
अलीगढ़: रमजान का पवित्र महीना पूरा होने के बाद दुनिया भर में ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है. यह त्योहार रोजेदारों के लिए अल्लाह की तरफ से एक इनाम होता है. ईद-उल-फितर इस्लाम में एक खास पर्व है, जिसे रमजान के पूरे महीने रोजे रखने के बाद मनाया जाता है. यह दिन खुशी, इबादत और आपसी भाईचारे का प्रतीक माना जाता है. इस दिन मुसलमान अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं कि उन्होंने उन्हें रमजान के रोजे रखने, इबादत करने और अपनी आत्मा को पवित्र करने का अवसर दिया. ईद-उल-फितर की सबसे अहम परंपरा इसकी विशेष नमाज है, जो ईद के दिन सुबह अदा की जाती है.
एकता और भाईचारे का संदेश
मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना इफराहीम हुसैन बताते हैं कि ईद की नमाज हर मुसलमान, खासकर पुरुषों के लिए वाजिब यानि जरूरी मानी जाती है. इसे मस्जिदों या ईदगाह में सामूहिक रूप से पढ़ा जाता है, जिससे समाज में एकता और भाईचारे की भावना को बल मिलता है. इस नमाज़ की खासियत यह है कि यह दो रकात में अदा की जाती है, जिसमें अतिरिक्त तकबीरें होती हैं. यह नमाज अल्लाह की रहमत और बरकत हासिल करने का एक जरिया भी है.
जरूरतमंदों के लिए मदद
मौलाना इफराहीम हुसैन बताते हैं कि ईद-उल-फितर की नमाज अदा करने से पहले सदका-ए-फितर देना जरूरी होता है. यह दान गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता के लिए दिया जाता है, ताकि वे भी इस खुशी के मौके में शामिल हो सकें. इस्लाम में इसका उद्देश्य यह बताया गया है कि कोई भी इंसान ईद की खुशी से छूट न जाए.
प्रेम और सद्भावना का प्रतीक
मौलाना का कहना है कि इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, ईद-उल-फितर केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और समाज में प्रेम व सद्भावना को बढ़ाने का जरिया भी है. यह दिन हमें यह सिखाता है कि हमें अल्लाह की नेमतों पर शुक्र अदा करना चाहिए और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए. ईद की नमाज न केवल एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह मुसलमानों की सामूहिक इबादत और सामाजिक जिम्मेदारी को भी दर्शाती है. इस पावन अवसर पर लोग एक-दूसरे से गले मिलकर खुशी का इजहार करते हैं और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं. यह त्योहार हर मुसलमान के लिए अल्लाह की तरफ से एक बड़ा तोहफा है, जो प्रेम, एकता और करुणा का संदेश देता है.