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कब है विश्वकर्मा पूजा? उस दिन बनेगा सुकर्मा और रवि योग
विश्वकर्मा पूजा का दिन देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा जी के लिए समर्पित है. इस दिन विश्वकर्मा जी की पूजा करते हैं. विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर फैक्ट्री और दुकानों में मशीन, औजार आदि की पूजा करते हैं, वहीं कलम, दवात, बहीखाता, वाहन आदि की भी पूजा होती है इस साल विश्वकर्मा पूजा के दिन दो शुभ योग बनेंगे. जो सुकर्मा योग और रवि योग होगा. विश्वकर्मा पूजा उस दिन करते हैं, जिस दिन कन्या संक्रांति होती है. आइए जानते हैं कि विश्वकर्मा पूजा कब है और पूजा का मुहूर्त क्या है?
विश्वकर्मा पूजा 2024 तारीख
इस साल कन्या संक्रांति 16 सितंबर का है, इसलिए विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर सोमवार के दिन है. उस दिन सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करेंगे, इसके साथ ही सौर कैलेंडर का 6वां माह कन्या का शुभारंभ होगा.
2 शुभ योग में विश्वकर्मा पूजा 2024
इस बार विश्वकर्मा पूजा पर दो शुभ योग बन रहे हैं. विश्वकर्मा पूजा के दिन सुकर्मा योग और रवि योग बन रहा है. विश्वकर्मा पूजा के दिन सुकर्मा योग प्रात:काल से लेकर दिन में 11 बजकर 42 मिनट तक है. उसके बाद से धृति योग बनेगा. वहीं रवि योग शाम के समय 4 बजकर 33 मिनट पर शुरू होगा और यह अगले दिन 17 सितंबर को सुबह 6 बजकर 7 मिनट तक मान्य होगा.
विश्वकर्मा पूजा 2024 मुहूर्त
16 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा आप सुकर्मा योग में कर सकते हैं. वैसे सुबह में 6 बजकर 23 मिनट से सुबह 9 बजकर 14 मिनट तक अच्छा समय है. उस दिन का शुभ मुहूर्त या अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 40 मिनट तक है. विश्वकर्मा पूजा के दिन लाभ-उन्नति मुहूर्त सुबह में 6 बजकर 23 मिनट से सुबह 7 बजकर 49 मिनट तक है, उसके बाद अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त सुबह 7 बजकर 49 मिनट से सुबह 9 बजकर 14 मिनट तक है. विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर धनिष्ठा नक्षत्र प्रात:काल से लेकर शाम 4 बजकर 33 मिनट तक है, इसके बाद से शतभिषा नक्षत्र है.
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विश्वकर्मा पूजा करने से व्यक्ति को बिजनेस में उन्नति मिलती है. भगवान विश्वकर्मा के आशीर्वाद से व्यापार में तरक्की मिलती है. कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के आदेश पर विश्वकर्मा जी ने सृष्टि का मानचित्र बनाया था. इनको संसार का पहला इंजीनियर भी कहते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, विश्वकर्मा जी ने पुष्पक विमान, द्वारका नगरी, सोने की लंका के अलावा देवी-देवताओं के अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया था.
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कब से शुरू हो रही है शारदीय नवरात्रि? जानें कलश स्थापना मुहूर्त…
शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ पितृ पक्ष के समापन के बाद यानी आश्विन आमवस्या के बाद ही होता है. आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ होता है. यह नवरात्रि शरद ऋतु में आती है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं. एक नवरात्रि चैत्र माह में आती है, उसे चैत्र नवरात्रि के नाम से जानते हैं. इन दो नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी होती हैं. शारदीय नवरात्रि के समय में कोलकाता में प्रसिद्ध दुर्गा पूजा का आयोजन होता है. शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि विधान से पूजा करते हैं. दुर्गा अष्टमी या महा अष्टमी के दिन कन्या पूजा, नवमी को हवन और दशमी के दिन शारदीय नवरात्रि का समापन हो जाता है
शारदीय नवरात्रि 2024 का शुभारंभ
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 2 अक्टूबर को देर रात 12:18 बजे से होगा. यह तिथि 4 अक्टूबर को तड़के 02:58 बजे तक मान्य रहेगी. ऐसे में उदयातिथि के आधार पर इस साल शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से हो रहा है.
शारदीय नवरात्रि 2024 कलश स्थापना मुहूर्त
3 अक्टूबर से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्रि का कलश स्थापना करने के लिए दो शुभ मुहूर्त प्राप्त हो रहे हैं. कलश स्थापना के लिए सुबह में शुभ मुहूर्त 6 बजकर 15 मिनट से सुबह 7 बजकर 22 मिनट तक है. सुबह में घट स्थापना के लिए आपको 1 घंटा 6 मिनट का समय प्राप्त होगा.इसके अलावा दोपहर में भी कलश स्थापना का मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त में है. यह सबसे अच्छा समय माना जाता है. दिन में आप 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट के बीच कभी भी कलश स्थापना कर सकते हैं. दोपहर में आपको 47 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा.
दुर्गा अष्टमी 2024 कब है?
दुर्गा अष्टमी आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. इस साल दुर्गा अष्टमी 11 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है. उस दिन कन्या पूजा की जाएगी.
शारदीय नवरात्रि 2024 कैलेंडर
शारदीय नवरात्रि का पहला दिन: 3 अक्टूबर, गुरुवार: घटस्थापना, शैलपुत्री पूजा
शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन: 4 अक्टूबर, शुक्रवार: ब्रह्मचारिणी पूजा
शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन: 5 अक्टूबर, शनिवार: चंद्रघंटा पूजा
शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन: 6 अक्टूबर, रविवार: विनायक चतुर्थी
शारदीय नवरात्रि का पांचवा दिन: 7 अक्टूबर, सोमवार: कूष्मांडा पूजा
शारदीय नवरात्रि का छठा दिन: 8 अक्टूबर, मंगलवार: स्कंदमाता पूजा
शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन: 9 अक्टूबर, बुधवार: कात्यायनी पूजा
शारदीय नवरात्रि का आठवां दिन: 10 अक्टूबर, गुरुवार: कालरात्रि पूजा
शारदीय नवरात्रि का नौवां दिन: 11 अक्टूबर, शुक्रवार: दुर्गा अष्टमी, महागौरी पूजा
शारदीय नवरात्रि का दसवां दिन: 12 अक्टूबर, शनिवार: नवमी हवन, दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी, दशहरा, शस्त्र पूजा
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इस बार नवरात्रि में माता दुर्गा की क्या है सवारी? जानें इसका प्रभाव शुभ होगा या अशुभ?
नवरात्रि हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दौरान 9 दिनों तक भक्त माता के नौ रूपों की पूजा करते हैं। साल 2024 में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्तूबर से होने जा रही है। हर बार माता अलग-अलग वाहन पर सवार होकर आती हैं, और माता के वाहन के अनुसार कुछ न कुछ प्रभाव भी देश-दुनिया पर देखने को मिलता है। ऐसे में आज हम आपको बताने वाले हैं कि 3 अक्तूबर 2024 से शुरू होने वाले नवरात्रि पर्व के दौरान माता किस वाहन पर सवार होकर आएंगी, और इसका क्या प्रभाव देखने को मिल सकता है।
शारदीय नवरात्रि 2024
इस साल शारदीय नवरात्रि 3 अक्तूबर से शुरू होंगी। पहले दिन घट स्थापना के साथ ही माता शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। नवरात्रि का समापन 11 अक्तूबर के दिन होगा। 12 अक्तूबर को दुर्गा विसर्जन और विजयदशमी मनाई जाएगी।
क्या है माता की सवारी?
नवरात्रि के दौरान माता की सवारी वार के अनुसार तय होती है। अगर नवरात्रि की शरुआत रविवार और सोमवार से होती है तो माता की सवारी हाथी होती है। मंगल और शनि के दिन नवरात्रि की शुरुआत हो रही हो तो माता की सवारी घोड़ा होता है। वहीं गुरु और शुक्रवार को अगर नवरात्रि की शुरुआत हो तो माता की सवारी डोली या पालकी होती है। साल 2024 में नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार के दिन हो रही है, इसलिए माता की सवारी डोली होगी। आइए अब जान लेते हैं कि जब माता डोली पर सवार होकर आती हैं, तो इसका देश-दुनिया पर क्या प्रभाव देखने को मिलता है।
डोली पर सवार होकर आएंगी माता, ऐसा होगा प्रभाव
धर्म के जानकार मानते हैं कि, माता दुर्गा नवरात्रि के दौरान जब भी डोली या पालकी पर सवार होकर आती हैं तो इसे अच्छा संकेत नहीं माना जाता। माता का डोली पर सवार होकर आना देश-दुनिया में कई मुश्किल स्थितियों को पैदा कर सकता है। इसकी वजह से देश-दुनिया में आंदोलन हो सकता है। लोगों की सेहत में भी गिरावट देखने को मिलती है, और किसी तरह की महामारी फैलने का भी खतरा रहता है। माता जब डोली पर सवार आकर आती हैं तो, अराजकता की स्थिति बन सकती है और किसी वजह से हिंसा भी हो सकती है।
साथ ही मतभेदों के कारण लोगों को पारिवारिक जीवन में भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए डोली पर सवार होकर आयी माता का नवरात्रि के दौरान पूरे विधि-विधान से भक्तों को पूजन करना चाहिए। इससे कई मुश्किल स्थितियों से आप बचकर निकल सकते हैं।
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किसी कार्य की शुरुआत से पहले क्यों की जाती है भगवान गणेश की पूजा?
भगवान गणेश को हिंदू धर्म में प्रथम देव माना जाता है. उनकी पूजा-अर्चना से सारे कष्ट दूर होते हैं. भगवान गणेश हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय देवों में से एक हैं. गणेश चतुर्थी के मौके पर देशभर में भगवान गणेश की पूजा होती है और खासतौर पर उनके जन्म के रूप में इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन भगवान गणेश हिंदू धर्म के ऐसे भगवान हैं जिनकी पूजा सबसे ज्यादा होती है. किसी भी काम को शुरू करने से पहले लोग भगवान गणेश का नाम लेते हैं और उनकी पूजा करते हैं. उन्हें हिंदू धर्म में भाग्य का देवता भी कहा जाता है. बता रहे हैं कि आखिर वो कौन सी कथा है जिस आधार पर भगवान गणेश हिंदू धर्म के प्रथम देव हैं.
क्यों सबसे पहले पूजे जाते हैं भगवान गणेश?
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. एक बार की बात है. सभी देवी-देवता ही आपस में भिड़ गए कि आखिर सबसे पहले किसकी पूजा की जानी चाहिए. आपस में देवताओं को इस तरह भिड़ता देख वहां पर नारद जी प्रकट हुए. उन्होंने सभी देवताओं को सलाह दी कि इस सवाल के समाधान के लिए वे शिव जी के पास जाएं. सभी देवता इसके बाद शिव जी के पास गए और उनके सामने ये सवाल रखा. बहुत सोचने के बाद शिव जी ने भी सभी के सामने एक प्रतियोगिता रखी. इस प्रतियोगिता का आधार यही था कि जो भी इसे जीतेगा वही सबसे पहले पूजे जाने का अधिकारी होगा.
क्या थी प्रतियोगिता और कौन जीता?
शिव जी ने कहा कि सभी देवी-देवताओं को अपने-अपने वाहन से पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाना होगा. जो भी सबसे पहले पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर वापिस आ जाएगा उसे सबसे पहले पूजा जाएगा. सभी देवी-देवता इसके बाद अपना-अपना वाहन लेकर ब्रह्मांड यात्रा पर निकल गए. लेकिन इस दौरान वहां पर मौजूद गणेश जी दुविधा में पड़ गए और सोच-विचार करने लग गए. दरअसल भगवान गणेश की सवारी चूहा है और चूहा बहुत छोटा होता है. साथ ही वो धीमे भी चलता है. ऐसे में भगवान गणेश को लगा कि इस सवारी के साथ वे ब्रह्मांड की यात्रा सबसे पहले कैसे कर पाएंगे. ये लगभग असंभव सा था.
कौन है हिंदू धर्म के प्रथम देवता?
इसके बाद भगवान गणेश ने एक तरकीब निकाली. उन्होंने पास खड़े अपने माता-पिता, शिव-पार्वती जी का 7 बार परिक्रमा किया और उनके सामने आकर खड़े हो गए. जब बाद में सभी देवी-देवता ब्रह्मांड की परिक्रमा कर के वापिस लौटे तो वहां पर पहले से ही गणेश जी मौजूद थे. गणेश जी को वहां पर देखकर सभी हैरान रह गए. सभी को लगा कि भगवान गणेश चूहे की सवारी से कैसे ब्रह्मांड की यात्रा इतनी जल्दी कर पाए. तब शिव जी ने गणेश भगवान को विजयी घोषित करते हुए बताया कि इस संसार में माता-पिता को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. उनसे ऊपर किसी का दर्जा नहीं है. ऐसे में माता-पिता की परिक्रमा करना साक्षात ब्रह्मांड की परिक्रमा के समान है. तभी से किसी भी भगवान से पहले गणेज जी का नाम आता है और वे हिंदू धर्म के प्रथम देव हैं.
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