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भगवान गणेश को पूजा में क्यों चढ़ायी जाती है दूर्वा, जानें इसके पीछे की कथा
गणेश चतुर्थी, जिसे गणेशोत्सव भी कहते हैं, हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. यह त्योहार भारतीय कैलेंडर के भाद्रपद महीने की चतुर्थी तिथि को पड़ता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में आती है. गणेश चतुर्थी के अंत में, यानी दसवें दिन, गणेश विसर्जन या ‘अनंत चतुर्दशी’ मनाया जाता है. इस दिन, भक्त गणेश प्रतिमा को जल में विसर्जित करते हैं और गणेश जी से पुनः अगले वर्ष वापस आने की प्रार्थना करते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, दूर्वा का गणेश जी की पूजा में बहुत अधिक महत्व होता है. बिना दूर्वा के भगवान गणेश की पूजा अधूरी मानी जाती है. दूर्वा चढ़ाने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं. गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर आइए जानते हैं कि आखिर गणपति बप्पा को दूर्वा इतनी प्रिय किस कारण से है और उनकी पूजा में दूर्वा क्यों चढ़ाई जाती है .
कब है गणेश चतुर्थी
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का आरंभ 6 सितंबर की दोपहर को 3 बजकर 1 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन अगले दिन 7 सितंबर की शाम 5 बजकर 37 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, गणेश चतुर्थी का शुभारंभ 7 सितंबर, दिन शनिवार से होगा. इसी दिन गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना होगी और व्रत रखा जाएगा.
धार्मिक महत्व
गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है. माना जाता है दूर्वा चढ़ाने से सभी प्रकार के विघ्न दूर होते हैं और कार्य सिद्ध होते हैं. दूर्वा को पवित्र और शुद्ध माना जाता है. दूर्वा चढ़ाने के पीछे यह मान्यता है कि पूजा का कार्य पवित्रता के साथ किया जा रहा है. साथ ही गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली का आगमन होता है. यह माना जाता है कि दूर्वा भगवान गणेश को खुश करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का आसान उपाय है. दूर्वा भगवान गणेश के प्रति सम्मान और प्रेम का प्रतीक है. यह अर्पण भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा और भक्ति को दर्शाता है. इसलिए गणपति की पूजा में दूर्वा को जरूर अर्पित किया जाता है.
पूजा में दूर्वा का उपयोग
मान्यता के अनुसार, गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने से संकट दूर होते हैं और सब कार्य सिद्ध होते हैं. साथ ही किसी भी शुभ कार्य करने से पहले दूर्वा को घर के मुख्य द्वार पर लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. माना जाता है कि दूर्वा को घर के चारों ओर घुमाने से नकारात्मक ऊर्जा भी दूर होती है.
गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं
एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य हुआ करता था. इसके आतंक और अत्याचार से मुनि-ऋषियों और देवताओं से लेकर मनुष्य तक सभी परेशान थे. ये सभी को जिंदा निगल जाता था. इससे हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था. ऐसे में सभी देव गण भगवान शिव के पास पहुंचे और उन्हें दैत्य के अत्याचार के बारे में बताया. उन्होंने भगवान से विनती की वो इस दैत्य को खत्म कर दें. इसपर भगवान शिव ने कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश सिर्फ गणेश जी ही कर सकते हैं. इसके बाद सभी देव गणों ने मिलकर गणेश जी से प्रार्थना की और दैत्य के नाश की विनती की. तब भगवान गणेश दैत्य के पास पहुंचे और उसे निगल लिया. भगवान ने राक्षस को निगल तो लिया, लेकिन राक्षस को निगलने के बाद उन्हें पेट में जलन होने लगी. तब कश्यप ऋषि ने उन्हें 21 दूर्वा घास खाने को दी थी, जिससे उनकी जलन शांत हुई. तभी से माना जाता है कि गणेश जी दूर्वा को चढ़ाने से गणेश जी प्रसन्न होते हैं.
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इस बार नवरात्रि में माता दुर्गा की क्या है सवारी? जानें इसका प्रभाव शुभ होगा या अशुभ?
नवरात्रि हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दौरान 9 दिनों तक भक्त माता के नौ रूपों की पूजा करते हैं। साल 2024 में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्तूबर से होने जा रही है। हर बार माता अलग-अलग वाहन पर सवार होकर आती हैं, और माता के वाहन के अनुसार कुछ न कुछ प्रभाव भी देश-दुनिया पर देखने को मिलता है। ऐसे में आज हम आपको बताने वाले हैं कि 3 अक्तूबर 2024 से शुरू होने वाले नवरात्रि पर्व के दौरान माता किस वाहन पर सवार होकर आएंगी, और इसका क्या प्रभाव देखने को मिल सकता है।
शारदीय नवरात्रि 2024
इस साल शारदीय नवरात्रि 3 अक्तूबर से शुरू होंगी। पहले दिन घट स्थापना के साथ ही माता शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। नवरात्रि का समापन 11 अक्तूबर के दिन होगा। 12 अक्तूबर को दुर्गा विसर्जन और विजयदशमी मनाई जाएगी।
क्या है माता की सवारी?
नवरात्रि के दौरान माता की सवारी वार के अनुसार तय होती है। अगर नवरात्रि की शरुआत रविवार और सोमवार से होती है तो माता की सवारी हाथी होती है। मंगल और शनि के दिन नवरात्रि की शुरुआत हो रही हो तो माता की सवारी घोड़ा होता है। वहीं गुरु और शुक्रवार को अगर नवरात्रि की शुरुआत हो तो माता की सवारी डोली या पालकी होती है। साल 2024 में नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार के दिन हो रही है, इसलिए माता की सवारी डोली होगी। आइए अब जान लेते हैं कि जब माता डोली पर सवार होकर आती हैं, तो इसका देश-दुनिया पर क्या प्रभाव देखने को मिलता है।
डोली पर सवार होकर आएंगी माता, ऐसा होगा प्रभाव
धर्म के जानकार मानते हैं कि, माता दुर्गा नवरात्रि के दौरान जब भी डोली या पालकी पर सवार होकर आती हैं तो इसे अच्छा संकेत नहीं माना जाता। माता का डोली पर सवार होकर आना देश-दुनिया में कई मुश्किल स्थितियों को पैदा कर सकता है। इसकी वजह से देश-दुनिया में आंदोलन हो सकता है। लोगों की सेहत में भी गिरावट देखने को मिलती है, और किसी तरह की महामारी फैलने का भी खतरा रहता है। माता जब डोली पर सवार आकर आती हैं तो, अराजकता की स्थिति बन सकती है और किसी वजह से हिंसा भी हो सकती है।
साथ ही मतभेदों के कारण लोगों को पारिवारिक जीवन में भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए डोली पर सवार होकर आयी माता का नवरात्रि के दौरान पूरे विधि-विधान से भक्तों को पूजन करना चाहिए। इससे कई मुश्किल स्थितियों से आप बचकर निकल सकते हैं।
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किसी कार्य की शुरुआत से पहले क्यों की जाती है भगवान गणेश की पूजा?
भगवान गणेश को हिंदू धर्म में प्रथम देव माना जाता है. उनकी पूजा-अर्चना से सारे कष्ट दूर होते हैं. भगवान गणेश हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय देवों में से एक हैं. गणेश चतुर्थी के मौके पर देशभर में भगवान गणेश की पूजा होती है और खासतौर पर उनके जन्म के रूप में इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन भगवान गणेश हिंदू धर्म के ऐसे भगवान हैं जिनकी पूजा सबसे ज्यादा होती है. किसी भी काम को शुरू करने से पहले लोग भगवान गणेश का नाम लेते हैं और उनकी पूजा करते हैं. उन्हें हिंदू धर्म में भाग्य का देवता भी कहा जाता है. बता रहे हैं कि आखिर वो कौन सी कथा है जिस आधार पर भगवान गणेश हिंदू धर्म के प्रथम देव हैं.
क्यों सबसे पहले पूजे जाते हैं भगवान गणेश?
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. एक बार की बात है. सभी देवी-देवता ही आपस में भिड़ गए कि आखिर सबसे पहले किसकी पूजा की जानी चाहिए. आपस में देवताओं को इस तरह भिड़ता देख वहां पर नारद जी प्रकट हुए. उन्होंने सभी देवताओं को सलाह दी कि इस सवाल के समाधान के लिए वे शिव जी के पास जाएं. सभी देवता इसके बाद शिव जी के पास गए और उनके सामने ये सवाल रखा. बहुत सोचने के बाद शिव जी ने भी सभी के सामने एक प्रतियोगिता रखी. इस प्रतियोगिता का आधार यही था कि जो भी इसे जीतेगा वही सबसे पहले पूजे जाने का अधिकारी होगा.
क्या थी प्रतियोगिता और कौन जीता?
शिव जी ने कहा कि सभी देवी-देवताओं को अपने-अपने वाहन से पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाना होगा. जो भी सबसे पहले पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर वापिस आ जाएगा उसे सबसे पहले पूजा जाएगा. सभी देवी-देवता इसके बाद अपना-अपना वाहन लेकर ब्रह्मांड यात्रा पर निकल गए. लेकिन इस दौरान वहां पर मौजूद गणेश जी दुविधा में पड़ गए और सोच-विचार करने लग गए. दरअसल भगवान गणेश की सवारी चूहा है और चूहा बहुत छोटा होता है. साथ ही वो धीमे भी चलता है. ऐसे में भगवान गणेश को लगा कि इस सवारी के साथ वे ब्रह्मांड की यात्रा सबसे पहले कैसे कर पाएंगे. ये लगभग असंभव सा था.
कौन है हिंदू धर्म के प्रथम देवता?
इसके बाद भगवान गणेश ने एक तरकीब निकाली. उन्होंने पास खड़े अपने माता-पिता, शिव-पार्वती जी का 7 बार परिक्रमा किया और उनके सामने आकर खड़े हो गए. जब बाद में सभी देवी-देवता ब्रह्मांड की परिक्रमा कर के वापिस लौटे तो वहां पर पहले से ही गणेश जी मौजूद थे. गणेश जी को वहां पर देखकर सभी हैरान रह गए. सभी को लगा कि भगवान गणेश चूहे की सवारी से कैसे ब्रह्मांड की यात्रा इतनी जल्दी कर पाए. तब शिव जी ने गणेश भगवान को विजयी घोषित करते हुए बताया कि इस संसार में माता-पिता को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. उनसे ऊपर किसी का दर्जा नहीं है. ऐसे में माता-पिता की परिक्रमा करना साक्षात ब्रह्मांड की परिक्रमा के समान है. तभी से किसी भी भगवान से पहले गणेज जी का नाम आता है और वे हिंदू धर्म के प्रथम देव हैं.
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राधा अष्टमी पर बन रहे ये 2 शुभ योग, पूजा की थाली में जरूर रखें ये वस्तुएं
राधा अष्टमी हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन राधा रानी का जन्म हुआ था। इसीलिए राधा अष्टमी के मौके पर भक्त पूजा आराधना करते हैं और राधा मां से सुख समृद्धि की कामना करते हैं। साल 2024 राधा अष्टमी 11 सितंबर को मनाई जाएगी। इस दिन दो शुभ योग भी हैं, इन शुभ योगों में राधा रानी की पूजा करने से, कुछ विशेष वस्तुओं का उन्हें भोग लगाने से, और पूजा की थाली में उनकी प्रिय वस्तुओं को रखने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
राधा अष्टमी 2024
पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर को लगभग 11 बजकर 10 मिनट पर हो जाएगी। अष्टमी तिथि 11 सितंबर को 11 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि की मान्यता के अनुसार राधा अष्टमी का व्रत 11 सितंबर को रखा जाना ही शुभ माना जाएगा। आइए अब जानते हैं इस दिन के शुभ योगों के बारे में।
राधा अष्टमी पर रहेंगे ये शुभ योग
राधा अष्टमी के दिन प्रीति योग सुबह 11 बजकर 56 मिनट तक रहेगी। इसके साथ ही इस दिन रवि योग सुबह 9 बजकर 22 मिनट से शुरू होगा और अगले दिन तक रहेगा। इस दिन सुबह के समय मूल नक्षत्र होगा और उसके बाद मूल नक्षत्र लग जाएगा।
पूजा की थाली में जरूर रखें ये वस्तुएं
राधा रानी की पूजा के दौरान पूजा की थाली में कुछ विशेष वस्तुओं को अवश्य रखना चाहिए। माना जाता है कि, इन चीजों को पूजा में थाली में अगर आप रखते हैं तो राधा रानी आपकी सभी मनोकामनाओं को पूरी कर सकती हैं। खासकर राधा अष्टमी के दिन विधिवत रूप से राधा जी की पूजा करने वालों को तो थाली में इन चीजों को अवश्य शामिल करना चाहिए, इनके बिना राधा जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। ये चीजें हैं- फूल, इत्र, चंदन, नए वस्त्र, फल, मिष्ठान, सुगंधित फूलों से बनी माला, आभूषण, सिंदूर, धूप-दीप, अक्षत और पूजन सामग्री। इसके साथ ही राधा रानी को भोग लगाने के लिए आपको मालपुए, रबड़ी आदि भी थाली में रखनी चाहिए।
मान्यताओं के अनुसार अगर आप इन चीजों को राधा रानी की पूजा की थाली में शामिल करती हैं, तो वो अति प्रसन्न होती है। इन वस्तुएं के साथ राधा जी की पूजा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। साथ ही आपके जीवन में जो परेशानियां चली आ रही थीं उनका भी अंत हो जाता है। राधा जी की विधिवत पूजा करने से भगवान कृष्ण भी बेहद प्रसन्न होते हैं, और उनका आशीर्वाद भी आपको प्राप्त होता है।
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