प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा (Ram Temple) कर देश को बड़ी सौगात दी है. इसके दूसरे ही दिन जननायक कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को भारत रत्न (Bharat Ratna) देकर ये साबित कर दिया कि राम के आदर्शों पर लगातार वे चलते रहे हैं और आगे भी चलते रहेंगे. जननायक कर्पूरी बाबू के नाम पर सियासत करने वाली पार्टियां और नेताओं की तो भरमार रही लेकिन उन्हें इसका उचित सम्मान नहीं मिला. कर्पूरी बाबू को ना तो कांग्रेस (Congress) सरकार में उचित सम्मान मिला और ना ही उनके पदचिह्नों पर चलने वाले वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में उन्हें वो सम्मान मिला, जिसके वो हकदार थे.
मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न देकर साबित कर दिया कि केंद्र की मोदी सरकार कर्पूरी बाबू के आदर्शों से कितनी प्रभावित है. मोदी सरकार का ये फैसला विपक्षी नेताओं के गले का फांस बन गया, जो ना तो निगलते बन रहा था और ना तो उगलते. हार मान कर भारी मन से उनकी विरासत पर राज करने वाले नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद कहा. आखिर वे करते तो क्या करते. हालांकि, विपक्ष है तो विरोध के तौर पर कई ने कह दिया कि मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए ये फैसला किया है. विपक्ष की ये हताशा लाजिमी है, क्योंकि वे कर्पूरी ठाकुर के विचारों को एक तरह से हासिये पर डाल रखा था.
विपक्ष पर पीएम मोदी का फैसला भारी
हालांकि, विपक्ष के सवाल पर पीएम मोदी का ये फैसला भारी दिख रहा है. जले पर नमक तो तब लगी, जब पीएम मोदी ने बता दिया कि उनकी सरकार निरंतर जननायक कर्पूरी ठाकुर जी से प्रेरणा लेते हुए काम कर रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की नीतियों और योजनाओं में कर्पूरी ठाकुर के विजन का असर दिखाई देता है, जिससे देशभर में सकारात्मक बदलाव आया है. ये हकीकत है कि भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि कर्पूरी जी जैसे कुछ नेताओं को छोड़कर सामाजिक न्याय की बात बस एक राजनीतिक नारा बनकर रह गई थी. लेकिन कर्पूरी बाबू के विजन से प्रेरित होकर मोदी सरकार ने इसे एक प्रभावी गवर्नेंस मॉडल के रूप में लागू किया. यानी ये कहा जा सकता है कि कर्पूरी ठाकुर की नीतियों को मोदी सरकार ने शुरुआत से लागू करने की पहल की है.