
कोलकाता: जादवपुर विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों के घेरे में है। इस बार मामला रामनवमी के आयोजन को लेकर गरमाया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने परिसर में रामनवमी मनाने की योजना बनाई थी, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस पर रोक लगा दी।
एबीवीपी ने इसे एकतरफा फैसला करार देते हुए कड़ा विरोध जताया है और सवाल उठाया है कि अगर रामनवमी पर रोक है, तो इफ्तार जैसे आयोजनों पर चुप्पी क्यों?
विश्वविद्यालय का तर्क: कुलपति की अनुपस्थिति
विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस रोक के पीछे कुलपति की अनुपस्थिति को कारण बताया है। हाल ही में राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने अंतरिम कुलपति को हटा दिया था, जिसके बाद से यह पद खाली है। अधिकारियों का कहना है कि कुलपति की गैरमौजूदगी में कोई भी समारोह आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस संबंध में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया है, जिसमें डीन और अन्य अधिकारियों के हस्ताक्षर मौजूद हैं। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यह नियमों के तहत लिया गया फैसला है। बिना कुलपति के ऐसे आयोजनों की मंजूरी संभव नहीं।”
एबीवीपी का पलटवार: ‘दोहरा मापदंड क्यों?’
एबीवीपी ने इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया है। संगठन का दावा है कि कुलपति की अनुपस्थिति के बावजूद विश्वविद्यालय का रोजमर्रा का कामकाज सुचारू रूप से चल रहा है, तो फिर रामनवमी जैसे धार्मिक आयोजन पर रोक क्यों? कोलकाता जिला सचिव देबांजन पाल ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हम अपने परिसर में भगवान श्री राम की छोटी-सी पूजा करना चाहते हैं। क्या जादवपुर विश्वविद्यालय अब पश्चिम बंगाल का हिस्सा नहीं है? अगर यहां इफ्तार हो सकता है, सरस्वती पूजा धूमधाम से मनाई जा सकती है, तो रामनवमी पर यह रोक क्यों? यह विश्वविद्यालय प्रशासन का एकतरफा और पक्षपातपूर्ण रवैया है।”
देबांजन ने यह भी याद दिलाया कि इससे पहले 2020 में राम मंदिर भूमि पूजन के दौरान एबीवीपी ने परिसर में लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति मांगी थी, लेकिन तब भी प्रशासन ने मना कर दिया था। उस घटना के बाद परिसर में तनाव की स्थिति बन गई थी, और अब एक बार फिर ऐसा ही माहौल बनता दिख रहा है।
परिसर में धार्मिक आयोजन: एक पुराना विवाद
जादवपुर विश्वविद्यालय में धार्मिक आयोजनों को लेकर पहले भी बहस छिड़ती रही है। एक ओर जहां सरस्वती पूजा और दुर्गा पूजा जैसे त्योहार परंपरागत रूप से मनाए जाते हैं, वहीं कुछ संगठन इसे सेक्युलर परिसर के सिद्धांतों के खिलाफ मानते हैं। एबीवीपी का तर्क है कि अगर अन्य धार्मिक आयोजनों को अनुमति मिलती है, तो रामनवमी पर रोक पक्षपात को दर्शाती है। दूसरी ओर, कुछ छात्र संगठनों का कहना है कि विश्वविद्यालय को धार्मिक गतिविधियों से दूर रखना चाहिए, ताकि इसका शैक्षणिक माहौल प्रभावित न हो।
छात्रों की राय: बंटा हुआ परिसर
इस मुद्दे पर छात्रों के बीच भी मतभेद साफ दिख रहा है। बीए के छात्र अर्णब मजूमदार ने कहा, “रामनवमी मनाने में क्या दिक्कत है? यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। प्रशासन को इतना सख्त रुख नहीं अपनाना चाहिए।” वहीं, एमएससी की छात्रा रिया दास ने इसे दूसरी नजर से देखते हुए कहा, “विश्वविद्यालय पढ़ाई की जगह है, न कि धार्मिक आयोजनों की। इससे माहौल खराब होता है।”
आगे क्या होगा?
एबीवीपी ने साफ कर दिया है कि वह अपने फैसले पर अडिग है और रविवार को पूजा का आयोजन करेगी। संगठन के इस रुख से परिसर में तनाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह इस स्थिति से कैसे निपटेगा। क्या पुलिस की मदद ली जाएगी या कोई समझौता होगा, यह आने वाले दिनों में साफ होगा।
यह विवाद न सिर्फ जादवपुर विश्वविद्यालय की नीतियों पर सवाल उठा रहा है, बल्कि शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक स्वतंत्रता और सेक्युलरिज्म के बीच संतुलन की बहस को भी हवा दे रहा है। जैसे-जैसे रविवार नजदीक आ रहा है, सभी की नजर इस बात पर टिकी है कि यह मामला शांति से सुलझेगा या नया रूप लेगा।