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उल्लास के साथ मनाया गया रंगों का त्योहार होली

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रिपोर्टर मुन्ना पांडेय,सरगुजा लखनपुर :सदियों पुरानी चली आ रही परम्परा को कायम रखते हुए नगर पंचायत लखनपुर सहित आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में रंगों का त्योहार होली उल्लास के साथ मनाया गया। नगर के बेल बाड़ी में गुरुवार को होलिका दहन की रस्म अदा की गई। नगर वासियों ने टोली बनाकर पारम्परिक फाग गीत गाते हुये होलिका दहन स्थल पहुंचे जहां रिवाज के मुताबिक ग्राम बैंगा द्वारा लोक परम्परानुसार होलिका पूजन किया जाकर एकत्रित लकड़ी में आग लगा कर दहन किया गया। मस्ती में झूमते नाचते गाते गुलाल उड़ाते नगर वासीयों मिलकर होलिका दहन किये।

असत्य पर सत्य के विजय का प्रतीक होलिका दहन मनाया गया। देर रात तक फाग गीत की मेहफिल जमी रही।

दूसरे दिन शुक्रवार को लोग टोली बनाकर किये गये होलिका दहन का धूल उड़ाया ।धुलेंडी के साथ रंगोत्सव होली खेली गई आपसी प्रेम एवं भाईचारे को बरकरार रखते हुए लोगों ने एक दूसरे के उपर रंग गुलाल डाल गले मिलते हुये होली की शुभकामनाएं दी। रमजान का पाक महीना होने तथा खास जुम्मे का दिन होने कारण शांति व्यवस्था बनाए रखने चौंक चौराहों में पुलिस तैनात रही।

पौराणिक मान्यतानुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है।

किसी भी त्योहार के पीछे कोई न कोई धार्मिक कथाएं जुड़ी होती है। यदि बात की जाये होली कि तो प्राचीन सतयुग में हिरण्यकश्यप ने अपने को भगवान होने का दर्जा दे रखा था। उनके शासन काल में ईश्वर का नाम लेना गुनाह माना जाता था क्रूर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र तक को नहीं बक्शा। भगवान के नाम लेने पर बहुत सारी यातनाएं दी। फ़िर भी भक्त प्रहलाद अपने वसुल नहीं तोड़े। भगवान को पूजते रहे। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। भाई हिरण्यकश्यप के आदेश पर अपने भतीजे भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर आग में प्रवेश कर गई। लेकिन प्रभु माया से होलिका आग में जल भस्मीभूत हों गई और प्रहलाद धधकते आग से बाहर आ गये। अपने पुत्र पर ज़ुल्म करने की सारी हदें पार कर दी राक्षस राज ने कुमार प्रहलाद को मारने का हरसंभव प्रयास किया लेकिन नहीं मार सका। कहते हैं “”जाको राखे साइयां मार सके ना कोय।””

अंततः भगवान विष्णु ने अपने भक्त पर कृपा करते हुए नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर उसके काले साम्राज्य का अंत कर दिया।

हिरण्यकश्यप के अंत होन पर पुरवासियो ने जम कर खुशी मनाई थी। एक दूसरे पर रंग-गुलाल डाले रहे होंगे । प्रकृति का ज़र्रा ज़र्रा खुशी मनाया रहा होगा। तब से होली की प्रथा आरंभ हुई होगी इसके अलावा यह भी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने राधा व गोपिकाओ के साथ मिलकर रंगोत्सव होली मनाई थी तब से लेकर रंगों की त्योहार होली मनाये जाने की चलन संसार में शुरू हुई। जो युग युगान्तर से परंपरा बन जनमानस के दिलों में प्रवाहित हो रही है।

फिलहाल नगर लखनपुर तथा आसपास ग्रामीण इलाकों में शांति प्रिय तरीके से फागुन मनाया गया। खबर लिखे जाने तक कोई अप्रिय घटना होने की खबर नहीं रही।

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