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21 या 22 मार्च कब है शीतला सप्तमी का पर्व, जानें तिथि,और महत्व…

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होली के सात दिन बाद शीतला सप्तमी का पर्व मनाया जाता है, इस पर्व को बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है. हर वर्ष यह पर्व चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और पूरा परिवार भी बासी भोजन करता है, जिसको एक दिन पहले ही बनाकर रख लिया जाता है. यह पर्व मुख्यत: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजारत आदि उत्तरी राज्यों में मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शीतला माता की पूजा अर्चना करने से सभी रोग व कष्ट दूर होते हैं और आरोग्य की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं शीतला सप्तमी का पूजा मुहूर्त, विधि और महत्व…

शीतला सप्तमी का महत्व
शीतला माता का व्रत और पूजा अर्चना करने से परिवार के सदस्य सभी तरह के रोगों से दूर रहते हैं और धन-धान्य और सौभाग्य में वृद्धि होती है. इस पर्व को बसौड़ा या बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है बासी भोजन. शीतला माता को इस दिन बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और माता आशीर्वाद के रूप में सभी तरह के तापों का नाश करती हैं और भक्त के तन और मन को शीतल करती हैं. शीतला माता की पूजा करने से चेचक, खसरा, ज्वर आदि रोगों से दूर रखती हैं.

बासी भोजन का लगता है माता को भोग
शीतला सप्तमी के दिन घर में ताजा भोजन नहीं पकाया जाता, माता के भोग के साथ साथ पूरे परिवार के लिए एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख लिया जाता है क्योंकि इस दिन घर का चूल्हा ना जलने की परंपरा है. फिर दूसरे दिन सूर्य निकलने से पहले शीतला माता का पूजन किया जाता है और घर के सभी सदस्य बासी भोजन करते हैं. घर के सदस्यों को ताजी भोजन बसौड़ा के अगले दिन ही मिलता है. हालांकि जिस घर में चेचक से कोई बीमार सदस्य है, उस घर में यह व्रत नहीं करना चाहिए. शीतला सप्तमी का पर्व शीत ऋतु के अंत और ग्रीष्‍मकाल के प्रारंभ होने का भी प्रतीक है.

शीतला सप्तमी पूजा विधि
शीतला सप्तमी से एक दिन पहले यानी षष्ठी तिथि को ही मीठा भात, खाजा, नमक पारे, पकौड़ी, पुए, बेसन चक्की आदि चीजें बनाकर रख ली जाती हैं और होली के दिन की बची हुई 5 गूलरी भी तैयार कर लें. इसके बाद माता की पूजा की थाली भी तैयार करके रख लें. फिर अगले दिन स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करने के बाद शीतला माता के मंदिर पहुंचकर पूजा अर्चना करें. माता को जल, गंध-पुष्प, फल, फूल, चने की दाल, हल्दी, मीठे चावल, कुमकुम, सिंदूर आदि पूजा से संबंधित चीजें अर्पित करें. पूजन के समय ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः मंत्र का जप करते रहें. शीतला माता को जल अर्पित करने के बाद कुछ बूंदे अपने ऊपर भी छिड़कें. ध्यान रहे कि शीतला माता की पूजा में दीपक, धूप व अगरबत्ती ना जलाएं. इसके बाद शीतला माता की कथा सुनें और वट वृक्ष की भी पूजा करें क्योंकि शीतला माता का वास वटवृक्ष में माना जाता है. इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ हो, उस जगह पर भी पूजा अर्चना करें

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