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गणेश चतुर्थी के दिन क्यों बनायी जाती है चांद से दुरी,अगर दिख जाए तो अपनाएं ये उपाय

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4 अगस्त 2024:-  गणेश चतुर्थी का त्योहार आ रहा है. ये त्योहार देशभर में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है. इस बार 7 सितंबर 2024 को गणेश चतुर्थी का त्योहार पड़ रहा है. इस दिन लोग गणपति बप्पा की आराधना करते हैं और कई लोग तो बप्पा की मूर्ति की स्थापना भी अपने घरों में करते हैं. इस दिन को लेकर एक मान्यता भी है. ये मान्यता चांद को लेकर है. कहा जाता है कि अगर आपने गणेश चतुर्थी के दिन चांद को देख लिया तो ये बहुत अशुभ माना जाता है और ऐसा नहीं करना चाहिए. लेकिन अगर अंजाने में आपने ऐसा किया तो इसका उपाय भी है.

चतुर्थी पर क्यों नहीं देखना चाहिए चांद?

गणेश चतुर्थी के दिन चांद देखना अशुभ होता है. ऐसा करने पर मिथ्या दोष लग जाता है. मिथ्या दोष से बचने के लिए इस दिन चांद को देखना वर्जित है. अगर आपने ऐसा किया तो इससे जीवन में कई सारी दिक्कतें आती हैं. ये एक अनचाहा दोष है और इससे व्यक्ति गलत और झूठे आरोपों में फंस सकता है.

क्या है इसके पीछे की मान्यता

इस दोष के पीछे एक पौकाणिक कहानी भी है जो गणेश जी और उनकी सवारी चूहे से जुड़ी हुई है. दरअसल एक बार भगवान गणेश चूहे की सवारी करते हुए अपने घर से निकले. मगर वे अपने भारी वजन के कारण लड़खड़ा गए. उन्हें लड़खड़ाते हुए देखकर चंद्रमा हंसने लग गए. इससे गणेश भगवान को क्रोध आ गया. इस दौरान ही भगवान गणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि जो भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी की बेला में अगर रात में चांद को देख लेगा तो उसे समाज में तिरस्कार और अपमान झेलना पड़ेगा. इसके अलावा ऐसे लोगों पर गलत दोष और झूठा आरोप लग सकता है और मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

भगवान कृष्ण भी हो चुके हैं शिकार

एक बार की बात है. भगवान कृष्ण पर एक बार स्यमंतक नामक मणि चुराने का आरोप लगा था. उन्होंने गणेश चतुर्थी के मौके पर चांद को देख लिया था और वे भी गणेश भगवान के श्राप से मुक्त नहीं हो सके थे. उन्हें भी झूठे आरोपों का सामना करना पड़ा था. तब नारद जी ने उन्हें ये कथा सुनाई थी.

दिख जाए तो अपनाएं ये उपाय

लेकिन हर चीज का एक उपाय भी है. अगर आपने चतुर्थी पर चांद देख लिया है तो कुछ उपाय को अपना कर आप इससे मुक्ति पा सकते हैं. आप गणेश भगवान का व्रत रखकर इस दोष से मुक्त हो सकते हैं. इसके अलावा आप एक मंत्र का जाप कर के भी इस दोष से मुक्त हो सकते हैं.

सिंहः प्रसेनमवधीतसिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मरोदिस्तव ह्येषा स्यामंतकः॥

अगर आप सच्चे मन से इस मंत्र का जाप करें तो आपको इससे बहुत फायदा मिलेगा और इस दोष से आपको मुक्ति भी मिल जाएगी.

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2 या 3 अक्टूबर कब से शुरू हो रही है शारदीय नवरात्रि? जानें कलश स्थापना मुहूर्त…

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शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ पितृ पक्ष के समापन के बाद यानी आश्विन आमवस्या के बाद ही होता है. आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ होता है. यह नवरात्रि शरद ऋतु में आती है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं. एक नवरात्रि चैत्र माह में आती है, उसे चैत्र नवरात्रि के नाम से जानते हैं. इन दो नवरा​त्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी होती हैं. शारदीय नवरात्रि के समय में कोलकाता में प्रसिद्ध दुर्गा पूजा का आयोजन होता है. शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि विधान से पूजा करते हैं. दुर्गा अष्टमी या महा अष्टमी के दिन कन्या पूजा, नवमी को हवन और दशमी के दिन शारदीय नवरात्रि का समापन हो जाता है

शारदीय नवरात्रि 2024 का शुभारंभ

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा ति​थि का प्रारंभ 2 अक्टूबर को देर रात 12:18 बजे से होगा. यह तिथि 4 अक्टूबर को तड़के 02:58 बजे तक मान्य रहेगी. ऐसे में उदयाति​थि के आधार पर इस साल शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से हो रहा है.

शारदीय नवरात्रि 2024 कलश स्थापना मुहूर्त

3 अक्टूबर से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्रि का कलश स्थापना करने के लिए दो शुभ मुहूर्त प्राप्त हो रहे हैं. कलश स्थापना के लिए सुबह में शुभ मुहूर्त 6 बजकर 15 मिनट से सुबह 7 बजकर 22 मिनट तक है. सुबह में घट स्थापना के लिए आपको 1 घंटा 6 मिनट का समय प्राप्त होगा.इसके अलावा दोपहर में भी कलश स्थापना का मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त में है. यह सबसे अच्छा समय माना जाता है. दिन में आप 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट के बीच कभी भी कलश स्थापना कर सकते हैं. दोपहर में आपको 47 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा.

दुर्गा अष्टमी 2024 कब है?

दुर्गा अष्टमी आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. इस साल दुर्गा अष्टमी 11 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है. उस दिन कन्या पूजा की जाएगी.

शारदीय नवरात्रि 2024 कैलेंडर

शारदीय नवरात्रि का पहला दिन: 3 अक्टूबर, गुरुवार: घटस्थापना, शैलपुत्री पूजा
शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन: 4 अक्टूबर, शुक्रवार: ब्रह्मचारिणी पूजा
शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन: 5 अक्टूबर, शनिवार: चंद्रघंटा पूजा
शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन: 6 अक्टूबर, रविवार: विनायक चतुर्थी
शारदीय नवरात्रि का पांचवा दिन: 7 अक्टूबर, सोमवार: कूष्मांडा पूजा
शारदीय नवरात्रि का छठा दिन: 8 अक्टूबर, मंगलवार: स्कंदमाता पूजा
शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन: 9 अक्टूबर, बुधवार: कात्यायनी पूजा
शारदीय नवरात्रि का आठवां दिन: 10 अक्टूबर, गुरुवार: कालरात्रि पूजा
शारदीय नवरात्रि का नौवां दिन: 11 अक्टूबर, शुक्रवार: दुर्गा अष्टमी, महागौरी पूजा
शारदीय नवरात्रि का दसवां दिन: 12 अक्टूबर, शनिवार: नवमी हवन, दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी, दशहरा, शस्त्र पूजा

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इस बार नवरात्रि में माता दुर्गा की क्या है सवारी? जानें इसका प्रभाव शुभ होगा या अशुभ?

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नवरात्रि हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दौरान 9 दिनों तक भक्त माता के नौ रूपों की पूजा करते हैं। साल 2024 में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्तूबर से होने जा रही है। हर बार माता अलग-अलग वाहन पर सवार होकर आती हैं, और माता के वाहन के अनुसार कुछ न कुछ प्रभाव भी देश-दुनिया पर देखने को मिलता है। ऐसे में आज हम आपको बताने वाले हैं कि 3 अक्तूबर 2024 से शुरू होने वाले नवरात्रि पर्व के दौरान माता किस वाहन पर सवार होकर आएंगी, और इसका क्या प्रभाव देखने को मिल सकता है।

शारदीय नवरात्रि 2024 

इस साल शारदीय नवरात्रि 3 अक्तूबर से शुरू होंगी। पहले दिन घट स्थापना के साथ ही माता शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। नवरात्रि का समापन 11 अक्तूबर के दिन होगा। 12 अक्तूबर को दुर्गा विसर्जन और विजयदशमी मनाई जाएगी।

क्या है माता की सवारी?

नवरात्रि के दौरान माता की सवारी वार के अनुसार तय होती है। अगर नवरात्रि की शरुआत रविवार और सोमवार से होती है तो माता की सवारी हाथी होती है। मंगल और शनि के दिन नवरात्रि की शुरुआत हो रही हो तो माता की सवारी घोड़ा होता है। वहीं गुरु और शुक्रवार को अगर नवरात्रि की शुरुआत हो तो माता की सवारी डोली या पालकी होती है। साल 2024 में नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार के दिन हो रही है, इसलिए माता की सवारी डोली होगी। आइए अब जान लेते हैं कि जब माता डोली पर सवार होकर आती हैं, तो इसका देश-दुनिया पर क्या प्रभाव देखने को मिलता है।

डोली पर सवार होकर आएंगी माता, ऐसा होगा प्रभाव

धर्म के जानकार मानते हैं कि, माता दुर्गा नवरात्रि के दौरान जब भी डोली या पालकी पर सवार होकर आती हैं तो इसे अच्छा संकेत नहीं माना जाता। माता का डोली पर सवार होकर आना देश-दुनिया में कई मुश्किल स्थितियों को पैदा कर सकता है। इसकी वजह से देश-दुनिया में आंदोलन हो सकता है। लोगों की सेहत में भी गिरावट देखने को मिलती है, और किसी तरह की महामारी फैलने का भी खतरा रहता है। माता जब डोली पर सवार आकर आती हैं तो, अराजकता की स्थिति बन सकती है और किसी वजह से हिंसा भी हो सकती है।

साथ ही मतभेदों के कारण लोगों को पारिवारिक जीवन में भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए डोली पर सवार होकर आयी माता का नवरात्रि के दौरान पूरे विधि-विधान से भक्तों को पूजन करना चाहिए। इससे कई मुश्किल स्थितियों से आप बचकर निकल सकते हैं।

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किसी कार्य की शुरुआत से पहले क्यों की जाती है भगवान गणेश की पूजा?

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भगवान गणेश को हिंदू धर्म में प्रथम देव माना जाता है. उनकी पूजा-अर्चना से सारे कष्ट दूर होते हैं. भगवान गणेश हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय देवों में से एक हैं. गणेश चतुर्थी के मौके पर देशभर में भगवान गणेश की पूजा होती है और खासतौर पर उनके जन्म के रूप में इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन भगवान गणेश हिंदू धर्म के ऐसे भगवान हैं जिनकी पूजा सबसे ज्यादा होती है. किसी भी काम को शुरू करने से पहले लोग भगवान गणेश का नाम लेते हैं और उनकी पूजा करते हैं. उन्हें हिंदू धर्म में भाग्य का देवता भी कहा जाता है. बता रहे हैं कि आखिर वो कौन सी कथा है जिस आधार पर भगवान गणेश हिंदू धर्म के प्रथम देव हैं.

क्यों सबसे पहले पूजे जाते हैं भगवान गणेश?

पौराणिक मान्यताओं की मानें तो सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. एक बार की बात है. सभी देवी-देवता ही आपस में भिड़ गए कि आखिर सबसे पहले किसकी पूजा की जानी चाहिए. आपस में देवताओं को इस तरह भिड़ता देख वहां पर नारद जी प्रकट हुए. उन्होंने सभी देवताओं को सलाह दी कि इस सवाल के समाधान के लिए वे शिव जी के पास जाएं. सभी देवता इसके बाद शिव जी के पास गए और उनके सामने ये सवाल रखा. बहुत सोचने के बाद शिव जी ने भी सभी के सामने एक प्रतियोगिता रखी. इस प्रतियोगिता का आधार यही था कि जो भी इसे जीतेगा वही सबसे पहले पूजे जाने का अधिकारी होगा.

क्या थी प्रतियोगिता और कौन जीता?

शिव जी ने कहा कि सभी देवी-देवताओं को अपने-अपने वाहन से पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाना होगा. जो भी सबसे पहले पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर वापिस आ जाएगा उसे सबसे पहले पूजा जाएगा. सभी देवी-देवता इसके बाद अपना-अपना वाहन लेकर ब्रह्मांड यात्रा पर निकल गए. लेकिन इस दौरान वहां पर मौजूद गणेश जी दुविधा में पड़ गए और सोच-विचार करने लग गए. दरअसल भगवान गणेश की सवारी चूहा है और चूहा बहुत छोटा होता है. साथ ही वो धीमे भी चलता है. ऐसे में भगवान गणेश को लगा कि इस सवारी के साथ वे ब्रह्मांड की यात्रा सबसे पहले कैसे कर पाएंगे. ये लगभग असंभव सा था.

कौन है हिंदू धर्म के प्रथम देवता?

इसके बाद भगवान गणेश ने एक तरकीब निकाली. उन्होंने पास खड़े अपने माता-पिता, शिव-पार्वती जी का 7 बार परिक्रमा किया और उनके सामने आकर खड़े हो गए. जब बाद में सभी देवी-देवता ब्रह्मांड की परिक्रमा कर के वापिस लौटे तो वहां पर पहले से ही गणेश जी मौजूद थे. गणेश जी को वहां पर देखकर सभी हैरान रह गए. सभी को लगा कि भगवान गणेश चूहे की सवारी से कैसे ब्रह्मांड की यात्रा इतनी जल्दी कर पाए. तब शिव जी ने गणेश भगवान को विजयी घोषित करते हुए बताया कि इस संसार में माता-पिता को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. उनसे ऊपर किसी का दर्जा नहीं है. ऐसे में माता-पिता की परिक्रमा करना साक्षात ब्रह्मांड की परिक्रमा के समान है. तभी से किसी भी भगवान से पहले गणेज जी का नाम आता है और वे हिंदू धर्म के प्रथम देव हैं.

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