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स्मारक पर छिड़ी सियासत: मनमोहन ही नहीं, पूर्व पीएम की समाधि स्थल का कैसे होता है फैसला, क्या हैं नियम?

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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद आज उनके जीवन की अंतिम यात्रा भी समाप्त हो गई। उनके पार्थिव शरीर को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। वहीं उनकी आखिरी विदाई से पहले ही उनके लिए स्मारक बनाए जाने को लेकर सियासत शुरू हो गई है। कांग्रेस का आरोप है कि पूर्व प्रधानमंत्री की अंत्येष्टि और स्मारक के लिए सरकार जगह नहीं ढूंढ पा रही है, यह उनका अपमान है। वहीं कांग्रेस के इस बयान पर ने कांग्रेस पर गंदी राजनीति करने का आरोप लगाया है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि मनमोहन सिंह के स्मारक निर्माण के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने की प्रक्रिया चल रही है। इसमें कुछ दिन का समय लगेगा।

देश के कई पूर्व पीएम की समाधि दिल्ली में बनी है तो वहीं कुछ पूर्व पीएम को इसके लिए दिल्ली में जगह नहीं मिली थी। समाधि स्थल को लेकर चल रही इस सियासत के बीच सवाल यह उठता है कि आखिर देश में दिवंगत प्रधानमंत्रियों के स्मारक बनाने की प्रक्रिया क्या है और इसे लेकर नियम क्या हैं?

समाधि स्थल किसका बन सकता है

दिल्ली में समाधि स्थल बनाए जाने के लिए कुछ विशिष्ट नियम और प्रक्रियाएं हैं, जो भारत सरकार द्वारा निर्धारित हैं और इनका पालन सुनिश्चित करता है कि केवल विशिष्ट श्रेणी के महान नेताओं और व्यक्तित्वों के लिए ही राष्ट्रीय महत्व का समाधि स्थल बनाया जाएगा। तो ऐसे में ये सवाल उठता है कि इस श्रेणी में किन लोगों को शामिल किया जाता है जिनकी समाधि बनाई जाती है? आपको बता दें कि इस श्रेणी में चार लोग आते हैं। जिसमें 1.भारत के राष्ट्रपति, 2. भारत के प्रधानमंत्री, 3. उप-प्रधानमंत्री, 4. अन्य राष्ट्रीय महत्व के व्यक्तित्व।

कौन देता है समाधि स्थल को मंजूरी 

दिल्ली के राजघाट परिसर और उसके आसपास इन महत्वपूर्ण व्यक्तियों के समाधि स्थल बनाए जाते हैं, क्योंकि यह राष्ट्रीय स्मारक स्थल के रूप में स्थापित है लेकिन राजघाट में स्थान सीमित है जिसके कारण समाधि स्थल का चयन महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए ही किया जाता है। इसके निर्माण के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी है। केंद्र सरकार ही यह फैसला करती है कि दिवंगत नेता का समाधि स्थल राजघाट परिसर में बनाया जाएगा या नहीं।

जानिए क्या है नियम और प्रक्रिया

समाधि स्थल केवल उन नेताओं के लिए बनाए जाते हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और ऐतिहासिक महत्व का योगदान दिया हो। सामान्यतः, केवल उन नेताओं को यह सम्मान मिलता है जिनका योगदान असाधारण और सर्वमान्य हो। राजघाट और उससे जुड़े समाधि स्थलों का प्रशासन राजघाट क्षेत्र समिति के तहत आता है। यह समिति संस्कृति मंत्रालय के जिम्मे है।समाधि स्थल के लिए निर्णय लेने में यह समिति स्थान की उपलब्धता, व्यक्ति के योगदान और मौजूदा नीतियों का मूल्यांकन करती है, फिर उसके बाद संस्कृति मंत्रालय समाधि स्थल निर्माण के प्रस्ताव की समीक्षा करता है और फिर प्रस्ताव भेजता है।

कई मंत्रालयों से गुजरने के बाद मिलती है मंजूरी

इसके बाद समाधि निर्माण की प्रक्रिया केंद्र सरकार की कई मंत्रालयों से होकर गुजरती है, जिसमें संस्कृति मंत्रालय समाधि स्थल के निर्माण और संरक्षण का प्रबंधन करता है। वहीं, आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय इसके लिए भूमि आवंटन और निर्माण योजना में सहयोग करता है और फिर गृह मंत्रालय समाधि स्थल निर्माण के लिए सुरक्षा और राजकीय सम्मान की प्रक्रिया सुनिश्चित करता है। इसके बाद समाधि.निर्माण के लिए भूमि का चयन और मंजूरी दिल्ली विकास प्राधिकरण और राजघाट क्षेत्र समिति के माध्यम से होता है। इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद किसी की समाधि निर्माण को मंजूरी मिलती है।

2013 में नियम में बदल दिया गया था नियम
2013 में राजघाट परिसर में समाधि स्थल बनाने की नीति में बदलाव किया गया था। उस समय यह सुनिश्चित किया गया था कि समाधि स्थलों का निर्माण केवल अत्यंत विशिष्ट और राष्ट्रीय योगदान देने वाले नेताओं के लिए ही किया जाए। इसके पीछे की वजह वहां की जमीन का संतुलित उपयोग और पर्यावरण संरक्षण देना बताया गया था।

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