
कवर्धा: ये कहानी है जीवनदायिनी सकरी नदी की. ऐसी नदी जिसके किनारों पर पहुंचकर कभी छत्तीसगढ़ के कवर्धा शहर की आधी आबादी की दिन की शुरुआत होती थी, लेकिन अब वही सकरी नदी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. स्थानीय बिसरू यादव बताते हैं, ”सकरी नदी में पहले मई और जून के महीनों में भी पानी की धार चलती थी. शहर की आधी आबादी नदी के पानी का ही उपयोग करती थी.”
कहानी जीवनदायिनी सकरी नदी की: वहीं होरीलाल देवांगन बताते हैं कि नदी में पहले 12 महीने पानी रहता था. अब बेकार स्थिति है. नदी सूखने से लोगों को दिक्कत हो रही है. जब से लोगों के घर में नल लगा है, तब से दुर्दशा हुई है. कुंजराम कुम्भकार कहते हैं कि पहले लोगों के दिन की शुरुआत नदी से हुआ करती थी, लेकिन जैसे जैसे सुविधाएं बढ़ती गई, लोगों के घरों में नल, बोर होने लगा. फिर लोग निस्तारी घर में करने लगे और घर का गंदा पानी नालियों से होते हुए नदी में आने लगा और नदी की यह दुर्दशा हो गई.”
सीवरेज और नालों का पानी नदी में मिला: स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि शहर भर के ज्यादातर नालों का गंदा पानी नदी में गिराया जा रहा है. इसके अलावा नदी से अवैध रेत खनन और नदी के पार को काट कर बड़ी संख्या में लोग पक्का मकान बना रहे हैं. अब स्थिति ऐसी है कि जीवनदायिनी सकरी नदी में बारिश के मौसम के दौरान यानी बमुश्किल दो चार महीना पानी होता है. फिर पूरे साल शहर भर से निकलने वाले लोगों के घरों का गंदा पानी और बदबू का आलम बना रहता है.
नदी को साफ करने किया गया था प्रयास: नदी के जीर्णोद्धार के लिए प्रयास भी किया गया. पूर्ववती कांग्रेस सरकार में तत्कालीन कलेक्टर रमेश शर्मा ने जन सहयोग से शहर के दायरे में पड़ने वाली नदी में जेसीबी से खुदाई कराकर नदी से भारी मात्रा में गाद को साफ कराया. जलभराव करने सरोधा जलाशय को नदी से जोड़ा ताकि यहां गर्मी के दिनों में भी पानी भरा रहे और शहर में जलस्तर लेवल हो और ठंडकता बनी रहे.
कृष्ण कुंज गार्डन: इसके अलावा नदी के किनारे तत्कालीन सरकार की महत्वाकांक्षी योजना में शामिल कृष्ण कुंज गार्डन का भी निर्माण कराया गया, जहां वृक्षारोपण भी हुआ ताकि लोग नदी के किनारे घूमने आएं. इसके लिए बैठने की कुर्सी व्यवस्था भी की गई, लेकिन वक्त बीता, सरकार बदली, कलेक्टर बदले और बदल गए हालात. नदी को दोबारा उसके हाल में छोड़ दिया गया और उसमें फिर से गंदगी का अंबार लगने लगा.
नदी में आज भी बहता है पानी: जानकार बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि सकरी नदी में पानी नहीं है. सकरी नदी के उद्गम स्थल भोरमदेव के पास करिया आया के जंगल से लेकर राजानावांव, अमलीडीह गांव तक नदी में साफ पानी बहता है. फिर कवर्धा आते आते नदी दम तोड़ देती है.
सिमगा के शिवनाथ नदी में जुड़ता है: शहर के निवासी जितेंद्र नामदेव बताते हैं कि शहरी क्षेत्र के लगभग तीन से चार किलोमीटर दायरे के बाद नदी में फिर से पानी नजर आता है, जो बेमेतरा जिला होते हुए सिमगा के शिवनाथ नदी में जुड़ जाता है. गंदगी, दलदल पटने और गाद जमा होने के कारण शहरी क्षेत्र में पानी जमीन के अंदर होके गुजर जाता है, इसलिए नदी में पानी नजर नहीं आता.
स्टाप डेम से सूखी नदी: जानकार बताते हैं कि नदी में पानी को रोकने के लिए जगह जगह पक्का स्टाप डेम और पुलिया का निर्माण किया गया. इसके साथ ही नदी में चट्टान पत्थर को तोड़ने ब्लास्टिंग भी की गई थी, जिसके कारण नदी में पानी का बहाओ, धीरे धीरे कम होता गया और अब कुछ वर्षों से स्थिति ऐसी है कि सिर्फ बारिश में ही पानी नदी में दिखता है.
नगर पालिका की दलील: नगरपालिका कवर्धा अध्यक्ष चन्द्रप्रकाश चन्द्रवंशी कहते हैं कि सकरी नदी शहर के लिए जीवनदायिनी नदी है लेकिन वर्तमान में नदी की जो स्थिति है, वो चिंताजनक है. इसके लिए लोग ही जिम्मेदार हैं. सकरी नदी को बचाना हम सभी का कर्तव्य है और हमारा दायित्व भी है. इस दिशा में नगरपालिका पहल कर रही है. नदी के संरक्षण और सौंदर्यीकरण के लिए हम भविष्य में योजना बनाकर काम करेंगे.
नई सरकार से उम्मीद: भाजपा की विष्णु देव साय सरकार और उपमुख्यमंत्री व कवर्धा विधायक विजय शर्मा और नगरपालिका में भाजपा की शासन होने के चलते लोगों को एक नई उम्मीद जगी है कि अब नदी में जाने वाले नाला के पानी को परिवर्तित किया जाएगा. नदी का जीर्णोद्धार होगा ताकि सकरी नदी पहले जैसे अपने रुप में वापस लौटेगी.