Connect with us

लेख

*घरेलू सरजमीं पर विश्व नंबर 1 भारत पर दबदबा बना सकता है न्यूजीलैंड*

Published

on

SHARE THIS

ऑकलैंड। ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार को न्यूजीलैंड अभी भूला नहीं है लेकिन वरिष्ठ बल्लेबाज रोस टेलर को उम्मीद है कि उनकी टीम आगामी श्रृंखला में जब अपनी सरजमीं पर भारत का सामना करेगी तो परिणाम बदलने में सफल रहेगी।

न्यूजीलैंड ने हाल में ऑस्ट्रेलिया से 0-3 से श्रृंखला गंवाई थी जबकि भारत ने ऑस्ट्रेलिया को वनडे श्रृंखला में हराया और वह कीवी टीम के खिलाफ 5 टी-20, 3 वनडे और 2 टेस्ट मैचों की श्रृंखला में बढ़े मनोबल के साथ उतरेगा।

टेलर ने यहां अभ्यास सत्र के बाद स्थानीय मीडिया से कहा कि हमें (ऑस्ट्रेलिया ने) पूरी श्रृंखला में हर विभाग में मात दी लेकिन अब हम घरेलू धरती पर खेलेंगे और भारत पूरी तरह से भिन्न प्रतिद्वंद्वी होगा।

उन्होंने कहा कि वह दुनिया की नंबर 1 टीम है लेकिन परिस्थितियां हमारे अनुकूल होंगी, इसलिए पहले सीमित ओवरों का चरण निकलने दो और इसके बाद उस (टेस्ट) पर बात करेंगे। भारत का न्यूजीलैंड दौरा शुक्रवार से ऑकलैंड में टी-20 श्रृंखला से शुरू होगा। इसके बाद वनडे और टेस्ट खेले जाएंगे।

उन्होंने कहा कि पहली बार टी-20 विश्व कप का आयोजन किया जा रहा है और आपने बिग बैश में देखा। सीमा रेखाएं बड़ी हैं इसलिए आपको वहां दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तुलना में अलग तरह से खेलना होता है।

SHARE THIS

लेख

कूड़ो के ढ़ेर में पनपता बचपन -मोहम्मद सज्जाद खान

Published

on

SHARE THIS

✍️संस्थापक मोहम्मद सज्जाद खांन

जहाँ एक ओर बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने की बात कही जाती है वही दूसरी तरफ कुछ बच्चे ऐसे भी है जिन्हें स्कूल क्यों होती हैं इसकी जानकारी तक नहीं। अपना और अपने लोगों का पेट भरने के लिए मजदूरी कर रहे है, पढ़ना लिखना तो दूर की बात कभी विद्यालय का दर्शन भी नही हो पाया है। बहुत से बच्चे ऐसे है जिन्हें सरकार के द्वारा चलाये गए गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा नसीब ही नही। गरीबी मुफ़लिसी से तंग आकर अपने परिवार के लोगो के साथ गली गली घूम कर कूड़े कचरा बीनना पड़ता है टैब जाकर शाम में इन्हें 2 रोटी नसीब होती है।समाज मे एक ऐसा भी वर्ग है जिनका जीवन ही कचरे के ढेर पर टिका है।यानि कूड़े की ढ़ेर पर ही वह अपने रोटी के जुगाड़ में लगा रहता है।कूड़े की ढेर पर जिंदगी से झुजते और बीमारियों की खुली चुनौती कबूलते कुछ चुनने वालो की जमात आज अपने2वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं। लॉक डाउन और कोरोना वायरस से इनका और इनके बच्चों का हाल और भी बदहाल हो गया हैं। इसके अलावा भी लॉक डाउन से शिक्षा के क्षेत्र बहुत प्रभाव पड़ा आज के बच्चों के जीवन एवं भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। परीक्षायें रद्द कर ना बच्चो का साल खराब हो रहा बल्कि उनका भविष्य खतरे में पढ़ता जा रहा है। संस्था अवाम ए हिन्द सोशल वेलफेयर कमेटी केन्द्र और राज्य सरकार का ध्यान बच्चों के शिक्षा पर आकर्षित करना चाहती है।ये वही बच्चे हैं जो हमारे राज्य व देश का भविष्य है। उनके हक में जायज़ फैसला ही उनके भविष्य को सुधरेगा। संस्थापक मोहम्मद सज्जाद खान ने रायपुर राजधानी में ऐसे मुफ़लिसी गुरबत बच्चों के भाविष्य के निरंतर कार्य किया है एवं बहुत से बच्चों को अंधकार से निकालकर समाज से जोड़ा है।साथ ही लॉक डाउन के प्रकोप से लोगों को बचाने विगत 173 दिनों से मोहम्मद सज्जाद खान संस्थापक अवाम ए हिन्द सोशल वेलफेयर कमेटी निशुल्क भोजन वितरण राजधानी के विभिन्न स्थानों में कर रहे है।और निरंतर करते रहेंगे, सरकार का साथ मिले तो जरूरत मंद बच्चों को शिक्षा प्राप्त करवा कर देश हित की भावना पैदा कर उनके भविष्य को उज्जवल बनाएंगे।

 

SHARE THIS
Continue Reading

लेख

कोरोना वायरस कोविड-19, से राहत दिलाने की जिम्मेदारी –सरकार सिस्टम, सोशल मीडिया के स्वयंभू ज्ञानी और हम

Published

on

SHARE THIS

राम चंद्र मजूमदार✍️
पत्रकार एवं समाज सेवक

कोरोनावायरस या कोविड-19 यह शब्द आज पूरे विश्व में सबसे शक्तिशाली’ सबसे प्रभावशाली, सबसे ताकतवर, सब से ज्यादा प्रयोग में आने वाला, सबसे ज्यादा बोले जाने वाला,सबसे खतरनाक शब्द होने के साथ ही साथ यही वह शब्द है जिससे व्यक्ति घृणा करता है, नापसंद करता है, इस शब्द से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता है, स्वप्न में भी यह शब्द के साथ जीना नहीं चाहता है, इस शब्द का उच्चारण नही करना चाहता है किंतु यह संपूर्ण मानव जाति की विवशता है कि आज इसी शब्द से भयाक्रांत जीवन जीने को विवश है, क्योंकि यह सिर्फ एक शब्द नहीं है यह एक वैश्विक महामारी है जो संपूर्ण विश्व के लोगों को अपनी भयावहता, क्रूरता और दुष्प्रभाव से प्रचंड विकराल स्वरूप धारण कर मानव जीवन को काल का ग्रास बना दिया है। ना जाने कितने घरों के चिराग बुझ गए, कितने बच्चे अनाथ हो गए, कितनों के मांग उजड़ गए, कितनों ने अपने बुढ़ापे का सहारा खो दिया।

यह अपना विशालकाय दैत्याकार मुंह खोलें मानव जीवन निगलने को आतुर खड़ा हुआ है।
यह वायरस कहां से आया ? कैसे आया ?कैसे फैला ?क्यों फैला ? ऐसे बहुत से अनसुलझे प्रश्न है, शायद जिसका जवाब कभी नहीं मिलेगा । किंतु यह तो सभी को पता है कि यह सामान्य बीमारी नहीं जिससे हम आसानी से निजात पा सकेंगे । यह एक प्रकार का हमारे शरीर पर, स्वास्थ्य पर आक्रमण है । जो सांसे मनुष्य के जीवन की बागडोर होती है उसी सांस के माध्यम से यह हमारे शरीर पर आक्रमण कर हमारी सांसे तोड़ रही है । इस आक्रमण की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया का हर इंसान भयाक्रांत है चाहे वह सक्षम हो या अक्षम, सामर्थ्य वान हो या असमर्थ , गरीब हो या अमीर, कमजोर हो या ताकतवर सभी को घायल कर रहा है । इस वैश्विक महामारी से अपनों की जान बचाने के लिए दुनिया के वैज्ञानिक , चिकित्सक और सभी देश कज शासन-प्रशासन के लोग हर स्तर पर प्रयास कर रहें हैं और इन प्रयासों में कुछ आंशिक रूप से सफलता भी प्राप्त कर रहे हैं । इस सफलता का प्रतिशत अभी इतना नहीं है कि इस सफलता पर किसी को गर्व करना चाहिए और ना ही हम चिंता मुक्त हो सकते हैं । हमें अभी बहुत धैर्य रखना होगा। संकट की इस घड़ी में जहां बीमार व्यक्ति के ऑक्सीजन का स्तर गिर रहा है वही हमें अपने मनोबल और विश्वास का स्तर लगातार बढ़ाना है क्योंकि इसी विश्वास के साथ हम अपनी और अपनों की सुरक्षा में सतत सकारात्मकता के साथ प्रयासरत रह सकेंगे । वर्तमान में आलोचना चाहे सरकार की नीतियों की हो या प्रशासन की शक्तियों की या फिर व्यवस्था (सिस्टम) की हो , आलोचना करने से बचना चाहिए क्योंकि जहां भी हम खामियां देखना चाहेंगे हमारी आंखें वही दिखाईंगी। हमें तो यह देखना है कि हम व्यक्तिगत रूप से स्व-हित और सर्व-हित क्या कर सकते है ? हमारी प्राचीन संस्कृति एवं धारणा सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय की ही रही है । इसलिए सर्व हित में हमें कोरोना से बचाव हेतु शासन और प्रशासन द्वारा लगाए गए लाकडाउन के सभी नियमों का बड़े ही कड़ाई और जिम्मेदारी से पालन करना है जिससे संक्रमण का असर कम हो और हमारे अपनों के खोने में कमी आ सके । यदि किसी कारणवश कोरोना संक्रमित हो जाए तो चिकित्सकों के दिशानिर्देशों का अक्षरशः पालन करें । वर्तमान में यही लोग हमारी जान बचाने हेतु अपनी जान जोखिम में डालकर दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं । हमारी एक भी मूर्खतापूर्ण गतिविधि से देश के लोगों की जान खतरे में आ जाएगी । इसलिए सर्वहित का प्रयास हमारा तभी सफल होगा जब हम स्व-हित के लिए प्रयास कर अपनी सुरक्षा कर सकें तभी हमारा परिवार, समाज, प्रदेश और फिर देश सुरक्षित रहेगा ।
देश और प्रदेश की सरकारें इस महामारी को रोकने के लिए लगातार प्रयासरत है । दिन- प्रतिदिन व्यवस्थाओं में वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन करती हैं । कहीं नागरिक स्वतंत्रता और सुविधाओं में प्रतिबंध लगाना पड़ रहा है तो कहीं बल का प्रयोग भी करना पड़ रहा है । इसमें कोई संदेह नहीं कि इसका आम जनजीवन पर बुरा असर भी पड़ रहा है । काम-धंधा, रोजगार के अवसर कम हुए हैं, आर्थिक संकट खड़ा हो रहा है, लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है । व्यवस्थाओं में नीतियों में कमी भी दिख रही है । सरकार को चाहिए कि आपसी सामंजस्यता बनाकर और स्थितियों का वास्तविक आकलन कर विशेषज्ञों की सलाह से आर्थिक एवं सामाजिक गिरावट को ठीक करने के लिए जन सुलभ, जन- उपयोगी योजनाओं एवं सुविधाओं की व्यवस्था करें । आलोचनाओं की परवाह ना करते हुए नित निरंतर ऐसे प्रयास करें , ऐसी व्यवस्था करें जिसका दूरगामी प्रभाव जन कल्याणकारी हो , लोगों के जान की रक्षा करने में सहायक हो ।लोगों का विश्वास शासन और प्रशासन के प्रति मजबूत हो । विरोधी राजनीतिक दल के नेता , कार्यकर्ता विशेषकर ऐसे स्वयंभू ज्ञानी जो शासन की नीतियों ,निर्देशों , व्यवस्थाओं की आलोचना फेसबुक, व्हाट्सएप और विभिन्न सोशल प्लेटफार्म पर अपने आधे-अधूरे अविकसित ज्ञान से लोगों को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं , हमें ऐसे लोगों से और उनके कुत्सित विचारों से बचना होगा । ये अर्धज्ञानी अपनी कुत्सित मानसिकता से जिस व्यवस्था (सिस्टम) की बुराई कर रहे हैं वास्तव में यही व्यवस्था (सिस्टम) चाहे वह केंद्र सरकार की हो या राज्य सरकार की ,हमें इस वैश्विक महामारी से बचाने हमारी सांसों की डोर को मजबूत करने ,.वायरस के आक्रमण से बचाने का प्रयास कर रही है और करती रहेगी । स्वयंभू ज्ञानी अविश्वास का वातावरण निर्मित कर अपने साथ साथ हमारे और अपने परिवार की जान का भी दुश्मन बनता जा रहा है । यह हमारा नैतिक धर्म है कि हम इस सिस्टम में रहकर इस सिस्टम को सुचारू रूप से चलने दें। इसी मे सबकी भलाई है ।
*”लोहा लोहे को काटता है”* इसे चरितार्थ करते हुए कोरोना जांच रिपोर्ट की सकारात्मकता (पॉजिटिव) को हम अपने प्रयासों , विश्वास की दृढ़ता और विचारों की सकारात्मकता से पराजित कर सकते हैं और कर ही लेंगे ।

 

SHARE THIS
Continue Reading

लेख

करोड़ों भारतीयों के मारे जाने से कम हो गई थी जनसंख्या, इस महामारी से गांधीजी के परिजन भी नहीं बच पाए थे

Published

on

SHARE THIS

1914 दुनिया के लिए एक बेहद खतरनाक युद्ध की शुरुआत का साल था। पहले विश्वयुद्ध का आरंभ जिसने 4 साल में न केवल दुनिया का नक्शा बल्कि इंसानियत की शक्ल भी बदल डाली।

4 बरस चले इस युद्ध में लाखों सैनिकों को लंबे समय तक कीचड़-खून से भरी खाइयों में, मवेशियों और इंसानों की लाशों से पटे मैदानों, जंगलों और रिहाइशी इलाकों में लड़ना पड़ा। कहा जाता है कि इसी गंदे और बदबूदार माहौल में इंसानियत को तबाह करने वाली एक ऐसी महामारी इंफ्लुएंजा का जन्म हुआ जिसे ‘मदर ऑफ ऑल पैंडेमिक्स’ यानी अब तक की सबसे बड़ी महामारी कहा जाता है।

उल्लेखनीय है कि इसके पहले महामारी का ऐसा कहर यूरोप में 13वीं सदी के मध्य में ब्यूबोनिक प्लेग या काली मौत के समय देखने को मिला था, जब यूरोप की 25 फीसदी आबादी खत्म हो गई थी।

इतिहासकारों के अनुसार सर्दी-जुकाम से शुरू हुए खतरनाक इंफ्लुएंजा के कारण 1918 से 1920 के बीच दुनिया की तत्कालीन 1.8 अरब आबादी का एक-तिहाई हिस्सा संक्रमण की चपेट में आ गया था।

महज दो सालों (1918-1920) में दुनियाभर में करोड़ों लोगों की मौत हो गई थी। (कई अध्ययन मौतों की संख्या 10 करोड़ से भी ज्यादा बताते हैं)। इसी साल की गई हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि 1918 से 1920 में 5.5 लाख अमेरिकी इस बीमारी की भेंट चढ़ गए थे।

इसका एक बड़ा कारण यह भी रहा कि युद्ध की विभीषिका के बीच इस बीमारी को छिपाने का भी भरसक प्रयास हुआ जिससे महामारी और तीव्रता से फैली। महायुद्ध में उलझी सरकारों ने पहले तो इस पर ध्यान ही नहीं दिया और बाद में इसलिए छिपाया कि कहीं मोर्चे पर लड़ने वाले सैनिकों का मनोबल न गिर जाए।

इंफ्लुएंजा को स्पेनिश फ़्लू का नाम इसलिए मिला क्योंकि सबसे पहले स्पेन ने इस बीमारी के बारे में आधिकारिक रूप से बताया था। लेकिन भारत में इस खतरनाक बीमारी की शुरुआत बंबई से हुई, जहां 29 मई, 1918 को पहले विश्व युद्ध के मोर्चे से लौटे भारतीय सैनिकों का जहाज बंबई बंदरगाह पर आया था।

मेडिकल हिस्टोरियन अमित कपूर के अनुसार 10 जून, 1918 को बंदरगाह पर ड्‍यूटी कर रहे स्थानीय पुलिस के 7 सिपाहियों को सर्दी और जुकाम के बाद अस्पताल में दाखिल कराया गया। इसी को भारत में संक्रामक बीमारी स्पैनिश फ़्लू का पहला अधिकारिक केस माना गया है।

बॉम्बे फीवर या बॉम्बे इंफ्लुएंजा : बंबई में महामारी इतनी तेजी से फैली की देखते ही देखते शहर में हाहाकार मच गया। रिसर्चर डेविड अर्नाल्ड अपने रिसर्च पेपर Death and the Modern Empire : The 1918-19 Influenza Epidemic in India में लिखते हैं कि सिर्फ एक ही दिन में, 6 अक्टूबर 1918 में बंबई में मौतों का अधिकारिक आंकड़ा 768 था।

बीमारी के प्रसार और गंभीरता को देखते हुए इसे बॉम्बे फीवर या बॉम्बे इंफ्लुएंजा भी कहा जाता है। उनके मुताबिक भारत में बॉम्बे फीवर या स्पैनिश फ़्लु के 2 दौर आए। पहले संक्रमण ने बच्चों और बुजुर्गों को अपनी चपेट में लिया। लेकिन इसका दूसरा दौर बेहद खतरनाक था जिसने 20 से 40 साल के युवाओं को भी नहीं बख्शा।

पानी के जहाज से भारत में आई महामारी ब्रिटिशकालीन भारतीय रेल से भारत में महामारी तेजी से फैली। युद्ध के कारण उस समय भारत में रेलवे का जाल बड़ी तेजी से बिछाया जा रहा था और इसने संक्रमण को जल्दी ही पूरे भारत में फैला दिया।

महात्मा भी न बच सके : इस महामारी की तीव्रता और प्रभाव भारत में इतना व्यापक था कि महात्मा गांधी भी लाखों भारतीयों की तरह इस जानलेवा बीमारी के शिकार हो गए थे। हालांकि गांधीजी तो इस बीमारी ठीक हो गए लेकिन इस महामारी से गांधीजी की पुत्रवधू गुलाब और पोते शांति की मौत हो गई।

इसी तरह हिंदी के मशूहर लेखक और कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पत्नी मनोहरा देवी, चाचा, भाई तथा भाभी भी इस बीमारी की भेंट चढ़ गए थे। निराला ने इस भीषण त्रासदी का वर्णन करते हुए लिखा था कि पलक झपके ही मेरा परिवार खत्म हो गया। गंगाजी में जहां तक देखों लाशें तैर रही हैं। लोगों के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां ही नहीं बची।

उसी साल अकाल, सूखे ने इस स्थिति को भयावह बना दिया और माना जाता है कि भारत में आबादी का 6 फीसदी यानी करीब 1.8 करोड़ लोगों ने स्पैनिश फ़्लू की वजह से अपनी जान गंवाई।

महामारी का आजादी की लड़ाई में बड़ा प्रभाव : इस स्थिति के लिए ब्रिटिश शासकों को भी जिम्मेदार माना गया और संकट के दौरान ब्रिटिश सरकार के कुप्रबंधन पर 1919 में महात्मा गांधी ने ‘यंग इंडिया’ के एक संस्करण में ब्रिटिश सरकार की कड़ी आलोचना की।

अपने संपादकीय में गांधी ने लिखा कि किसी भी सभ्य देश में इतनी भीषण और विनाशकारी महामारी के दौरान इतनी लापरवाही नहीं हुई जैसी भारत सरकार ने दिखाई है। इसके बाद ही भारत में अंग्रेजी सरकार के प्रति गहरा अविश्वास व्याप्त हुआ जिसके बाद स्वाधीनता आंदोलन को गति मिली।

इसका एक बड़ा प्रभाव सामाजिक भी रहा। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को इस महामारी ने ज्यादा प्रभावित किया और लिंगानुपात पहले के मुकाबले और बिगड़ गया। लेकिन मार्च 1920 में इस महामारी पर काबू पा लिया गया था।

SHARE THIS
Continue Reading

खबरे अब तक

WEBSITE PROPRIETOR AND EDITOR DETAILS

Editor/ Director :- Rashid Jafri
Web News Portal: Amanpath News
Website : www.amanpath.in

Company : Amanpath News
Publication Place: Dainik amanpath m.g.k.k rod jaystbh chowk Raipur Chhattisgarh 492001
Email:- amanpathasar@gmail.com
Mob: +91 7587475741

Trending