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पितरों को जल कितने बजे देना चाहिए? घर में पूर्वजों की तस्वीर लगाते समय भूलकर भी न करें ये गलतियां

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 आज यानी शुक्रवार (29 सितंबर 2023) से पितृ पक्ष शुरू हो गया है। पितृ पक्ष पूरे 16 दिनों तक रहता है। इस दौरान पितरों यानी पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने से व्यक्ति को मोक्ष और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। वहीं पितृ पक्ष के दौरान पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को तृप्ति और मुक्ति मिलती है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष प्रारंभ होता है जो कि आश्विन महीने की अमावस्या (14 अक्टूबर 2023) को समापन होगा। तो आइए ज्योतिषि चिराग बेजान दारूवाला से जानते हैं कि घर में पितरों का स्थान कहां होता है और श्राद्ध पक्ष के दौरान उन्हें किस समय जल देना चाहिए।

पितरों को जल कितने बजे देना चाहिए?

श्राद्ध करते समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है यानी अंगूठे के माध्यम से शवों पर जलांजलि दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि अंगूठे से पितरों को जल अर्पित करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हथेली के जिस भाग पर अंगूठा होता है, उसे पितृ तीर्थ कहा जाता है। पितरों को जल तर्पण करने का समय सुबह 11:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे के बीच है. पितरों को जल अर्पित करते समय कांसे या तांबे के लोटे का प्रयोग करें।

पितरों को जल कैसे देना चाहिए?

तर्पण सामग्री लेने के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। इसके बाद हाथों में जल, कुशा, अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर दोनों हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उन्हें आमंत्रित करें और जल ग्रहण करने की प्रार्थना करें। इसके बाद 5-7 या 11 बार अंजलि से जल धरती पर गिराएं।#

घर में पितरों का स्थान कहां होना चाहिए?

वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा को यम की दिशा भी माना जाता है। ऐसे में पितरों की तस्वीर हमेशा उत्तर दिशा की ओर लगानी चाहिए। साथ ही पितरों का मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। वहीं बेडरूम या ड्राइंग रूम में भी पूर्वजों की तस्वीरें नहीं रखनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर पूर्वजों की तस्वीरें रखने से परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इस बात का भी ध्यान रखें कि घर में एक से अधिक पूर्वजों की तस्वीरें नहीं रखनी चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। इस बात का भी ध्यान रखें कि पूर्वजों की तस्वीरें टांग कर नहीं रखनी चाहिए। उनकी तस्वीर को एक लकड़ी की चौकी पर रखना चाहिए। साथ ही घर के मंदिर या रसोई में भी पूर्वजों की तस्वीरें नहीं लगानी चाहिए।

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रक्षाबंधन, जन्माष्टमी समेत अगस्त माह में मनाए जाएंगे ये प्रमुख व्रत-त्योहार..

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अंग्रेजी कैलेंडर का 8 वां महीना अगस्त शुरू होने वाला है. वैदिक पंचांग के अनुसार अगस्त महीने की शुरुआत भगवान शिव को अत्यंत प्रिय मास सावन के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि से हो रही है. व्रत,पर्व और त्योहार के लिहाज से यह महीना बेहद खास है. इस महीने में कई प्रमुख व्रत और त्योहार हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक अगस्त महीने में कुल 15 प्रमुख व्रत और त्योहार हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि अगस्त महीने में 19 तारीख तक सावन और फिर उसके बाद भाद्रपद महीने की शुरुआत होगी. वैदिक पंचांग के मुताबिक, इस महीने में सावन की शिवरात्रि, हरियाली तीज, नाग पंचमी, रक्षाबंधन, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, एकादशी जैसे अहम पर्व पड़ रहे हैं. आइये जानते हैं अगस्त महीने के व्रत-त्योहार की पूरी लिस्ट काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय से…

अगस्त 2024 (शुक्रवार)- सावन शिवरात्रि
4 अगस्त 2024 (रविवार)- सावन अमावस्या
5 अगस्त 2024 (सोमवार)- सावन का तीसरा सोमवार व्रत
6 अगस्त 2024 (मंगलवार)-मंगला गौरी व्रत
7 अगस्त 2024 (गुरुवार) -सावन हरियाली तीज
9 अगस्त 2024 (शुक्रवार) -नाग पंचमी
11 अगस्त 2024 (रविवार)- भानु सप्तमी, गोस्वामी तुलसीदास जयंती
12 अगस्त 2024 (रविवार)-सावन का चौथा सोमवार व्रत
13 अगस्त 2024 (मंगलवार)-चौथा मंगला गौरी व्रत
16 अगस्त 2024 (शुक्रवार)- पुत्रदा एकादशी व्रत
19 अगस्त 2024 (सोमवार) -सावन पूर्णिमा, रक्षाबंधन, सावन का अंतिम सोमवार व्रत,
22 अगस्त 2024 (गुरुवार)-हरितालिका तीज व्रत
24 अगस्त 2024 (शुक्रवार)-बलराम जयंती
26 अगस्त 2024 (रविवार)-श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व
29 अगस्त 2024 (गुरुवार)-अजा एकादशी व्रत

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विश्व का पहला शिवलिंग, जहां नहीं हैं नंदी! देर रात सुनाई देती है घंटियों की आवाज..

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श्रावण के पवित्र महीने में भोलेनाथ की पूजा, आराधना का विशेष महत्व रहता है. श्रद्धालु चार धाम, 12 ज्योतिर्लिंगों सहित प्राचीन मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं. ऐसा ही एक अति प्राचीन शिव मंदिर मध्य प्रदेश के खरगोन में मौजूद है. कई रहस्यों से भरे गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के बारे में एक कथा के अनुसार, यहां मौजूद शिवलिंग स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती द्वारा स्थापित किया गया है. किवदंती है कि, यही विश्व का पहला शिवलिंग है. दरअसल, यह मंदिर खरगोन जिला मुख्यालय से 50 km दूर नर्मदा नदी के किनारे बसी पवित्र नगरी मंडलेश्वर में मौजूद है. एक छोटी सी गुफा में यह दिव्य शिवलिंग विराजमान है. जिसे अनादि काल में ऋषियों के दिए एक श्राप से मुक्ति पाने के लिए शिव पार्वती ने स्थापित किया था. पूरे साल मां नर्मदा इस शिवलिंग का जलाभिषेक करती हैं.

इसलिए ऋषियों ने शिव को दिया श्राप
मंदिर के पुजारी परमानंद केवट बताते हैं कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, पहले यह क्षेत्र दारुकावन के नाम से जाना जाता था. तब भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी लोक भ्रमण करते हुए यहां पहुंचे थे. वन में ब्राह्मण ऋषि तपस्या कर रहे थे, ऋषियों की पत्नियां भी यहां मौजूद थीं. किसी बात को लेकर पार्वती भोलेनाथ से ऋषियों की तपस्या भंग करने की जिद्द कर बैठीं. शिव ने बाल रूप लिया और नग्न अवस्था में नृत्य करने लगे. शिव का नृत्य देख ऋषियों की पत्नियां प्रभावित हुई. यह देख ऋषियों को गुस्सा आया और शिव को श्राप दे दिया. शिव का लिंग शरीर से अलग होकर गिर गया. तभी ब्रह्म और विष्णु प्रकट हुए और ऋषियों को शिव के बारे में बताया. तब ऋषियों ने शिव को पुनः लिंग प्राप्त करने का मार्ग बताया.

शिवलिंग में समाहित हैं भोलेनाथ
ऋषियों के बताए उपाय अनुसार, शिव और पार्वती ने पास बह रही नर्मदा से एक पत्थर लिया और उसे अनादि लिंग के रूप में स्थापित किया. इसी शिवलिंग में भोलेनाथ समाहित हो गए. चूंकि ऋषियों ने कहा था कि शिवलिंग पर जब महिलाएं जल चढ़ाएंगी, पूजा करेंगी, तब धीरे-धीरे श्राप का असर कम होगा.

पुराणों में भी मिलता है उल्लेख
बता दें कि, एक गुफा में होने से यह शिवलिंग गुप्तेश्वर महादेव के नाम से प्रख्यात हुआ. नर्मदा पुराण, रेवाखंड, भागवत गीता में भी इस मंदिर का उल्लेख है. नर्मदा परिक्रमा के दौरान इस शिवलिंग का दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है. शिवलिंग के पास ही माता पार्वती की जगह नर्मदा की प्रतिमा है. क्षेत्र का यह इकलौता मंदिर है जहां नंदी भी नहीं हैं.

रात में सुनाई देती है घंटी की आवाज
पुजारी के अनुसार, शिव ऋषि अगस्त्य मुनि के इष्ट देव हैं. वे रात में यहां पूजा के लिए आते हैं. रात के समय घंटियों और आरती की आवाज़ सुनाई पड़ती है. सन 1984 में बंगाल के चंदनपुरी बाबा यहां आए थे. उन्होंने ही मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. बाबा का मानना था कि यही दुनिया का पहला शिवलिंग है और यहीं से शिव पूजा प्रारंभ हुई है.

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कब है सावन शिवरात्रि ,शिव पूजा के लिए दूसरा सबसे बड़ा दिन, जानें तारीख

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श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सावन शिवरात्रि मनाई जाती है. सावन शिवरात्रि भगवान शिव की पूजा के लिए दूसरा सबसे बड़ा दिन माना जाता है. वैसे शिव पूजा के लिए महाशिवरात्रि का दिन सबसे उत्तम और प्रमुख दिन होता है. इसके अलावा सावन सोमवार, सोमवार, प्रदोष और हर माह में आने वाली शिवरात्रि भगवान भोलेनाथ की पूजा के लिए अच्छे दिन हैं. इस साल सावन शिवरात्रि के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का ​निर्माण हो रहा है. ​उस दिन आप व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करें. आपकी मनोकामनाएं पूरी होंगी

किस दिन है सावन शिवरात्रि 2024
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस बार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 2 अगस्त शुक्रवार को दोपहर 3 बजकर 26 मिनट से शुरू हो रही है. यह तिथि 3 अगस्त शनिवार को दोपहर 3 बजकर 50 मिनट पर खत्म होगी. ऐसे में सावन शिवरात्रि का व्रत और पूजन 2 अगस्त शुक्रवार को होगा

सावन शिवरात्रि 2024 मुहूर्त
सावन शिवरात्रि को आप किसी भी समय भगवान महादेव की पूजा कर सकते हैं. लेकिन जिन लोगों को निशिता काल की पूजा करनी है, वे रात 12 बजकर 6 मिनट से 12 बजकर 49 मिनट के बीच कर सकते हैं. सावन शिवरात्रि की निशिता पूजा के लिए आपको 42 मिनट का शुभ मुहूर्त प्राप्त होगा.

सावन शिवरात्रि 2024 पारण समय
जो लोग सावन शिवरात्रि का व्रत रखेंगे, वे अगले दिन 3 अगस्त को पारण करके व्रत को पूरा कर सकते हैं. उस दिन पारण का समय सुबह 5 बजकर 44 मिनट से दोपहर 3 बजकर 49 मिनट तक है. इस बीच में आप कभी सावन शिवरात्रि व्रत का पारण कर सकते हैं. पारण करने के बाद ही व्रत को पूरा माना जाता है.

सावन शिवरात्रि का महत्व
शिव भक्तों के लिए सावन शिवरात्रि का महत्व महाशिवरात्रि के समान ही होता है. दरअसल सावन का महीना भगवान शिव को प्रिय है और शिवरात्रि यानि इस माह की चतुर्दशी ति​थि के प्रतिनिधि देव भगवान शंकर हैं. ऐसे में माह और तिथि दोनों शिव पूजा के लिए उत्तम है. इस वजह से सावन शिवरात्रि के दिन व्रत रखकर शिव शंकर की पूजा करते हैं, मंत्र जाप, जलाभिषेक, रुद्राभिषेक आदि करते हैं, ताकि महादेव की कृपा से संकट दूर हों और पाप से मुक्ति मिले. जीवन में सुख और समृद्धि के साथ सफलता मिले.

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