महाकुंभ : प्रयागराज महाकुंभ में अखाड़ों की छावनी सजकर तैयार हो चुकी है. तमाम अखाड़ों के संत महात्माओं ने अपनी अपनी छावनी में डेरा भी जमा लिया है. महाकुंभ में अखाड़ों की यह छावनी पूरे दिन संत महात्माओं और श्रद्धालुओं की भीड़ से गुलजार रहती है. छावनी में दिन भर धर्म और अध्यात्म की गंगा बहती रहती है. पूजा अर्चना और यज्ञ चलता रहता है. अखाड़ों के आध्यात्मिक आयोजन में सबसे खास संध्या आरती होती है. धर्म ध्वज के नीचे स्थापित अखाड़े के ईष्ट देव और प्रधान देवता की आरती जब शुरू होती है तो पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है.
अखाड़ों की संध्या आरती में क्या कुछ खास होता है, यह जानने के लिए एबीपी लाइव की टीम सन्यासियों के अग्नि अखाड़े में पहुंची. यहां रोजाना शाम करीब सात बजे सबसे पहले अखाड़े की ईष्ट देवी माता गायत्री और प्रधान देवता भगवान भोलेनाथ का नए सिरे से श्रृंगार किया जाता है. अखाड़े की छावनी में दोनों को धर्म ध्वजा के ठीक नीचे अगल-बगल स्थापित किया गया है. इसके बाद संत महात्माओं की टोली जुटती है. इसके बाद आरती शुरू की जाती है. सबसे पहले यज्ञशाला की आरती होती है. इसके बाद अखाड़े की आराध्य माता गायत्री की और फिर प्रधान देवता भगवान भोले शंकर की. सबसे आखिर में धर्म ध्वजा की आरती की जाती है.
ढोल-मजीरे और तबले की थाप पर होती है आरती
यहां ढोल – मजीरे, तबले और ढाक की थाप पर करीब आधे घंटे तक आरती की जाती है. इसके बाद शुरू होता है भजन कीर्तन का सिलसिला. संत महात्मा खुद ही भक्ति गीत पेश करते हुए सुरों की गंगा बहाते हैं. देर तक भजन कीर्तन के बाद पुकार का दौर शुरू होता है. आरती में शामिल संतों की टोली पूरी छावनी में घूम घूम कर संत महात्माओं को प्रणाम करती है और उनका अभिनंदन करती है. इससे पहले ईष्ट देव और प्रधान देवता के मंदिरों की परिक्रमा भी होती है.
संध्या आरती को लेकर अखाड़े से जुड़े महंत वीरेंद्रानंद ब्रह्मचारी और अखाड़े के सचिव जियानंद ब्रह्मचारी के मुताबिक आरती में जाने अनजाने हुए गलतियों का प्रायश्चित किया जाता है और सभी के कल्याण की कामना की जाती है. अखाड़ों में होने वाली संध्या आरती को देखने के लिए रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु इकट्ठे होते हैं और धर्म व अध्यात्म की गंगा में गोते लगाते हैं.