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कैसे शुरू हुई थी भंडारा करवाने की प्रथा? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में भंडारा करवाने की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है। भंडारा एक तरह का दान ही है जिसके जरिये हम जरूरतमंद लोगों को भोजन प्रदान करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर भंडारा करवाने की ये प्रथा शुरू कैसे हुई थी और इसके पीछे का धार्मिक महत्व क्या है? अगर आपको इसके बारे में जानकारी नहीं है, तो आज हम आपको विस्तार से इसी बारे में अपने लेख में बताएंगे।
भंडारा करवाने का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में अन्न दान को श्रेष्ठ दान माना जाता है। इसलिए भंडारे में भोजन बनाकर लोगों को बांटा जाता है। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो भंडारा करवाकर न केवल हम दूसरों को अन्न प्रदान करते हैं, बल्कि इससे हमें भी आत्मिक संतुष्टि मिलती है। अन्न का दान करने से हमारे पितृ भी प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को भी संतुष्टि प्राप्त होती है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, हम जिन चीजों का दान करते हैं और जितनी मात्रा में दान करते हैं, उतना ही हमें परलोक में प्राप्त होता है। इसलिए हिंदू धर्म में ज्यादा से ज्यादा मात्र में अन्न का दान करने को कहा जाता है। भंडारा करवाने के पीछे भी यही वजह है कि, मृत्युलोक में किया गया अन्न दान हमारे पूर्वजों और हमारी आत्म को संतुष्टि दे।
पौराणिक कथा- ऐसे शुरू हुई भंडारा करवाने की प्रथा
पद्म पुराण में वर्णित है कि, राजा स्वेत मृत्यु के बाद जब परलोक पहुंचे तो उन्हें भोजन प्राप्त नहीं हो पाया था। राजा स्वेत विदर्भ क्षेत्र के राजा थे और उनके राज्य में अन्न-धन की कोई कमी नहीं थी। हालांकि परलोक में उन्हें मांगने पर भी भोजन प्राप्त नहीं हुआ। अंत में थक हारकर राजा ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे इसके पीछे का कारण पूछा। तब ब्रह्मा जी बोले कि, आप भले ही राजा रहे हों लेकिन आपने कभी जरूरतमंद लोगों को भोजन नहीं करवाया। अन्न का कभी दान नहीं किया, इसलिए आपको मृत्यु के बाद अन्न प्राप्त नहीं हो पा रहा है। राजा को अपनी भूल का पता चला तो उन्होंने अपनी भावी पीढ़ियों के स्वप्न में जाकर भंडारा और अन्नदान करने को कहा। और अन्नदान के महत्व को समझाया। माना जाता है कि, तब से ही भंडारा करने की प्रथा का आरंभ हुआ।
क्यों करवाना चाहिए भंडारा?
माना जाता है कि जब भी आपके घर में कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है, उसके बाद भंडारा करवाया जाना चाहिए। धार्मिक और मांगलिक अनुष्ठान के बाद भंडारा करवाने से, किया गया कार्य सफल हो जाता है। साथ ही अन्नदान का पुण्य भी आपको प्राप्त होता है। भंडारा करवाने से और जरूरतमंद लोगों को भोजन करवाने से, आपको ईश्वर का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है और साथ ही
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नवरात्रि में कलश स्थापना के वक्त इन बातों का रखें ध्यान, जानें मुहूर्त और पूजा विधि
वाराणसी: शक्ति उपासना के पर्व नवरात्रि की शुरुआत होने वाली है .नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना का विधान है. कलश स्थापना के साथ ही देवी उपासना के 9 दिनों के इस विशेष पूजा की शुरुआत होती है .कलश स्थापना कैसे करें? इस दौरान किन बातों का ख्याल रखें ? कौन सा समय कलश स्थापना के लिए सबसे सही है? आप के मन में भी यदि यह सवाल है तो आज ही अपने सभी सवालों के जवाब काशी के ज्योतिषाचार्य से जान लीजिए. कि कलश स्थापना के बगैर नवरात्रि की पूजा अधूरी मानी जाती है. कलश स्थापना के लिए मिट्टी का एक शुद्ध कलश, मिट्टी, जौ, नारियल, लाल चुनरी, साड़ी, मिट्टी का दीया, सिक्का, आम का पत्ता, सुपारी, अक्षत का होना जरूरी है.
ऐसे करें कलश स्थापना
स्वामी कन्हैया महाराज ने बताया कि नवरात्रि के पहले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त या शुभ मुहूर्त में ही कलश की स्थापना करनी चाहिए. सुबह स्नान के बाद मिट्टी को किसी पात्र में डालकर उसे गीला कर लेना चाहिए. उसके बाद उसमें जौ बौना चाहिए. इसके बाद मिट्टी के कलश को उस पर स्थापित करना चाहिए. उसके बाद कलश में गंगा जल भरना चाहिए. इसके बाद उसमें सुपारी, सिक्का, फूल डालकर उस पर अक्षत्र भरा मिट्टी का कसोरा रखना चाहिए.इस कलश के सामने एक मां की प्रतिमा रखें. फिर पूरे वैदिक विधि विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए. पूजा पाठ का यह क्रम नवरात्रि के पूरे 9 दिनों तक करना चाहिए. उसके बाद दशहरा के दिन इसका विसर्जन करना चाहिए.
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त?
स्वामी कन्हैया महाराज ने बताया कि इस बार नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर से हो रही है. कलश स्थापना के लिए 3 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 42 मिनट से 8 बजकर 2 मिनट का समय शुभ है. इसके अलावा दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से 2 बजकर 40 मिनट के बीच भी आप घर में कलश स्थापना कर सकते हैं.
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शनि देव को भूलकर भी न चढ़ाएं ये फूल,वारना काम में बढ़ जाएंगी अड़चनें..
हिन्दू धर्म में शनि देव को कर्मफलदाता के नाम से जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यदि शनि देव आपसे प्रसन्न हैं तो वे आपको फर्श से उठाकर अर्श तक पहुंचा देते हैं और यदि आपसे रुष्ठ हुए तो अर्श से फर्श पर भी ले आते हैं. यही कारण है कि उनकी पूजा में कई सारे नियमों का पालन करना जरूरी होती है. हम शनि देव को प्रसन्न करने के लिए कई फूल चढ़ाते हैं लेकिन अनजाने में ऐसे फूल चढ़ा देते हैं, जिनसे शनि देव आपसे नाराज हो सकते हैं. इन फूलों को शनि देव पर चढ़ाना वर्जित माना गया है. कौन से हैं ये फूल? आइए जानते हैं
लाल रंग के फूल
आपने पौधों में लगे लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल या गुलाब कई देवी या देवताओं पर चढ़ाएं होंगे. कहा जाता है कि लाल रंग के फूल खास तौर पर मां दुर्गा को प्रिय होते हैं, लेकिन आप लाल रंग के फूल शनि देव को कभी ना चढ़ाएं. इससे आपको आने वाले समय में समस्याओं से जूझना पड़ सकता है.ऐसा कहा जाता है कि लाल रंग का संबंध मंगल से होता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि और मंगल का एक होना शुभ नहीं माना गया है क्योंकि जब आप लाल रंग के फूल शनि देव को चढ़ाते हैं तो इसका मतलब मंगल को उनके समक्ष रखना, जिससे शनि देव आपसे नाराज हो सकते हैं और आपको जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
गेंदे का फूल
आपने आमतौर पर सभी देवी या देवताओं के मंदिर में गेंदा के फूल देखे होंगे. शास्त्रों में भी कहा जाता है कि गेंदे का फूल चढ़ाने से भगवान हमसे प्रसन्न होते हैं लेकिन शनि देव के चरणों में यदि आप गेंदे का फूल चढ़ाते हैं तो इसे अशुभ माना जाता है. इसका कारण है गेंदे के फूल का सूर्य का प्रतीक होना. सूर्य देव से शनि देव का पिता- पुत्र का संबंध है, बावजूद इसके दोनों के ही संबंध अच्छे नहीं माने जाते. ऐसे में जब आप गेंदे का फूल शनि देव को चढ़ाते हैं, जोकि सूर्य का प्रतीक है तो शनि देव आपसे नाराज हो सकते हैं और उनके क्रोध से आपके जीवन में कई समस्याएं आ सकती हैं.
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करवा चौथ के दिन इतने ही देर रहेगा शुभ मुहूर्त, नोट कर लें चांद निकलने का समय
हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए निर्जला उपवास करती हैं। करवा चौथ के दिन भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिक जी के साथ करवा माता और चंद्र देव की पूजा का विधान है। करवा चौथ का व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही किया जाता है। इस व्रत में चांद की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत करती हैं उन्हें अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही उनका दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है। तो आइए जानते हैं इस साल करवा चौथ की पूजा के लिए कौनसा समय सबसे उत्तम रहेगा।
साल 2024 में करवा चौथ कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का आरंभ 20 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 46 मिनट से होगा। चतुर्थी तिथि का समापन 21 अक्तूबर को सुबह 4 बजकर 16 मिनट पर होगा। ऐसे में इस साल करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर 2024, रविवार के दिन रखा जाएगा।
करवा चौथ 2024 पूजा मुहूर्त और चंद्रोदय का समय
पंचांग के मुताबिक, करवा चौथ की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 20 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 46 मिनट से शाम 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगा। करवा चौथ की पूजा के लिए महिलाओं को करीब 1 घंटा 16 मिनट का समय मिलेगा। करवा चौथ व्रत का समय सुबह 6 बजकर 25 मिनट से शाम 7 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। वहीं चंद्रोदय की बात करें तो 20 अक्टूबर को करवा चौथ का चांद निकलने का समय शाम 7 बजकर 54 मिनट का रहेगा।
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