रिपोर्टर मुन्ना पांडेय,लखनपुर सरगुजा : सरगुजा लोक त्योहारो के श्रृंखला में छेरछेरा तिहार का विशेष महत्व है।यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परम्परा को याद दिलाता है । अन्नदान का महापर्व सरगुजा में पूरे उल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता रही है कि नये धान फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद अच्छी उपज होने के खुशी में छेरछेरा तिहार मनाईं जाती है। इसे अन्न दान का त्योहार भी कहा जाता है। इससे धन धान्य की वृद्धि होती है।
हर साल षौष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को छेरछेरा तिहार मनायें जाने की प्रथा युग युगान्तर से रही है। इस दिन बच्चे बुजुर्ग महिला सभी एक दूसरे के घरों में जाकर”” छेरछेरा कोठी के धान हेरहेरा “” कहते हुए छेरछेरा मांगते हैं। घरवाले मांगने वालों को धान चावल पैसा दान करते हैं। इस दिन नये चावल से बने चुडा तथा ईख से बनी गुड खाने खिलाने को शुभ माना जाता है। खासकर इसे बच्चों का त्योहार कहा जाता है। सुबह सबेरे छेरछेरा मांगने के बाद बच्चे पिकनिक मनाने किसी झील अथवा जलसरोवरो के पास जाते हैं । अच्छे-अच्छे भोजन व्यंजन बनाकर खाते हैं। बाद इसके बच्चों की टोली देर शाम को बसाहट वाले मोहल्ले टोले के घरो में जाकर ढोल मृदंग बजाते लोक नृत्य करते लोकडी मांगते हैं। घरवाले मांगने वाले बच्चों को चावल पैसा गुड़ छुड़ा देते हैं।
पहले जमाने में छेरछेरा त्योहार के मौके पर बंधुआ मजदूर ,लोहार नाई, धोबी गाय बैल चराने वाले गौसेवकों का समय पुरा होना मानकर हिसाब कर सेवा मुक्त कर देते थे।नये सिरे से पुनः उनका सेवा आरंभ किया जाता था। यही से आने वाले वर्ष के लिए पुनः काम करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। छेरछेरा में जहां खाने खिलाने की रस्मों रिवाज रही है।वहीं महुआ चावल से बने कच्ची शराब पीने पिलाने का दौर भी चलता है। लोग झूमते गाते छेरछेरा त्योहार की खुशी मनाते हैं। मुर्गा बकरा खाने खिलाने के साथ शराब पीने पिलाने की चलन भी इस त्योहार में शामिल हैं।फिलहाल छेरछेरा त्योहार कुछ लोग 12 जनवरी दिन रविवार को मनायेंग। कुछ धार्मिक भावनाओं वाले लोगों द्वारा सहज सरल तरीके से 13 जनवरी सोमवार को मनाया जाएगा। ताकि पीने पिलाने खाने खिलाने पर कोई पाबंदी ना रहे। आदिवासी बाहुल्य इलाकों में छेरछेरा त्योहार सप्ताह भर तक मनाया जाता है।