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फेफड़े ही नहीं इन अंगों को भी खराब करता है प्रदूषण, ऐसे बनता है मौत का कारण…

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आप अपने आसपास देख रहे होंगे की लोग खांस रहे हैं, आंखों में जलन हो रही है और कुछ लोगों को सांस लेने तक में परेशानी हो रही है. यह सब कुछ बढ़ते प्रदूषण के कारण हो रहा है. साल दर साल देश के लिए वायु प्रदूषण एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है. सर्दी की दस्तक के साथ ही देश के कई इलाकों में AQI गंभीर श्रेणी में पहुंच जाता है. हवा के प्रदूषित होने से सांस की बीमारियां हो रही हैं. जिन लोगों को पहले से ही ऐसी बीमारियां हैं उनकी परेशानी बढ़ रही है. पॉल्यूशन के कारण सेहत इतनी खराब हो रही है की ये मौत का कारण बन रही है, हालांकि प्रदूषण सीधे तौर पर तो जान नहीं लेता है, लेकिन इसके कारण शरीर पर जो गंभीर असर पड़ता है. वह जान ले लेता है. पॉल्यूशन सिर्फ फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि शरीर के कई अंगों को एक साथ खराब कर सकता है. जिससे मौत हो जाती है.द लैंसेट कमीशन की रिपोर्ट बताती हैं कि हर साल दुनिया के करीब 90 लाख लोगों की मौत के लिए प्रदूषण जिम्मेदार है. WHO की रिपोर्ट बताती है कि भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा उन इलाकों में रहता है जहां पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस को पूरा नहीं करता है. ऐसे में लोगों को कई तरह की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. पॉल्यूशन शरीर पर कैसे असर करता है. ये किन अंगों को खराब करता है और कैसे मौत का कारण बनता है. इससे बचाव कैसे करें

वायु प्रदूषण शरीर पर कैसे असर करता है?

डॉ. जी. सी खिलनानी बताते हैं कि प्रदूषण में कई तरह की खतरनाक गैस और छोटे-छोटे कण होते हैं. सांस लेने के दौरान ये लंग्स के निचले हिस्से में जाते हैं. फेफड़ों में मौजूद अल्वियोली में ये जमा होने लगते हैं. ये कण फेफड़ों की सेल्स को नुकसान पहुंचाते हैं और सूजन पैदा करते हैं. इससे फेफड़ों में अस्थमा, सीओपीडी और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारी होती है. इन बीमारियों के कारण लगातार खांंसी बनी रहती है. कुछ मरीजों की सांस की नली में बलगम भी जमा होने लगता है. इस वजह से सीने में जकड़न हो जाती है और सांस लेने में परेशानी होती है. अगर सांस की परेशानी लंबे समय तक बनी रहे तो ये लंग्स के साथ साथ हार्ट पर भी गंभीर असर करती है. इससे हार्ट के फंक्शन में कमी आ सकती है.

प्रदूषण से क्या हार्ट अटैक भी आ सकता है?

डॉ खिलानी बताते हैं की एम्स दिल्ली की एक रिसर्च है, जो बताती है कि प्रदूषण बढ़ने के दौरान हार्ट अटैक के मामले 25 फीसदी तक बढ़ जाते हैं. प्रदूषित हवा में मौजूद पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) जैसी खतरनाक गैसें खून में भी जाती हैं. प्रदूषण में मौजूद छोटे-छोटे कम भी खून में जाते हैं और नसों में जाकर जमा होने लगते हैं. इससे नसों में सूजन आ जाती है और शरीर में ब्लड सर्कुलेशन पर असर पड़ने लगता है. जब शरीर में ब्लड सर्कुलेशन सही तरीके से नहीं हो पाता है तो इससे हार्ट को ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है. इससे हार्ट की मांसपेशियों में प्रेशर बढ़ता है. इससे हार्ट बीट में बदलाव होता है. हार्ट को ब्लड पंप करने में परेशानी होने लगती है. जिससे हार्ट अटैक आ सकता है. जो मौत का कारण बन सकता है.

शरीर के किन अंगों पर प्रदूषण का असर होता है?

वायु प्रदूषण का असर लंग्स और हार्ट पर तो होता ही है. इसके अलावा ब्रेन, स्किन, आंखें, पाचन तंत्र और हड्डियों पर भी प्रदूषण का असर होता है. पॉल्यूशन लंग्स कैंसर का भी एक बड़ा कारण है. कई स्टडी आई हैं जिनमें बताया गया है की जो लोग स्मोकिंग नहीं करते हैं उनको भी लंग्स का कैंसर हो रहा है. इसका एक बड़ा कारण प्रदूषण ही है. इस समय दिल्ली एनसीआर में पॉल्यूशन का जो लेवल है वह एक दिन में 10 से ज्यादा सिगरेट पीने के बराबर है. यानी इस जहां प्रदूषण बढ़ा हुआ है वहां आप रहते हैं और सिगरेट नहीं भी पीते हैं तो लंग्स कैंसर का खतरा पूरा है. लंग्स कैंसर दुनियाभर में मौतों का एक बड़ा कारण है.

प्रदूषण से बचाव कैसे करें

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बाल न टूटेंगे-न झड़ेंगे…बस घर पर बने इस लेप से करें मालिश..

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बालों का झड़ना और टूटना आजकल बहुत आम हो गया है. कई लोग गंजेपन से परेशान हैं. लाख कोशिशों के बाद भी बाल ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहे. ऐसा होने पर आप आकाश बेल की मदद ले सकते हैं. इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व बालों की ग्रोथ के लिए फायदेमंद होते हैं. आइए जानते हैं डॉक्टर ने बालों को सही करने के लिए क्या उपाय बताया.

बालों पर क्या लगाना चाहिए?

आयुर्वेदिक डॉक्टर ऐजल पटेल बताते हैं कि गंजेपन को कम करने के लिए आकाश बेल को तिल के तेल में पीस लें और लेप से सिर में अच्छी तरह मालिश करें. ऐसा करने से बालों की जड़ें मजबूत होगी और बाल टूटेंगे नहीं. सिर में खुजली की समस्या भी इस उपाय से ठीक हो जाएगी.

लेप बनाने का तरीका
सबसे पहले आकाश बेल को एकत्रित करें और इन्हें अच्छी तरह से धो लें. तिल का तेल बालों के लिए पौष्टिक माना जाता है, इसलिए इसका उपयोग इस मिश्रण में किया जाता है. आकाश बेल के पेस्ट और तिल के तेल को एक साथ पीसकर एक गाढ़ा लेप तैयार कर लें. इस लेप को बालों की जड़ों में अच्छे से लगाकर हल्के हाथों से मालिश करें. इसे लगभग 30 मिनट तक सिर पर लगाए रखें, फिर गुनगुने पानी से धो लें.

क्या है आकाश बेल?
आकाश बेल एक औषधीय बेल है, जो उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक रूप से उगता है. यह बेल दिखने में हरी होती है और विभिन्न औषधीय गुणों से भरपूर होती है. आयुर्वेद में इस बेल का उपयोग पुराने समय से किया जा रहा है, विशेष रूप से बालों की समस्याओं का समाधान करने के लिए होता है.

आकाश बेल के अन्य फायदे
आकाश बेल न सिर्फ बालों के लिए बल्कि त्वचा और अन्य शारीरिक समस्याओं के लिए भी फायदेमंद है. इसमें मौजूद एंटी-बैक्टीरियल गुण सर की खुजली जैसी समस्याओं को ठीक करने में सहायक होते हैं. इसके अलावा इसका नियमित उपयोग करने से सिर की त्वचा पर ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जो बालों की ग्रोथ में सहायक है.

गंजेपन के लिए प्राकृतिक समाधान
आकाश बेल एक प्राकृतिक औषधि है और इसका नियमित उपयोग बालों को पोषण देकर उन्हें टूटने और झड़ने से बचाता है. यह एक सुरक्षित और प्रभावी उपाय है जिसे आप घर पर ही आसानी से बना सकते हैं.

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क्या होता है हेयर एक्सटेंशन? यह नेचुरल बालों के लिए कितना है सुरक्षित?

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लंबे और घने बाल खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं. अधिकतर लोगों की ख्वाहिश होती है कि उनके बाल सबसे अच्छे दिखें. खासतौर से महिलाएं बालों को लेकर ज्यादा अटेंटिव रहती हैं. जिन महिलाओं के बाल छोटे हो जाते हैं या हल्के हो जाते हैं, वे आजकल हेयर एक्सटेंशन का सहारा लेने लगी हैं. यह एक सिंपल टेक्निक है, जिसके जरिए नेचुरल बालों में सिंथेटिक या ह्यूमन हेयर्स को चिपका दिया जाता है. इससे बाल लंबे और घने नजर आने लगते हैं. आज आपको बताएंगे कि हेयर एक्सटेंशन क्या होता है और यह बालों के लिए कितना सेफ माना जाता है. महिलाओं में हेयर एक्सटेंशन का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है. हेयर एक्सटेंशन उन लोगों के लिए किया जाता है, जिनके बाल छोटे दिखते है. हेयर एक्सटेंशन लगाने के बाद बाल लंबे दिखने लगते हैं. हालांकि एक्सटेंशन कराने के बाद मेंटिनेंस करना भी जरूरी है. आमतौर पर दो तरह के हेयर के जरिए एक्सटेंशन किया जाता है. पहला ह्यूमन हेयर और दूसरा सिंथेटिक हेयर. ह्यूमन हेयर से एक्सटेंशन करवाना ज्यादा रीयल लुक देता है. कई तरह से हेयर एक्सटेंशन किया जाता है और यह काफी सुरक्षित होता है. हेयर एक्सटेंशन 24, 26, 28 इंचेस में उपलब्ध होता है. इसे जरूरत के अनुसार इस्तेमाल किया जाता है.

एक्सपर्ट की मानें तो हेयर एक्सटेंशन में मौजूदा बालों में जोड़कर उनकी लंबाई और मात्रा बढ़ाई जाती है. ये कई प्रकार में आते हैं, जैसे कि क्लिप-इन, टेप-इन, सीव-इन, फ्यूजन और माइक्रो-लिंक एक्सटेंशन. क्लिप-इन एक्सटेंशन अस्थायी होते हैं और इन्हें आसानी से बालों में क्लिप किया जा सकता है. टेप-इन एक्सटेंशन एक सेमी-परमानेंट विकल्प होते हैं, जो आमतौर पर छह से आठ सप्ताह तक चलते हैं. इन्हें चिपकने वाले स्ट्रिप्स के माध्यम से बालों के साथ जोड़ा जाता है. सीव-इन और फ्यूजन एक्सटेंशन अधिक स्थायी होते हैं. सीव-इन एक्सटेंशन में प्राकृतिक बालों को कॉर्नरो में बुनकर, एक्सटेंशन को सीया जाता है. यह प्रक्रिया कई सप्ताह से लेकर महीनों तक चल सकती है, लेकिन यह हेयर एक्सटेंशन किसी एक्सपर्ट से ही करवाना चाहिए.

हेयर एक्सटेंशन पर क्या है डॉक्टर की राय?

कानपुर के मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर और डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. युगल राजपूत ने बताया कि हेयर एक्सटेंशन करवाना सेफ माना जाता है, क्योंकि इसमें बालों को किसी न किसी तरह नेचुरल हेयर्स से चिपकाया जाता है. हालांकि हेयर एक्सटेंशन की जो प्रोसेस कॉम्प्लिकेटेड हैं, उन्हें करवाने से पहले लोगों को एक बार डर्मेटोलॉजिस्ट से मिल लेना चाहिए, ताकि उनके नेचुरल बालों को किसी तरह का नुकसान न हो. जो लोग बालों की प्रॉब्लम्स से जूझ रहे हैं, उन्हें भी इस तरह का कदम उठाने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए.

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कई समस्याओं से छुटकारा दिलाएगा ये पौधा शरीर को मिलेगा कैल्शियम का भी खजाना?

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भारत में विभिन्न प्रकार के पौधे और पेड़ पाए जाते हैं, जिनमें से कई आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर होते हैं, जो हमारे पूर्वजों ने विभिन्न समस्याओं के उपचार के लिए इस्तेमाल किए. हालांकि, समय के साथ आयुर्वेदिक उपचार और इन पौधों का उपयोग कम होता जा रहा है. इसके साथ ही, कई स्थानों पर औषधीय पौधों की खेती भी बंद हो गई है. खासकर किसान जो उचित बाजार और मूल्य नहीं मिलने के कारण अन्य फसलों की ओर मुड़ जाते हैं. हालांकि, औषधीय पौधों की गुणवत्ता ऐसी है कि वे कई तरीकों से उपयोगी हो सकते हैं, तो आज हम ऐसे ही एक पौधे के औषधीय उपयोग के बारे में.

आयुर्वेदिक दृष्टि से एक बहुत ही उपयोगी औषधि
कृषि वैज्ञानिक डॉ. विशाखा चौधरी के अनुसार, “हर औषधीय पौधे में कुछ गुण होते हैं, जिसके कारण इसे विभिन्न प्रकार की समस्याओं में उपयोग किया जाता है. इसी तरह असालिया का उपयोग आयुर्वेद में कई स्थानों पर किया जाता है. असालिया को अंग्रेजी में ‘Asylum’ और गुजराती में चंद्रशूर या हलीम के नाम से जाना जाता है. इस पौधे के हरे पत्ते सब्जी या सलाद के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं, जबकि इसके बीजों का इस्तेमाल दवाई के रूप में होता है.”

औषधीय गुण
इन बीजों में कैल्शियम, आयरन और विटामिन B1 की अधिक मात्रा होती है, जो महिलाओं में एनीमिया और विटिलिगो (सफेद दाग) जैसी समस्याओं के इलाज में सहायक होते हैं. इसके अलावा, असालिया का उपयोग अस्थमा, पल्मोनरी टीबी, खांसी जैसी समस्याओं में भी किया जाता है. इसके साथ ही, बच्चों की वृद्धि में मदद करने के लिए शहद के साथ असालिया के बीजों का सेवन करने से बच्चों की लंबाई बढ़ सकती है और उनका विकास सही तरीके से होता है.

1. रक्ताल्पता : हलीम के काले बीजों में कैल्शियम, आयरन और विटामिन B1 की अधिक मात्रा होती है, जो महिलाओं में रक्ताल्पता को दूर करने में मदद करते हैं.

2. विटिलिगो : हलीम के बीज सफेद दाग (Vitiligo) जैसी समस्याओं के इलाज में सहायक होते हैं, जिससे त्वचा की रंगत (skin tones) में सुधार आता है.

3. सांस की समस्याएं: हलीम का उपयोग अस्थमा, पल्मोनरी टीबी और खांसी जैसी समस्याओं में किया जाता है, जिससे श्वसन प्रणाली (respiratory system) मजबूत होती है.

4. बच्चों की वृद्धि: शहद के साथ हलीम के बीजों का सेवन करने से बच्चों की लंबाई बढ़ सकती है और उनका शारीरिक विकास बेहतर होता है.

5. पशुओं के लिए फायदेमंद: हलीम के बीजों को पशुओं को दिए जाने से उनकी सेहत में सुधार होता है और यह एक बेहतरीन टॉनिक के रूप में काम करता है.

6. आयुर्वेदिक गुण: हलीम एक बहुत ही प्रभावी आयुर्वेदिक औषधि है, जो कई तरह की बीमारियों का उपचार करती है और शरीर को मजबूत बनाती है.

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