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पिछले 108 सालों से धधक रहा है भारत का ये शहर, धंसने लगी है जमीन, सरकार भी नहीं बुझा पा रही आग

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झारखंड  : झारखंड के धनबाद जिले में स्थित ‘झरिया’ (Jharia) एक ऐसा शहर है, जो पिछले 108 से अधिक वर्षों से लगातार जल रहा है. यह क्षेत्र भारत के सबसे महत्वपूर्ण कोयला खनन क्षेत्रों में से एक है और उच्च गुणवत्ता वाले कोकिंग कोल के लिए प्रसिद्ध है, जिसका उपयोग ‘स्टील उत्पादन’ में किया जाता है. हालांकि, झरिया की कोयला खदानों में लगी भयानक आग ने न केवल यहां के खनन उद्योग को प्रभावित किया है, बल्कि स्थानीय निवासियों की जिंदगी को भी बेहद कठिन बना दिया है.

कैसे लगी झरिया की खदानों में आग?
झरिया की कोयला खदानों में आग की शुरुआत 1916 के आसपास मानी जाती है. यह आग प्राकृतिक रूप से नहीं लगी, बल्कि इसके पीछे अवैज्ञानिक और असुरक्षित खनन प्रक्रियाएं जिम्मेदार थीं. खनन के दौरान कई बार खदानें खुली छोड़ दी जाती थीं, जिससे वहां मौजूद कोयला हवा के संपर्क में आ जाती थी. कोयला हवा के संपर्क में आने के बाद ऑक्सीडाइज होकर जलने लगता है.

जमीन के नीचे लगातार जल रहा कोयला
धीरे-धीरे यह आग ‘अंडरग्राउंड खदानों’ में फैल गई और अब यह आग सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैल चुकी है. झरिया की जमीन के नीचे का कोयला लगातार जल रहा है, और इसे बुझाना बेहद मुश्किल हो गया है. इस आग ने झरिया के पूरे इलाके को खतरनाक क्षेत्र में बदल दिया है.

धंसने लगी हैं जमीनें, लोग भी पड़ रहे बीमार
झरिया की जलती खदानों का सबसे बड़ा असर यहां के स्थानीय निवासियों पर पड़ा है. आग के कारण झरिया की जमीन अस्थिर हो गई है, जिससे कई जगहों पर भूस्खलन और जमीन धंसने की घटनाएं हो रही हैं. इसके चलते घर, सड़कें, और इमारतें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो रही हैं.

यहां लगातार बढ़ रहा अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और फेफड़ों का संक्रमण
इसके अलावा, आग से निकलने वाली जहरीली गैसें और धुआं स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डाल रहा है. यहां के लोगों में सांस संबंधी बीमारियां जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और फेफड़ों के संक्रमण आम हो गए हैं. हवा में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें लोगों के जीवन को खतरे में डाल रही हैं.

झरिया का तापमान हुआ असहनीय
तापमान भी झरिया में एक बड़ी समस्या बन गया है. जमीन के नीचे लगातार जलते कोयले के कारण झरिया का तापमान असहनीय हो गया है. कई बार जमीन से धुआं और लावा जैसा गर्म मटेरियल भी बाहर निकलता है, जिससे यहां का वातावरण और अधिक खतरनाक हो जाता है.

लोगों की चिंता – अचानक धंस न जाए घर और जमीन
झरिया में लगी आग के कारण हजारों परिवारों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है. कई लोग दूसरी जगहों पर जाकर बस गए हैं, लेकिन झरिया में अब भी कई परिवार रहने को मजबूर हैं. इन परिवारों को हर समय इस बात का डर रहता है कि कहीं उनका घर या आसपास की जमीन अचानक धंस न जाए.

आग के चलते कई इलाकों में जमीन के नीचे बड़ी दरारें बन चुकी हैं. इन दरारों से धुआं और जहरीली गैसें बाहर निकलती रहती हैं, जिससे यहां रहना बहुत मुश्किल हो गया है.

सरकार के प्रयास और चुनौतियां
झरिया की आग को बुझाने के लिए सरकार ने कई बार प्रयास किए हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं मिल पाया है. झरिया पुनर्वास योजना (Jharia Rehabilitation Plan) के तहत सरकार ने कई परिवारों को झरिया से दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित करने की कोशिश की है.

इसके बावजूद, जमीन के नीचे की आग को बुझाना बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है. कोयला खदानों में अंडरग्राउंड आग को रोकने के लिए फायर ब्रिगेड और इंजीनियरिंग टीमों को तैनात किया गया है, लेकिन आग इतनी गहराई में फैल चुकी है कि इसे पूरी तरह से रोकना संभव नहीं हो पा रहा है.

सरकार ने आधुनिक तकनीकों का भी सहारा लिया है, जैसे कि कोल्ड फायर इंजेक्शन और मिट्टी डालकर आग को कवर करना, लेकिन यह उपाय भी पूरी तरह से सफल नहीं हुए हैं.

झरिया का भविष्य
झरिया की आग को बुझाने के लिए लंबे समय तक चलने वाली योजनाओं की जरूरत है. अगर सरकार इस समस्या का समाधान नहीं कर पाती है, तो यह क्षेत्र जीवन के लिए और भी अधिक खतरनाक हो सकता है. झरिया के कोयला भंडार को बचाने के लिए और यहां के लोगों की जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है.

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