सेहत
नाक साफ करने की आदत बढ़ा सकती है अल्जाइमर का खतरा: वैज्ञानिकों का दावा
8 फ़रवरी 2024:– सिडनी के वैज्ञानिकों का कहना है कि जो लोग बार-बार अपनी नाक साफ करते हैं, उनमें अल्जाइमर रोग विकसित होने का खतरा ज्यादा हो सकता है। हालांकि अभी तक अल्जाइमर का सही कारण पता नहीं चल पाया है, लेकिन मरीजों के दिमाग में ताऊ नामक प्रोटीन का जमाव पाया गया है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ा होता है हाल के अध्ययनों से पता चला है कि कम से कम कुछ हद तक न्यूरोइन्फ्लेमेशन इसकी वजह हो सकती है। ऑस्ट्रेलिया के वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में अनुमान लगाया है कि “अल्जाइमर में न्यूरोइन्फ्लेमेशन का कारण आंशिक रूप से वायरल, बैक्टीरियल और फंगल रोगजनक हो सकते हैं जो नाक और घ्राण प्रणाली के माध्यम से मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं।”
सेहत
डेंगू के बाद चिकनगुनिया का भी बढ़ रहा खतरा, दो सप्ताह से लगातार बढ़ रहे केस, क्या हैं इस बुखार के लक्षण..
डेंगू के साथ अब देशभर में चिकनगुनिया के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं. दिल्ली, एनसीआर समेत देश के कुछ राज्यों से चिकनगुनिया के मामले रिपोर्ट किए जा रहे हैं. पुणे में सितंबर महीने में ही चिकनगुनिया के 90 से ज्यादा मामले रिपोर्ट किए जा चुके हैं. पुणे के अलावा मुंबई और अन्य शहरों में भी मच्छरों से फैलने वाले बुखार का असर देखा जा रहा है. दिल्ली में भी मच्छर जनित बीमारियों के केस बढ़ रहे हैं. दिल्ली में डेंगू से एक मरीज की मौत हो चुकी है. जबकि दो सप्ताह से चिकनगुनिया के मामलों में भी इजाफा देखा गया है. इसी तरह दिल्ली के आसपास के इलाकों में भी इस बुखार के केस आ रहे हैं.
इस बार डेंगू के साथ-साथ चिकनगुनिया के मामले भी बढ़े हैं, लोग बुखार और जोड़ों के दर्द की शिकायत के साथ अस्पताल आ रहे हैं. हालांकि समय से इलाज मिलने पर बुखार ठीक भी हो रहा है लेकिन लोगों को पूरी एहतियात बरतने की जरूरत है साथ ही मच्छरों से बचने की जरूरत है. अपने घर के आसपास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें और मच्छर न पनपने दें. मच्छरों के काटने से होने वाला ये बुखार डेंगू जैसा ही है इसलिए लोग इसमें और डेंगू में काफी कम भेद कर पाते हैं. लेकिन ब्लड टेस्ट की मदद से इन दोनों बुखारों का पता लगाया जा सकता है. साथ ही बारिशों के समय होने वाले किसी भी तरह के बुखार को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि लक्षण बढ़ने पर मरीज की जान बचाना तक मुश्किल हो जाता है.
डेंगू और चिकनगुनिया में अंतर
1.चिकनगुनिया के मरीजों को जहां जोड़ों का दर्द ज्यादा होता है वहीं डेंगू के सीरियस मामलों में रक्तस्राव और सांस लेने में परेशानी होती है,
2.चिकनगुनिया के मरीजों के चेहरे, हथेलियों, पैरों समेत पूरे शरीर पर दाने आने शुरू हो जाते हैं जबकि डेंगू में दानें सिर्फ चेहरे और अंगों पर ही होते हैं.
3.डेंगू में मरीज का प्लेटलेट्स काउंट कम होने से मरीज को कमजोरी अधिक महसूस होती है जबकि चिकनगुनिया में प्लेटलेट्स काउंट कम नहीं होता.
4. डेंगू का मामला गंभीर होने से व्यक्ति की जान तक जा सकती है लेकिन चिकनगुनिया में इसका प्रतिशत कम होता है.
चिकनगुनिया को कैसे पहचानें
1. चिकनगुनिया भी डेंगू की तरह मच्छर के काटने से होता है. जिसमें सबसे पहले व्यक्ति को बुखार की शिकायत होती है
2.इसमें सबसे पहले जोड़ों और मांसपेशियों में तेज दर्द महसूस होता है.
3.इसके अलावा सिरदर्द, थकान, शरीर पर चकत्ते, मतली और लाल आंखें जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.
4.चिकनगुनिया के लिए आईजीएम चिकनगुनिया टेस्ट किया जाता है.
बचाव के लिए क्या करें
चिकनगुनिया का बुखार भी खतरनाक साबित हो सकता है और काफी लंबे समय तक असर दिखा सकता है इसलिए इससे बचाव के लिए
1.अपने आस-पास पानी न इकट्ठा होने दें.
2.मच्छर को मारने के लिए मिट्टी का तेल और दवा का इस्तेमाल करें.
3.आस-पास साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें.
4. पूरी बांह और ढके हुए कपड़े पहनें.
5.बच्चों को शाम को बाहर खेलने न भेजें.
6. बाहर जाना हो तो मच्छर भगाने वाली क्रीम लगाकर ही बाहर भेजें.
7.बुखार चढ़ने पर ब्लड टेस्ट जरूर करवाएं.
8.कोई भी लक्षण दिखने पर पूरा इलाज करवाएं, कोई लापरवाही न बरतें.
9. शरीर में पानी की कमी न होने दें. रोजाना 2-3 लीटर पानी पीते रहें.
सेहत
भुनी हुई अलसी का कमाल, महिलाओं की सेहत के लिए है वरदान
अलसी के बीज जिन्हें फ्लैक्स सीड्स के नाम से भी जाना जाता है, सेहत के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद माने जाते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक अलसी के बीजों का सेवन कर आप अपनी सेहत को दमदार बना सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अलसी के बीजों को भूनकर आप इन बीजों से मिलने वाले फायदों को बढ़ा भी सकते हैं? एक्सपर्ट्स के मुताबिक भुने हुए अलसी के बीज महिलाओं की सेहत पर ढेर सारे पॉजिटिव असर डाल सकते हैं। आइए ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में जानते हैं।
जोड़ों के दर्द से मिलेगी राहत
आचार्य श्री बालकृष्ण के मुताबिक अलसी के बीजों का सेवन कर जोड़ों के दर्द से काफी हद तक राहत मिल सकती है। बढ़ती उम्र के साथ-साथ महिलाओं की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। भुने हुए अलसी के बीज आपकी बोन हेल्थ को मजबूत बनाए रखने में कारगर साबित हो सकते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक थायरॉइड के इलाज के लिए भी अलसी के बीजों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
नई-नई मां बनी महिलाओं के लिए फायदेमंद
अगर आप नई-नई मां बनी हैं और आपका दूध सही से नहीं बन पा रहा है तो आप डॉक्टर से सलाह लेकर भुने हुए अलसी के बीजों का सेवन कर सकती हैं। भुने हुए अलसी के बीज स्तन के दूध को बढ़ाने में कारगर साबित हो सकते हैं। महिलाओं के हार्मोनल इंबैलेंस के दौरान भी रोस्टेड फ्लैक्स सीड्स का सेवन करना फायदेमंद साबित हो सकता है।
इम्प्रूव करे गट हेल्थ
अगर आपको अक्सर पेट से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो आप भुने हुए अलसी के बीजों को अपनी डाइट का हिस्सा बना सकते हैं। अलसी के बीजों में ओमेगा-3 फैटी एसिड की अच्छी खासी मात्रा पाई जाती है जो आपकी हेयर हेल्थ को काफी हद तक इम्प्रूव कर सकती है।
सेहत
पीसीओएस बीमारी में होने वाला मोटापा कैसे होता है अलग, वजन कम करने में क्यों आती है परेशानी
महिलाओं में पीसीओएस की समस्या बेहद आम है. इसे पीसीओडी यानी कि पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज के नाम से भी जाना जाता है. इस परेशानी में हार्मोंस में गड़बड़ी के चलते महिलाओं के पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं. इसे एक लाइफस्टाइल डिजीज भी माना जाता है क्योंकि ये अक्सर महिलाओं में अनहेल्दी लाइफस्टाइल और गलत खान-पान की आदत के चलते होती है. पीसीओएस में हार्मोन इम्बैलेंस के चलते महिलाओं की ओवरी में कई छोटी छोटी गांठ बन जाती हैं जिसकी वजह से महिलाओं में पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं जिसके चलते महिलाओं में कई शारीरिक बदलाव आने शुरू हो जाते हैं. इन साइड इफेक्ट्स में से सबसे बड़ा साइड इफेक्ट है वजन बढ़ना. इस परेशानी में अक्सर महिलाओं का वजन बेहताशा बढ़ने लगता है और कंट्रोल करने से भी कंट्रोल नहीं होता. ये मोटापा शरीर के एक हिस्से में न होकर पूरे शरीर में बराबर रूप से देखा जा सकता है जिसकी वजह से महिलाएं काफी असहज महसूस करने लगती है.
ये मोटापा कैसे है अलग
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि पीसीओडी में वजन बढ़ने के कई कारण होते हैं जिनमें सबसे बड़ा कारण है हार्मोन का असंतुलन. ये वजहें एक दूसरे को ट्रिगर करती हैं. पीसीओएस में महिलाओं में बनने वाले फीमेल हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन की कमी हो जाती है जो बढ़ते वजन का सबसे बड़ा कारण है. इसके अलावा बैसल मेटाबॉलिक रेट भी कम हो जाती है जिससे खाना ठीक से नहीं पचता और शरीर में कमजोरी और थकान महसूस होने लगती है जिससे व्यक्ति की फिजिकल एक्टिविटी और ज्यादा कम जाती है. ये सभी कारण मिलकर वेट को और ज्यादा बढ़ाते हैं. पीसीओडी के अन्य लक्षणों की बात करें तो उसमें इर्रेगुलर पीरियड्स के अलावा, थकान, कमजोरी, शरीर और चेहरे पर बाल आना, पेल्विक पेन, मूड में बदलाव और वजन बढ़ना शामिल हैं.
पीसीओडी के वजन को कम करना मुश्किल
डॉक्टर बताते हैं कि अन्य वजन के अलावा पीसीओडी की वजह से बढ़े हुए वजन को कम करने में ज्यादा परेशानी आती हैं. चूंकि ये वजन हार्मोंस में गड़बड़ी के कारण बढ़ता है इसलिए वजन कम करने के लिए सबसे पहले हार्मोन को बैलेंस करना जरूरी होता है लेकिन ये इतना भी आसान नहीं होता. इसके लिए हेल्दी लाइफस्टाइल, खान-पान का विशेष ध्यान और समय पर दवाइयां लेनी पड़ती हैं. इससे जब आपके हार्मोंस बैलेंस होते हैं तभी आपका वजन धीरे धीरे कम होना शुरू होता है. इसके लिए आपको रोजाना एक्सरसाइज, हेल्दी डाइट, स्ट्रेस लेवल मेंटेन, समय पर दवा, नींद पूरी करनी होती है. साथ ही आपको स्मोकिंग और शराब का सेवन बंद करना होता है. इन तरीकों को अपनाकर ही आप अपने हार्मोंस को संतुलित कर सकते हैं जिससे आपको वजन कम करने में मदद मिलती है.
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