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महासप्तमी के दिन मां कालरात्रि के इन मंत्रों का करें जाप, हर भय से मिलेगी मुक्ति, जीवन में आएगी समृद्धि

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4 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है। नवरात्रि के दौरान पड़ने वाली सप्तमी को महासप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाएगी। बता दें कि जब माता पार्वती ने शुंभ-निशुंभ का वध करने के लिए अपने स्वर्णिम वर्ण को त्याग दिया था, तब उन्हें कालरात्रि के नाम से जाना गया। मां कालरात्रि का वाहन गधा है और इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से ऊपर का दाहिना हाथ वरद मुद्रा में और नीचे का हाथ अभयमुद्रा में रहता है, जबकि बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड़ग है। देवी मां का एक नाम शुंभकारी भी है। इनके स्मरण मात्र से ही भूत-पिशाच, भय और अन्य किसी भी तरह की परेशानी तुरंत दूर भाग जाती है।

चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन देवी मां को अर्पित करें ये चीजें

नवरात्रि का सातवें दिन मां कालरात्रि गुड़ का भोग लगाना चाहिए। देवी मां को गुड़ से बनी चीजें भी अर्पित कर सकते हैं। मां कालरात्रि को लाल फूल अति प्रिय है। तो महासप्तमी के दिन पूजा के दौरान माता रानी को गुड़हल या लाल गुलाब का फूल जरूर चढ़ाएं।

मां कालरात्रि मंत्र

मंत्र-  ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥

प्रार्थना- एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा। वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

स्तुति- या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

भयमुक्त मंत्र

अगर आपको भी किसी चीज का भय बना रहता है तो आज मां कालरात्रि का ध्यान करके उनके इस मंत्र का जप अवश्य ही करना चाहिए। मंत्र है- जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि। जय सार्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥

मां कालरात्रि विशेष मंत्र

मन्त्रमहोदधि में मां कालरात्रि के एक और विशेष मंत्र है, जो कि पूरे एक सौ तैंतीस अक्षरों का मंत्र है। जो व्यक्ति नवरात्र के दौरान उस मंत्र का जप कर लेता है, उसके अंदर अथाह शक्ति आ जाती है। वह किसी भी स्त्री या पुरुष को अपने वश में कर सकता है और किसी को भी अपने ऊपर मोहित कर सकता है। मंत्र है- ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं काहेन्श्रवरी सर्वजन मनोहरे सर्वमुख स्तंभिनि सर्व राजवशंकरि सर्वदुष्ट निर्दलिनि सर्व स्त्री पुरुषाकर्षिणी बंदिश्रृंखलास्त्रोटय त्रोटय सर्वशत्रून् भञ्जय भञ्जय द्वेष्टृन् निर्दलय निर्दलय सर्वं स्तंभ्य स्तंभय मोहनास्त्रेण द्वेषिणा उच्चाटय उच्चाटय सर्वं वशं कुरु कुरु स्वाहा देहि देहि सर्वं कालरात्रि कामिनि गणेश्वरि:।

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