Home देश-विदेश जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा नहीं… क्‍या यह मोदी सरकार की बड़ी जीत?...

जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा नहीं… क्‍या यह मोदी सरकार की बड़ी जीत? जानें आर्ट‍िकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के क्‍या है मायने?

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संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट को दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर फैसला देने की जरूरत नहीं है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा क‍ि याचिकाकर्ताओं की दलील से संकेत मिलता है कि मुख्य चुनौती अनुच्छेद 370 को निरस्त करना है और क्या राष्ट्रपति शासन के दौरान ऐसी कार्रवाई की जा सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का फैसला बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केन्‍द्र की नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी जीत है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है क‍ि चुनाव आयोग जम्‍मू-कश्‍मीर में 30 सितंबर 2024 तक चुनाव कराए और जितनी जल्दी हो सके राज्य दर्जा बहाल करें. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के दौरान कहा क‍ि आर्ट‍िकल 370 एक अस्थायी प्रावधान है और संसद को 370 में बदलाव करने का अधिकार है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है क‍ि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा है क‍ि कश्मीर पर केंद्र का फैसला आखिरी माना जाएगा, जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है.

जानें क्‍या है सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्‍य ब‍िंदू

1. विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद जम्मू-कश्मीर के पास संप्रभुता का कोई तत्व नहीं है.

2. जम्मू-कश्मीर के लिए कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है.

3. राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा को चुनौती मान्य नहीं है.

4. राष्ट्रपति की शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति शासन के उद्देश्य के साथ उचित संबंध होना चाहिए.

5. राज्य के लिए कानून बनाने की संसद की शक्ति कानून बनाने की शक्ति को बाहर नहीं कर सकते हैं.

6. अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था.

7. जब संविधान सभा भंग कर दी गई तो सभा की केवल अस्थायी शक्ति समाप्त हो गई और राष्ट्रपति के आदेश पर कोई प्रतिबंध नहीं रहा.

8. सीओ 272 का पैरा 2 जिसके द्वारा अनुच्छेद 370 को अनुच्छेद 367 में संशोधन करके संशोधित किया गया था. वह गलत था, क्योंकि व्याख्या खंड का उपयोग संशोधन के लिए नहीं किया जा सकता है.

9. राष्ट्रपति द्वारा सत्ता का उपयोग दुर्भावनापूर्ण नहीं था और राज्य के साथ किसी सहमति की आवश्यकता नहीं थी.

10. धारा 370(1)(डी) के तहत शक्ति के प्रयोग में सीओ 272 का पैरा 2, भारतीय संविधान के सभी प्रावधानों को जम्मू-कश्मीर में लागू करना वैध था.

11. राष्ट्रपति द्वारा सत्ता का निरंतर प्रयोग दर्शाता है कि एकीकरण की क्रमिक प्रक्रिया जारी थी. इस प्रकार CO 273 वैध है.

12. राष्ट्रपति द्वारा सत्ता का उपयोग दुर्भावनापूर्ण नहीं है.

13. एसजी ने बयान दिया कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा. हम लद्दाख को अलग करने के फैसले को बरकरार रखते हैं. हम चुनाव आयोग को पुनर्गठन अधिनियम और राज्य के दर्जे की धारा 14 के तहत जल्द से जल्द चुनाव कराने का निर्देश देते हैं.

14. पूर्व राज्य का दर्जा जितनी जल्दी हो सके दिया जाए.

15 चुनाव आयोग को सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने का निर्देश दिया है.

सीजेआई ने कहा क‍ि भले ही सुप्रीम कोर्ट यह मानता हो कि अनुच्छेद 356 के तहत उद्घोषणा जारी नहीं की जा सकती, इस तथ्य के मद्देनजर राहत नहीं दी जा सकती कि अक्टूबर 2019 में राज्य में राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया था. सीजेआई चंद्रचूड़ तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने वाले 2019 के राष्ट्रपति आदेश की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुना रहे हैं.

5 सितंबर को, एक संविधान पीठ, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल थे, ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इससे पहले मार्च 2020 में, पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को सौंपने के याचिकाकर्ताओं के तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. तत्कालीन सीजेआई एन.वी. रमण की अध्यक्षता वाली 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 की व्याख्या से संबंधित प्रेम नाथ कौल मामले और संपत प्रकाश मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए पहले के फैसले प्रत्येक के साथ विरोधाभास में नहीं थे.

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