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*सुप्रीम कोर्ट का CAA पर रोक से इंकार, सरकार से मांगा जवाब*

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि वह संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केन्द्र का पक्ष सुने बगैर कोई आदेश नहीं देगा। न्यायालय ने इस कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केन्द्र सरकार को 4 सप्ताह का वक्त देते हुए कहा कि इस मामले की सुनवाई पांच सदस्यीय संविधान पीठ करेगी।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस कानून को चुनौती देने वाली 143 याचिकाओं पर केन्द्र को नोटिस जारी किया और सभी उच्च न्यायालयों को इस मामले पर फैसला होने तक सीएए को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई से रोक दिया।

पीठ ने कहा कि असम और त्रिपुरा से संबंधित याचिकाओं पर अलग से विचार किया जायेगा क्योंकि इन दो राज्यों की सीएए को लेकर परेशानी देश के अन्य हिस्से से अलग है।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सीएए के अमल और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के कार्यक्रम पर रोक लगाने के मुद्दे पर केन्द्र का पक्ष सुने बगैर एक पक्षीय आदेश नहीं दिया जाएगा।

न्यायालय ने कहा कि असम में नागरिकता के लिए पहले कटऑफ की तारीख 24 मार्च, 1971 थी और सीएए के तहत इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2014 तक कर दिया गया है।

पीठ ने कहा कि त्रिपुरा और असम से संबंधित याचिकाएं तथा नियम तैयार हुए बगैर ही सीएए को लागू कर रहे यूपी से संबंधित मामले पर अलग से विचार किया जा सकता है। सीएए को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई के तरीके पर वह चैंबर में निर्णय करेगी और हो सकता है कि चार सप्ताह बाद रोजाना सुनवाई का निश्चय करे।

इससे पहले, केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि सरकार को 143 में सिर्फ करीब 60 याचिकाओं की प्रतियां मिली हैं। वह सारी याचिकाओं पर जवाब देने के लिये समय चाहते थे।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से फिलहाल सीएए पर अमल और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर कार्यक्रम स्थगित करने का अनुरोध किया।

न्यायालय ने कहा कि इस मामले में केन्द्र का पक्ष सुने बगैर वह नागरिकता संशोधन कानून पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगायेगा। पीठ ने कहा कि हम सीएए का विरोध करने वाले याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देने के बारे में चार सप्ताह बाद कोई आदेश पारित करेंगे।

नागरिकता संशोधन कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर, 2014 तक देश में आये हिन्दू, सिख, बौध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।

सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुये उच्चतम न्यायालय में अनेक याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिका दायर करने वालों में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, कांग्रेस के सांसद जयराम रमेश, तृणमूल की सांसद महुआ मोइत्रा, राजद के नेता मनोज झा, एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी, आसू, पीस पार्टी , अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और कानून के अनेक छात्र शामिल हैं।

केरल की माकपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने भी संविधान के अनुच्छेद 131 का इस्तेमाल करते हुये संशोधित नागरिकता कानून, 2019 को चुनौती दी है।

आईयूएमएल ने अपनी याचिका में कहा है कि सीएए समता के अधिकार का उल्लंघन करता है और इसका मकसद धर्म के आधार पर एक वर्ग को अलग रखते हुए अन्य गैरकानूनी शरणार्णियों को नागरिकता प्रदान करना है। याचिका में यह भी दलील दी गई है कि यह कानून संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला है।

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सोने-चांदी में आज हो गया भारी उलटफेर, कीमतें फ्रेश ऑलटाइम हाई पर

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सोने-चांदी की कीमत थमने का नाम नहीं ले रही। सोना लगातार छह दिनों से और महंगा होता जा रहा है। दोनों बहुमूल्य धातुओं ने बुधवार को फिर नए फ्रेश ऑलटाइम हाई पर पहुंच गए। फेस्टिवल और शादी-विवाद के मौसम को देखते हुए सोने की डिमांड भी तेज हो गई है। अखिल भारतीय सर्राफा संघ के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में लगातार छठे सत्र में तेजी के साथ सोने और चांदी की कीमतों ने नए रिकॉर्ड स्तर को पार कर लिया। सोने की कीमत 500 रुपये बढ़कर 81,500 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गई, जबकि चांदी 1,000 रुपये बढ़कर 1.02 लाख रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई। पीटीआई की खबर के मुताबिक, पिछले छह कारोबारी सत्रों में चांदी की कीमतों में 10,000 रुपये प्रति किलोग्राम की तेजी आई है। 16 अक्टूबर से सोने में 2,850 रुपये प्रति 10 ग्राम की तेजी आई है।

99.9% और 99.5% शुद्धता वाले सोने की कीमत

बुधवार को 99.9 प्रतिशत और 99.5 प्रतिशत शुद्धता वाले सोने की कीमतें 500-500 रुपये बढ़कर क्रमश: 81,500 रुपये प्रति 10 ग्राम और 81,100 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गईं। चांदी की कीमत 1,000 रुपये बढ़कर 1.02 लाख रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई, जबकि मंगलवार को इसकी कीमत 1.01 लाख रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुई थी। आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों को लेकर अनिश्चितता सोने की कीमतों को ऊंचा रखने में भूमिका निभा रही है।

मूल सीमा शुल्क में कटौती के बाद घटी थी कीमतें

एसकेआई कैपिटल के एमडी नरिंदर वाधवा के मुताबिक, भौतिक बाजार और एमसीएक्स पर चांदी की कीमतों का 1 लाख रुपये तक पहुंचना भारत में मौसमी मांग और पश्चिम एशिया संघर्ष से भू-राजनीतिक जोखिम जैसे कई कारकों का स्पष्ट प्रतिबिंब है। जुलाई में, सरकार द्वारा सोने और अन्य धातुओं पर मूल सीमा शुल्क में कटौती के बाद स्थानीय बाजारों में सोने और चांदी की कीमतों में 7 प्रतिशत की तेज गिरावट आई। हालांकि, चल रहे त्योहारों, अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद और भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने के कारण भारतीय उपभोक्ताओं की मांग बढ़ने से सर्राफा की कीमतों में तेजी आई।

वायदा बाजार में सोने का भाव

एमसीएक्स पर वायदा कारोबार में दिसंबर डिलीवरी वाले सोने के अनुबंध 112 रुपये या 0. 14 प्रतिशत बढ़कर 78,768 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गए। दिन के दौरान कीमती धातु 263 रुपये या 0. 33 प्रतिशत उछलकर 78,919 रुपये प्रति 10 ग्राम के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। कॉमेक्स में बढ़त के कारण सोने की कीमतों में एक और सकारात्मक बदलाव देखने को मिला, जहां सोना 2,750 अमेरिकी डॉलर के करीब पहुंच गया। इससे एमसीएक्स पर सोने का भाव 78,750 रुपये से ऊपर बना रहा, जो अंतर्निहित तेजी की भावना को दर्शाता है।

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श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस में हाई कोर्ट का ऐसा फैसला, हिंदू पक्ष का केस हुआ और मजबूत..

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प्रयागराज: मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़ी याचिकाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा अपडेट है. हाईकोर्ट ने मस्जिद पक्ष की ओर से दाखिल रिकॉल अर्जी को खारिज करते हुए विवाद से जुड़े 15 मामलों की एक साथ सुनवाई का रास्ता साफ कर दिया है. जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने मस्जिद पक्ष की रिकॉल अर्जी को खारिज कर हिंदू पक्ष के तर्कों को माना है. कोर्ट का यह निर्णय मथुरा विवाद में हिंदू पक्ष के लिए एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है. अब इन सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई 6 नवंबर को दोपहर 2 बजे होगी, जिसमें प्‍वांइट्स ऑफ डिबेट तय किए जाएंगे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला मथुरा विवाद में एक नई दिशा तय कर सकता है, जहां अब सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की जाएगी. इससे हिंदू पक्ष को मजबूती मिलेगी और मथुरा के इस ऐतिहासिक विवाद में अदालत की प्रक्रिया अब निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ रही है. मस्जिद पक्ष ने दलील दी थी कि इन 15 मामलों में मांगी गई राहतें अलग-अलग और असमान हैं, इसलिए इनकी एक साथ सुनवाई अनुचित होगी. हालांकि, कोर्ट ने यह तर्क स्वीकार नहीं किया और कहा कि सभी केस एक ही मुद्दे से संबंधित हैं—श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थल से कथित अवैध कब्जा हटाकर कटरा केशव देव को सौंपने के संबंध में.

कोर्ट का पुराना आदेश और मस्जिद पक्ष की आपत्ति
11 जनवरी 2024 को हाईकोर्ट ने सभी 15 वादों की एक साथ सुनवाई करने का आदेश दिया था. मस्जिद पक्ष ने इस आदेश को चुनौती देते हुए रिकॉल अर्जी दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि सभी मामलों की सुनवाई एक साथ करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि इनमें मांगी गई राहतें अलग-अलग हैं. लेकिन कोर्ट ने मस्जिद पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया.

जस्टिस मयंक कुमार जैन का कार्यकाल और रिटायरमेंट
यह फैसला जस्टिस मयंक कुमार जैन के कार्यकाल का एक बड़ा निर्णय है. वे नवंबर में रिटायर हो रहे हैं और 25 अक्टूबर को हाईकोर्ट में उन्हें फुल कोर्ट रेफरेंस में विदाई दी जाएगी. दीपावली के अवकाश से पहले यह उनका अंतिम बड़ा फैसला होगा, जो मथुरा विवाद में महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

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बांग्लादेश में फिर से राजनीतिक उथल-पुथल शुरू, छात्र संगठन ने की राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन के इस्तीफे की मांग

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बांग्लादेश इन दिनों तनाव के दौर से गुजर रहा है। बीते दिनों शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ खूब अहिंसा देखने को मिली। इस बीच बांग्लादेश में बुधवार को राजनीतिक तनाव फिर से बढ़ गया, जब एक प्रमुख छात्र समूह ने देश के नाममात्र के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन से इस्तीफा देने की मांग की है। दरअसल ऐसा कहा जा रहा है कि उनके द्वारा कुछ ऐसी टिप्पणियां की गई थीं, जो अगस्त महीने में पूर्व राष्ट्रपति शेख हसीना के इस्तीफे को लेकर सवाल उठाती प्रतीत होती हैं। अंतरिम सरकार गुरुवार को इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए कैबिनेट की बैठक आयोजित करने जा रही है।

बांग्लादेश में फिर राजनीतिक उथल-पुथल शुरू

‘भेदभाव विरोध छात्र आंदोलन’ के नाम से पहचाने जाने वाले छात्र समूह ने राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन को पद छोड़ने के लिए दो दिन की समय सीमा तय की है। मंगलवार को राजधानी ढाका में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने रैली निकाली, जबकि सैकड़ों अन्य ने राष्ट्रपति भवन बंगभवन पर धावा बोलने का प्रयास किया। बता दें कि नया राजनीतिक उथल-पुथल तब शुरू हुआ जब शहाबुद्दीन ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक बंगाली भाषा के अखबार से कहा कि उन्होंने हसीना का इस्तीफा पत्र नहीं देखा है, क्योंकि वह अगस्त में छात्रों के नेतृत्व वाले विद्रोह के बीच भारत भाग गई थीं। 5 अगस्त को हसीना के पद छोड़ने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार ने बांगलादेश की सत्ता संभाली और सरकार बनाई थी।

छात्र संगठन ने की राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग

शहाबुद्दीन ने मनब जमीन दैनिक अखबार को दिए अपने साक्षात्कार में कहा कि उन्होंने केवल हसीना के इस्तीफे के बारे में सुना है लेकिन इस्तीफे का वास्तविक पत्र नहीं देखा है। एक बयान जिसने यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार और छात्र कार्यकर्ताओं को क्रोधित कर दिया, जिससे उन्हें उनके इस्तीफे की मांग करने के लिए प्रेरित किया। वहीं इससे पूर्व शहाबुद्दीन ने 5 अगस्त को राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में कहा था कि हसीना ने राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंप दिया है और उन्हें वह प्राप्त हो गया है। बांग्लादेश के संविधान के मुताबिक, निर्वाचित प्रधानमंत्री को अपना त्यागपत्र लिखित रूप से राष्ट्रफति को सौंपना होता है।

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