Home छत्तीसगढ़ दर्द से हारी, हौसले से जीती: सोनामती की कहानी

दर्द से हारी, हौसले से जीती: सोनामती की कहानी

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कोरिया 5 दिसंबर 2024 :  ग्राम भैंसवार की कच्ची गलियों में रहने वाली सोनामती का जीवन संघर्षों का पर्याय बन चुका था। एक समय था जब वह अपने परिवार के साथ खेतों में काम किया करती थी। लेकिन कुछ साल पहले एक अजीब-सी तकलीफ ने उसे घेर लिया। उसके बांए हाथ ने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया। अनगिनत इलाज और तीन ऑपरेशनों के बावजूद हाथ ठीक नहीं हुआ। दर्द और बेबसी के बीच, वह अब दूसरों पर निर्भर हो गई थी।

सोनामती के पति अनिल कुमार का कमाई का साधन भी सीमित था। वे अपनी पत्नी की तकलीफ तो समझते थे, लेकिन इलाज और घर चलाने के बीच उलझे हुए थे। सोनामती के लिए अब हर दिन एक नई चुनौती बन गया था। वह ना घर के कामकाज में हाथ बंटा पाती, ना ही अपने बच्चों की देखभाल में।

इसी बीच, एक पड़ोसी ने बताया कि जिले की कलेक्टर, श्रीमती चन्दन त्रिपाठी, हर हफ्ते जनदर्शन कार्यक्रम आयोजित करती हैं। “कलेक्टर के पास जाओ, शायद कोई हल मिले,” पड़ोसी ने सलाह दी।

सोनामती ने सारी हिम्मत जुटाकर अपने पति के साथ जनदर्शन का रुख किया। वहां उन्होंने अपनी तकलीफ बताई—उनका हाथ ठीक नहीं हो पाया है और विकलांगता के कारण रोजमर्रा की जिंदगी और भी मुश्किल हो गई है। उन्होंने विकलांग प्रमाण-पत्र बनवाने की गुहार लगाई ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।

कलेक्टर ने उसकी बात ध्यान से सुनी और तत्काल समाज कल्याण विभाग को निर्देश दिया। सोनामती के लिए यह एक उम्मीद की किरण थी। कुछ ही दिनों में विकलांग प्रमाण-पत्र बनकर उनके हाथों में था।

यह प्रमाण-पत्र सिर्फ एक दस्तावेज नहीं था। यह सोनामती के लिए एक नया जीवन था। इसके जरिए उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना शुरू हुआ। अब उन्हें आर्थिक मदद और विशेष सुविधाएं मिलने लगीं।

सोनामती की आंखों में आंसू थे, लेकिन ये आंसू अब खुशी के थे। “मैं हार मान चुकी थी। लेकिन कलेक्टर मैडम ने मुझे मेरी ताकत लौटा दी,” वह कहती हैं।

जनदर्शन जैसे कार्यक्रम, जहां प्रशासन आम जनता की समस्याओं को सुनता और हल करता है, उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, जो अपनी आवाज को दबा हुआ महसूस करते हैं।

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