश्चर्य से भर देती है, जो यह विचार करने को बाध्य करती है कि प्राचीन काल में यहां कोई सुसंस्कृत सभ्यता विकसित हुई थी, जिसने यह मंदिर बनाया था। बनवाया होगा.

प्रश्न कर रहे प्राचीन मंदिर, हमारा गुनाह क्या है? ( जनकपुर, घघरा के हजारों साल पुराने मंदिरों की

यह स्थल कैमूर एवं देवगढ़ की गुफा में स्थित है, जहां मुरैलगढ़ की गुफा में राजाओं की गढ़ी एवं परकोटे की उपस्थिति समृद्ध सभ्यता एवं इतिहास की गवाही देती है। इस पहाड़ी की ऊंचाई अमरकंटक की पहाड़ी की ऊंचाई के लगभग बराबर होती है देवगढ़ की सबसे ऊंची चोटी समुद्र सतह से लगभग 3500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी के साथ-साथ सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के जंगल और पहाड़ भी कहीं-कहीं एक दूसरे से मिलते हैं। देवगढ़ की पहाड़ियों के अलग-अलग हिस्सों में चलती हुई जनकपुर से अंबिकापुर के उत्तरी भाग तक फैली हुई है।

मानव इतिहास की जानकारी चन्द्रभाखर राज्य अर्थात जनकपुर के कुछ स्थानों पर कंदरा मानव के चित्रों की जानकारी भी मिलती है। जो मनुष्य के गुफाओं में रहने का प्रथम प्रमाण हैं। इसी तरह कोरिया जिले के आर्थिक इनपुट का सबसे सशक्त स्तंभ चिरमिरी और मनेन्द्रगढ़ – झगराखंड में उत्पन्न की प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। मनेन्द्रगढ़ का पुराना नाम करीमटी था। जो निर्माण की ऊपरी सतह में पाए जाने वाले काली मिट्टी के कारण रखा गया था। रेलवे विस्तार के बाद कोरिया के राजकुमार मनेन्द्र प्रताप सिंह देव के नाम पर इसका नाम मनेन्द्रगढ़ रखा गया। जो बाद में एक विकसित व्यापार केन्द्र निर्मित कोरिया की आर्थिक समृद्धि का प्रयास बनाया।

छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले का इतिहास भी मुगल एवं कलचुरी काल के बाद स्पष्ट होता है। सीधा के शासक राजा बलेन्द का राज्य वर्तमान में मनेन्द्रगढ़ एमसीबी जिले के जनकपुर तक था। अर्थात् कोल किंग्स ने मालिकों के साथ मिलकर बालेंद्र राजा से यह हिस्सा जीतकर अपना शासन स्थापित किया। बछड़ा पौड़ी के आसपास कौड़िया गढ़ के पहाड़ी पर धरती की आशा गढ़ी एवं तालाब कोल राजाओं के राज्य की कहानी कहती है। स्थानीय निवासी यहाँ चैत नवरात्रि मे यहाँ बनी देवी मंदिर मे पूजापाठ करते हैं। बाद में मैनपुरी चौहानवंशी धर्ममल शाही द्वारा कोल राजाओं को हराकर यहाँ कोरिया में अपना राज्य स्थापित किया गया।

जनकपुर से कोटाडोल रोड राज्य मार्ग पर स्थित घघरा गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए चर्चित गांव की पहचान बन चुका है। मुख्य सड़क के किनारे मूर्तियों से निर्मित एक भारतीय मंदिर सभी मूर्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। जो वर्तमान में प्राकृतिक संरक्षण का शिकार हो रहा है, लेकिन उसका वैभव एवं शिल्प कला इस मंदिर को देखने के लिए बाध्य करता है। जंगल के बीच बसे इस गाँव में इस मंदिर की उपस्थिति के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि किसी विकसित सभ्यता के संरक्षक एवं शासको द्वारा ही ऐसे मंदिर बनवाए जा सकते हैं जो समय और काल के ढेरों में नष्ट हो गए होंगे, लेकिन मजबूत पक्ष की जानकारी नहीं है। होने से अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि यह मंदिर कब और किसने बनाया। कुछ लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण मौर्य कालीन राजाओं द्वारा किया गया था, वहीं कुछ पत्रों में इसे आठवीं शताब्दी का मंदिर बताया गया है, लेकिन पुरातात्विक वेत्ता डा. वर्मा के अनुसार यह मंदिर 13वीं शताब्दी का बना हुआ मंदिर है। इसकी शिल्प कला एवं मंदिर निर्माण की विधि से भी इसके निर्माण एवं समय काल की अनुमानित गणना की जा सकती है। मंदिर के प्रत्येक पत्थर पर देवी देवताओं एवं मानव आकृतियों को चित्रित करने वाली इस मंदिर की शिल्प कलाओं के अद्भुत डिजाइनर ही बने हैं। वास्तव में इस मंदिर के मंदिर की पत्थर की कार्बन डेटिंग से इसकी समय अवधि एवं प्राचीनता की स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो सकती है। अब तक ज्ञात और प्रामाणिक जानकारी के अभाव में इसके निर्माण कला एवं मंदिर निर्माण के शिल्प पर ध्यान देते हुए इसे मौर्यकालीन मंदिर के श्रेणी में रखा जाता है, क्योंकि समकालीन मंदिरों के शिल्प एवं गुंबद का निर्माण एवं प्रत्येक मीनार पर इसे मौर्यकालीन मंदिर के श्रेणी में बनाया गया है। खड़ा किया जाता है. मौर्य काल 200 से 400 ईसा पूर्व से माना जाता है और इस अनुसार यह मंदिर 2400 वर्ष पुराना कहा जा सकता है। अपुष्ट जानकारी के अनुसार मौर्य काल के सिक्कों का इस क्षेत्र में पाया जाना भी इस सिद्धांत को प्रबल बनाने वाला है।

आर्दश वेत्ता डॉ. वर्मा के अनुसार यह 13वीं शताब्दी का मंदिर है और इस 700 साल पुराने मंदिर की भव्यता आज भी देखने लायक है, लेकिन इसकी देखरेख नहीं होने के कारण यह मंदिर अब जीर्ण शीर्ण स्थिति में पहुंच चुका है। और कुछ संरचना अपने स्थान से हट गई है.. मंदिर में संभवतः शिव मंदिर मूर्ति की स्थापना की जानकारी मिलती है। हजारों वर्ष पुराने इन प्राचीन मंदिरों के एक-एक टूटे हुए पत्थर आज हमसे यह प्रश्न करते हैं कि हमारा गुनाह क्या है? हमें संरक्षित करने की दिशा में कोई हाथ क्यों नहीं उठ रहे हैं प्रश्न यह भी उठता है कि क्या हजारों साल पुराने मंदिरों को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए किसी बड़े शहर की पहचान होना जरूरी है यदि नहीं तो इस वनांचल क्षेत्र जनकपुर के इस हजारों साल पुराने मंदिर की अब तक अनदेखी क्यों की जा रही है। सत्ता और शासन बदल रहे हैं लेकिन इन प्राचीन मंदिरों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। इसके संरक्षण हेतु छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग के विस्तृत अध्ययन की आज आवश्यकता है। पुरानी विरासत की अनदेखी के कारण मंदिर का संरक्षण एवं मूर्तियों का टूटना बहुत बड़ी चिंता का विषय है। स्थानीय प्रशासन एवं पुरातत्व से इसके संरक्षण एवं विकास के लिए स्थानीय स्तर पर प्रयास की उम्मीद है, पुरातत्वविदों की टीम द्वारा इसके समय काल की गणना सहित जानकारी का एक बोर्ड यहां पर स्थापित किया जाना उचित होगा।जिले के पर्यटन सर्किट में इसे जोड़ने के प्रयास में इस मंदिर के आसपास की भूमि को आकर्षक सीमा बनाने तथा इसके नीव के आसपास चबूतरे का निर्माण तथा पर्यटन के लिए आवश्यक बैठक एवं जलपान व्यवस्था जैसे आकर्षण के केंद्र को इस क्षेत्र में बनाए रखा जा सकता है। वर्तमान समय के अनुसार फूलों के चित्र से इसे सजाकर पर्यटन सर्किट में जोड़ा जा सकता है। पर्यटन एवं धरोहर चिंताओं को भी इसके संरक्षण की दिशा में अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए ताकि यह धरोहर नष्ट होने से बचाई जा सके।

ईन उजागर पहेलियों के इस आकर्षक मंदिर को देखने के लिए आपको छत्तीसगढ़ के नए एमसीबी जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ पहुंचना होगा। यहां से आगे उत्तर दिशा की ओर स्टेट हाईवे नंबर 6 से टेढ़े मेढ़े वनांचल क्षेत्र की सड़कों से गुजरते हुए जनकपुर तक की यात्रा पूरी करनी होगी। आकर्षक वर्ष एवं सागौन के ऊंचे पहाड़ों के बीच से गुजरते हुए इस पर्यटन स्थल तक पहुंच की आनंददायी यात्रा के पल आपकी मानसिक चेतना को स्वस्थ करते हैं, वहीं मधुर स्मृतियों से परिपूर्ण यात्रा को यादगार बनाते हैं। यदि आप छत्तीसगढ़ से बाहर के राज्य से आ रहे हैं और हवाई मार्ग का उपयोग करते हैं तो आपको रायपुर के विवेकानंद हवाई अड्डे पर ट्रेन की सुविधा या मनेन्द्रगढ़ से यात्रा करनी होगी। इसके बाद यहां से 110 किलोमीटर की दूरी पर आपकी यात्रा जनकपुर में समाप्त होगी। जनकपुर हम आगे की यात्रा के लिए जनकपुर -कोटाडोल राम वन गमन पथ राज्य राजमार्ग संख्या 03 पर लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर घघरा गांव की योजना बना रहे हैं, जिसका मुख्य सड़क से 200 मीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है, जो अपनी प्राचीनता के अंजान पद पर दर्ज है। अद्भुत शिल्पकला का यह मंदिर अब धीरे-धीरे टूट रहा है। इसकी प्राचीन रचना एवं शिल्प इसकी खूबसूरती को दर्शाते हैं। मंदिर के टूटे हुए कई पत्थरों को पेड़ के पास सजाकर रखा गया है, जो उस पत्थर पर बनाए गए हैं और इसके प्रमाण भी देते हैं।

पर्यटन के लिए जनकपुर के आसपास के प्राचीन मंदिरों में आप भगवान राम के वनवास काल की स्मृतियों के अंश में रापा सीतामढ़ी मंदिर और सीतामढ़ी हरचौका की गुफाएं देखेंगे, जहां भगवान राम के चौमासा की यादें संग्रहित हैं। आप अपने परिवार सहित यहां चांद्रभखर राजा के समय से बनी चांग देवी के मंदिर में अपनी मनोकामना के लिए आशीर्वाद मांग सकते हैं। यहां लोगों के लिए शासकीय विश्रामगृह, वन विश्रामगृह तथा सामान्य लाज भी मिल जाते हैं। स्वामी आत्मानंद विद्यालय के मुख्य द्वार के आसपास कुछ छोटे होटल यहां आपके चाय नाश्ते एवं भोजन की व्यवस्था कर सकते हैं। आप भोजन प्रसाद की व्यवस्था हेतु चांग देवी मंदिर में भी पुजारी जी को अग्रिम सूचना देकर दोपहर में भुगतान करके भोजन प्रसाद प्राप्त कर सकते हैं।

पर्यटन खुबियों से भरपूर प्राकृतिक वन एवं आध्यात्मिक मंदिरों से भरपूर जनकपुर क्षेत्र की मुरैलगढ़ की पहाड़ियों का आकर्षण आपको कहा जाता है। आप रास्ते में जमीन से निकले उपका पानी का भी आनंद ले सकते हैं। रमदहा जलप्रपात सहित कई पर्यटन स्थलों का एक मार्ग आपको रोमांचित करता है। फिर क्या है अपने बच्चों सहित एक पर्यटन स्थल घाघरा के रोमांचक एवं आध्यात्मिक हजारों साल पुराने मौर्य कालीन मंदिर को देखने के लिए बनाएं.बस इतनी ही अगली बार फिर मिलेंगे किसी नए पर्यटन पर

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छत्तीसगढ़ विधानसभा का षष्ठम् सत्र 22 जुलाई से

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रायपुर, 25 जून 2024  : छत्तीसगढ़ विधानसभा सचिव से प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ की षष्ठम् विधानसभा का तृतीय सत्र 22 जुलाई 2024 से प्रारंभ होगी और 26 जुलाई 2024 तक चलेगा। वर्षाकालीन इस सत्र में कुल 05 बैठकें होंगी।
इस सत्र में वित्तीय कार्य के साथ अन्य शासकीय कार्य सम्पादित किये जायेंगे।

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स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने नवीन चिकित्सा महाविद्यालयों के सुविधाओं की ली जानकारी

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रायपुर, 25 जून 2024  : प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्री श्याम बिहारी जायसवाल ने आज मंत्रालय महानदी भवन में स्वास्थ्य विभाग के विभिन्न योजनाओं की समीक्षा की और विभिन्न बैठकों में शामिल हुए। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के मंशानुसार राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को और बेहतर करने के लिए श्री जायसवाल ने विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से विस्तार पूर्वक चर्चा की। आज की बैठक में सबसे पहले राज्य के 03 नवीन चिकित्सा महाविद्यालय कांकेर, कोरबा एवं महासमुंद के सुविधाओं की जानकारी ली गई और उनकी प्रगति की समीक्षा कर आवश्यक  दिशा निर्देश दिए गए ।

स्वास्थ्य मंत्री ने मुख्यमंत्री शासकीय अस्पताल रूपांतरण कोष की अधिशासी समिति ( CMPHTFC) की बैठक में भी जरूरी निर्देश दिए। इसके साथ ही सीजीएमएससी लिमिटेड के संचालक मंडल की 46वीं बैठक में भी शामिल होकर स्वास्थ्य मंत्री ने विभाग के कार्य और योजनाओं की समीक्षा की। स्वास्थ्य मंत्री ने बैठक में HSCC  द्वारा पैथोलॉजी लैब स्ट्रेंथनिंग के संबंध में आवश्यक कार्य योजना के निर्देश भी दिए हैं।

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छत्तीसगढ़ राज्य निर्वाचन आयुक्त के तौर पर अजय सिंह ने संभाला कार्यभार

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रायपुर, 25 जून 2024 : छत्तीसगढ़ राज्य निर्वाचन आयोग के पाँचवे निर्वाचन आयुक्त के तौर पर आज श्री अजय सिंह ने कार्यभार संभाल लिया है। 1983 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी श्री अजय सिंह फरवरी 2020 में शासकीय सेवा से निवृत्त हुए हैं। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर नियुक्ति से पहले वे उपाध्यक्ष, राज्य योजना आयोग के तौर पर सेवाएं दे रहे थे। वहाँ से पदमुक्त होकर उन्होंने आज राज्य निर्वाचन आयुक्त का पदभार ग्रहण किया है।

स्वागत के इस मौके पर सचिव, डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भुरे ने राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारियों से आयुक्त श्री सिंह का संक्षिप्त परिचय कराते हुए इन अधिकारियों को सौंपे गये दायित्वों की भी जानकारी दी। आयुक्त श्री सिंह ने इसके बाद आयोग के सभी कक्षों का मुआयना किया और आने वाले समय में होने वाले नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायतों के आम निर्वाचन के लिए तैयारियां करने पर जोर दिया है।

राज्य निर्वाचन आयुक्त श्री सिंह के पदभार ग्रहण करने पर आयोग की ओर से उनका आत्मीय स्वागत किया गया। इस मौके पर सचिव डॉ. भुरे, उप सचिव डॉ. नेहा कपूर, अवर सचिव डॉ. अनुप्रिया मिश्रा तथा अवर सचिव श्री प्रणय कुमार वर्मा सहित आयोग के अन्य अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित रहे।

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