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हर 12 साल बाद खुलता है पुण्य का दरवाजा, महाकुंभ से जुड़ी ये खास बातें नहीं जानते होंगे आप

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Maha Kumbh 2025 : कुंभ मेला, एक ऐसा आयोजन है जहां आस्था और खगोलीय विज्ञान का अनोखा मेल होता है. 144 सालों में एक बार लगने वाला महाकुंभ हो या हर 12 साल में आयोजित पूर्णकुंभ, ये सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, मोक्ष और सनातन संस्कृति का उत्सव है. ऐसे में आइए, जानें इस अद्भुत आयोजन के पीछे छुपे रहस्यों की कहानी के बारे में.

कुंभ मेला सूर्य, चंद्रमा और गुरु ग्रह की खास स्थिति के अनुसार चार पवित्र स्थानों, ‘प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक’ में किया जाता है. इस दौरान इन स्थानों के पवित्र जल को विशेष रूप से शुभ और पवित्र माना जाता है, जिससे लाखों श्रद्धालु आत्मशुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां स्नान करने आते हैं.

अर्धकुंभ मेला हर 6 साल में केवल प्रयागराज और हरिद्वार में आयोजित होता है, जबकि पूर्णकुंभ हर 12 साल में केवल प्रयागराज में होता है. अर्धकुंभ को कुंभ मेला के मध्य चरण के रूप में देखा जाता है, वहीं पूर्णकुंभ धार्मिक उत्सव का उच्चतम स्तर है.

महाकुंभ (Maha Kumbh 2025) का आयोजन इसे सबसे दुर्लभ बनाता है. ये 144 साल में केवल एक बार आयोजित होता है और इसे 12 पूर्णकुंभ के बाद मनाया जाता है. महाकुंभ का महत्व इसके आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पहलुओं में निहित है, जहां लाखों श्रद्धालु महासंगम में शामिल होकर आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं.

ये आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज के अलग-अलग वर्गों को एक साथ लाने वाला अद्भुत आयोजन है. यहां हर धर्म, जाति और वर्ग के लोग समानता और समर्पण के भाव से एकजुट होते हैं.

इस मेले में स्नान करने से सभी पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है. इसे आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने और आत्मा को शुद्ध करने का सुनहरा अवसर माना जाता है. इसके साथ ही, ये आयोजन भारतीय संस्कृति की समृद्धि और परंपराओं का खास उदाहरण पेश करता है..

 

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