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दूध को कब पीने से मिलता है सबसे ज्यादा फायदा?

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डॉक्टरों के मुताबिक दूध में संपूर्ण पोषक तत्व मौजूद होता है. अगर एक गिलास दूध रोजाना पी लिया जाए और उसके साथ कुछ भोजन भी कर लिया जाए तो शरीर को पौष्टिक तत्वों की जितनी जरूरत होती है, सब मिल जाती है. हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के मुताबिक गाय के दूध में 87 प्रतिशत पानी होता है लेकिन इसके बाद जो 37 प्रतिशत अन्य चीजें होती हैं वह हमारे सेहत के लिए अमृत है. इन 37 प्रतिशत में 13 प्रतिशत प्रोटीन के अलावा फैट, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रैट, विटामिन और मिनिरल्स मौजूद होते हैं. एक वयस्क इंसान को रोजाना 226 ग्राम दूध पीने की सलाह दी जाती है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि दूध कब पीना सबसे ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है.

कब पीना चाहिए दूध

वोग पत्रिका ने एक्सपर्ट के हवाले से बताया है कि दूध को कभी पीने से फायदा मिल सकता है लेकिन अगर आप रात में सोने से पहले दूध पीते हैं तो इसका बहुत फायदा है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि सोने से पहले दूध पीने से नींद बहुत सुकून की आएगी. क्योंकि नींद लाने के लिए जरूरी मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को दूध में मौजूद तत्व बढ़ा देता है. अगर आप दूध दिन में पीते हैं तो इससे पूरा दिन भूख नहीं लगेगी. यह उन लोगों के लिए ज्यादा फायदेमंद है जो लोग वजन कम करना चाहते हैं क्योकि अगर भूख नहीं लगेगी तो ज्यादा नहीं खाएंगे और इससे वजन कम होगा. हालांकि हर इंसान को दूध फायदा पहुंचाए ही, यह जरूरी नहीं. कुछ लोगों को दूध ब्लॉटिंग या गैस की समस्या को बढ़ा देता है.

दूध के नुकसान

सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड पेनक्रिएटिक बिलीएरी साइंसेज के कंसल्टेंट डॉ. श्रीहरि अनिखिंडी ने बताया कि भारत में 70 प्रतिशत लोगों को मिल्क इंटलॉरेंस हैं. यानी अधिकांश लोगों की आंतें दूध को सहन नहीं कर पाती है. इससे अपच, गैस, ब्लॉटिंग जैसी समस्याएं होती हैं. उन्होंने बताया कि दूध और डेयरी प्रोडक्ट में लेक्टोज होता है. लेक्टोज को तोड़ने या पचाने के लिए लेक्टेज (lactase) एंजाइम की जरूरत होती है. लेकिन अधिकांश लोगों में लेक्टेज एंजाइम कम बनता है जिसके कारण यह पेट में पच नहीं पाता है और ब्लॉटिंग की समस्या को बढ़ा देता है. दूध में सबसे ज्यादा लेक्टोज होता है. इन लोगों के लिए बेहतर यही है कि दूध का रात में सेवन करें और सीमित मात्रा में करें. दूसरी ओर फूड प्वाइजनिंग की स्थिति में दूध का सेवन बिल्कुल न करें. इन लोगों के लिए बेहतर यही है कि दूध की जगह दही का सेवन करें.

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हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को न करें नजरअंदाज,बन सकती हैं हार्ट की बीमारियों का कारण..

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हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी भी अब डायबिटीज की तरह तेजी से बढ़ रही है. आईसीएमआर के मुताबिक, देश में हाई बीपी के मरीजों की संख्या 20 करोड़ से अधिक है. यह आंकड़ा हर साल बढ़ रहा है. अब युवाओं को भी यह समस्या हो रही है.ब्लड प्रेशर का बढ़ना शरीर के लिए खतरनाक माना जाता है. अगर ये कंट्रोल नहीं होता तो इससे हार्ट अटैक आने का रिस्क होता हैं, हालांकि फिर भी कई लोग हाई बीपी की समस्या को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन डॉक्टरों का कहना है की अगर बीपी हाई रहने की समस्या रहती है तो इसको नजरअंदाज न करें. बीपी को कंट्रोल में रखें और नियमित रूप से अपना बॉडी चेकअप भी कराते रहें. नारायणा अस्पताल, गुरुग्राम में सीनियर कंसल्टेंट, कार्डियक सर्जन डॉ.रचित सक्सेना बताते हैं कि युवा पीढ़ी में भी अब हाई ब्लड प्रेशर जैसी स्वास्थ्य समस्याएं देखी जा रही हैं. हाई बीपी हार्ट अटैक का एक बड़ा कारण है. ऐसे में जरूरी है कि अगर हाई बीपी की समस्या है और किसी भी प्रकार की बेचैनी या छाती में दर्द महसूस करते हैं, तो सबसे पहले ईसीजी कराना चाहिए. ईसीजी से हार्ट बीट का पता चल जाता है जो दिल की बीमारियों की पहचान का एक तरीका है. आज के दौर मेंआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के जरिए भी दिल की बीमारियों की समय पर पहचान हो सकती है.

कौन से टेस्ट कराएं

डॉ. अविनाश बंसल, सीनियर कंसल्टेंट, इंटरवेंशनल, क्लिनिकल और क्रिटिकल कार्डियोलॉजी और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी, श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट बताते हैं कि देश की एक बड़ी आबादी में हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी हो रही है. हाई ब्लडप्रेशर की वजह से हार्ट अटैक आ जाता है, लेकिन फिर भी लोग इस समस्या को नजअंदाज कर देते हैं. नियमित जांच से ही इस बीमारी की पहचान हो सकती है. सभी लोगों को सलाह है कि साल में कम से कम एक बार हार्ट की जांच करा लें. इसके लिए लिपिड प्रोफाइल टेस्ट और चेस्ट का सीटी स्कैन करा सकते हैं. अगर हाई बीपी के मरीज हैं तो हर दो दिन में अपना ब्लड प्रेशर नापते रहें. आपका बीपी हमेशा 120/80 mmHg से कम होना चाहिए. अगर ये ज्यादा बढ़ रहा है तो डॉक्टर से सलाह लें. इस मामले में लापरवाही न करें

कैसे करें बचाव

इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर में कार्डियोलॉजी विभाग में डायरेक्टर डॉ.असीम ढल्ल बताते हैं कि हार्ट की बीमारियों को गंभीरता से लेने की जरूरत है. इसके लिए समय पर जांच कराएं और अपनी हेल्थ का ध्यान रखें. नियमित एक्सरासाइज, संतुलित आहार से आप अपनी हार्ट हेल्थ को अच्छा रख सकते हैं.

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महिलाओं में पीसीओडी की बीमारी बन रही हार्ट अटैक का कारण…

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आमतौर पर माना जाता है कि पुरुषों में हार्ट अटैक और दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा ज्यादा रहता है लेकिन अब पीरियड्स की अनियमितता के चलते हार्ट से जुड़ी बीमारियों का खतरा महिलाओं में भी बढ़ रहा है, जिसमें पीसीओडी, मोटापा और वायु प्रदूषण जैसे कारक जिम्मेदार हैं. यही वजह है कि पिछले कुछ समय में महिलाओं में होने वाली हार्ट अटैक से मृत्यु के मामलों में काफी उछाल देखा गया है. ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी’ के अनुसार, दिल से संबंधित बीमारियां भारतीय महिलाओं में मौत की एक बड़ी वजह हैं जिसमें 17 प्रतिशत से अधिक मौतें इसी वजह से होती हैं.

क्या है पीसीओडी

पीसीओडी एक लाइफस्टाइल डिजीज है जिसमें कई कारणों के चलते महिलाओं के पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं, इसमें अनहेल्दी लाइफस्टाइल, बाहर का जंक फूड ज्यादा खाना, कम नींद, स्ट्रेस और मोटापा मुख्य कारक हैं जिनकी वजह से पीसीओडी की समस्या होती है. यही वजहें आगे चलकर हार्ट अटैक का कारण बनती हैं. पीसीओडी आजकल महिलाओं में देखी जाने वाली सबसे कॉमन समस्या बनकर उभर रही है जिसमें वजन बढ़ना, इंसुलिन रेजिस्टेंस, प्री-डायबिटीज से लेकर डायबिटीज की स्थिति, एंड्रोजन की अधिकता जैसे लक्षण बेहद आम हैं. साथ ही एक्सपर्ट्स का मानना है कि पीसीओडी में रक्त वाहिकाओं और हृदय पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है

पीसीओडी से बचने के उपाय

1. वजन को नियंत्रित करें.

2. रोजाना एक्सरसाइज करें.

3. स्ट्रेस को मैनेज करने के लिए योगा या मेडिटेशन का सहारा लें.

4. रोजाना 7 से 8 घंटे की पर्याप्त नींद लें.पीसीओ

5. स्मोकिंग और ड्रिंकिंग न करें.

 

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सेहत

डेंगू का बुखार होने के बाद कितने दिनों में गिरने लगती हैं प्लेटलेट्स…

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देश के कुछ राज्यों में इस समय डेंगू के मामलों में इजाफा हो रहा है. दिल्ली-एनसीआर से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों में डेंगू के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. मच्छरों से होने वाली इस बीमारी के अधिकतर मरीज ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में ये बुखार जानलेवा साबित हो जाता है. इस साल भी अभी तक डेंगू से कुछ लोगों की मौत हो चुकी है. मौत का एक बड़ा कारण शरीर में प्लेटलेट्स का लेवल गिरना होता है. कई मामलों में लोगों को यह पता नहीं होता है कि प्लेटलेट्स कब गिरते हैं और इसके लक्षण क्या है. जानकारी न होने की वजह से लोग देरी से अस्पताल जाते हैं और समय पर इलाज न होने से डेंगू खतरनाक साबित होता है.

कितने दिनों में गिरने लगती हैं प्लेटलेट्स?

दिल्ली में लेडी हार्डिंग हॉस्पिटल मे मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर डॉ. सुभाष गिरी बताते हैं कि डेंगू से संक्रमित होने के बाद आमतौर पर हल्के लक्षण होते हैं. इनमें बुखार, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द होता है. कुछ लोगों के शरीर में प्लेटलेट्स का लेवल गिर सकता है. बुखार होने के बाद तीसरे से चौथे दिन तक प्लेटलेट्स की संख्या गिरने लगती हैं. अधिकतर मरीजों में तीन से चार दिन बाद प्लेटलेट्स रिकवर होने हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में यह लगातार कम होते रहते हैं. जो जानलेवा हो सकता है.

डेंगू में प्लेटलेट्स गिरने के लक्षण क्या हैं?

अगर डेंगू के बुखार के दौरान आपको लगातार थकान, कमजोरी, बीपी का बढ़ना, शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो रही है या मसूड़ों से खून आ रहा है तो ये प्लेटलेट्स के तेजी से गिरने का संकेत होता है. अगर बुखार के दौरान ऐसे लक्षण दिखते हैं तो आपको तुरंत डॉक्टरों से संपर्क करना चाहिए. इस मामले में भी बिलकुल भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए.

डेंगू में प्लेटलेट्स कैसे बढ़ाएं

डेंगू के बुखार के दौरान ये जरूरी है कि आप फलों और हरी सब्जियों का सेवन करें. इस दौरान शरीर को हाइड्रेट रखना जरूरी है और आप सात से आठ गिलास पानी पिएं और नारियल पानी का भी सेवन करें. इस दौरान प्लेटलेट्स कम होने के लक्षणों का भी ध्यान रखे. अगर लक्षण ठीक हो रहे हैं तो आप इन चीजों का पालन करते रहें, लेकिन अगर लक्षणों में कमी नहीं आ रही है तो किसी भी तरह के घरेलू नुस्खों के फेर में न फंसें और अस्पताल जाकर डॉक्टर से सलाह लें.

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