
एक तरफ जहां होली पर मस्जिदें ढकी गईं और जुम्मे पर कुछ लोगों ने बाहर निकलने से परहेज किया। तो वहीं दूसरी तरफ बाराबंकी में इसका कोई असर तक नहीं दिखा। यहां सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर या वारिस, के नारे हर तरफ गूंजते रहे।
यहां की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यह मजार मिसाल है इस बात कि रंगों का कोई मजहब नहीं होता बल्कि रंगों की खूबसूरती हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। यही वजह है कि हर साल की तरह ही इस बार भी यहां गुलाल व गुलाब से सभी धर्मों के लोगों ने एक साथ होली खेली और आपसी भाईचारे की अनोखी मिसाल पेश की।
आपको बता दें कि सूफी संत हाजी वारिस अली शाह ने यह संदेश भी दिया कि जो रब है वही राम है। शायद इसीलिए यह स्थान हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश देता आ रहा है। इस मजार पर मुस्लिम समुदाय से कहीं ज्यादा संख्या में हिन्दू समुदाय के लोग आते हैं। कौमी एकता गेट से लोग नाचते गाते गाजे बाजे के साथ जुलूस निकाला। यह जुलूस हर साल की तरह देवा कस्बे से होता हुआ दरगाह पर पहुंचा। इस बार भी जुलूस में हर धर्म के लोग शामिल हुए।
इस मौके पर देवा शरीफ में आए लोगों ने बताया कि यहां की होली खेलने की परंपरा सैकड़ों साल पहले सरकार के जमाने से चली आ रही है। गुलाल और गुलाब से यहां होली खेली जाती है। होली के दिन यहां देश के कोने-कोने से सभी धर्म के लोग यहां आते हैं और एक दूसरे को रंग व गुलाल लगाकर भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं। वहीं देवा की वारसी होली कमेटी के अध्यक्ष शहजादे आलम वारसी ने बताया कि मजार पर होली सरकार के जमाने से होती आई है, इसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं। होली पर कई क्विंटल गुलाल और गुलाब से यहां होली खेली जाती है।