प्रयागराज : संगम नगरी में 13 जनवरी से महाकुंभ की शुरुआत होनी है. बड़े पैमाने पर इसकी तैयारियां चल रहीं हैं. संतों ने भी डेरा जमाना शुरू कर दिया है. अखाड़ों का शिविर भी बनने लगा है. वहीं आवाहन अखाड़े के शिविर में रुद्राक्ष वाले एक संत लोगों का ध्यान खींच रहे हैं. वह अपने सिर पर 45 किलो वजनी रुद्राक्ष की माला मुकुट के रूप में धारण करते हैं. मुकुट में करीब 2200 के करीब रुद्राक्ष की मालाएं हैं. वह रुद्राक्ष से ही बनी सदरी भी पहनते हैं.
साल 2019 से शुरू किया हठ योग : आस्था के महाकुंभ में शामिल होने के लिए देश-विदेश से साधु और संत संगम नगरी पहुंचने लगे हैं. ऐसे संतों का आगमन भी होने लगा है जो अपने हठयोग या वेशभूषा के कारण आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. ऐसे ही एक संत आवाहन अखाड़े के नागा संन्यासी गीतानंद महाराज भी हैं. उन्होंने बताया कि साल 2019 के अर्धकुम्भ में उन्होंने सनातन धर्म और राष्ट्रधर्म की रक्षा के लिए रुद्राक्ष वाला मुकुट पहनकर हठ योग शुरू किया. अब वह इसे नियमित धारण करते हैं.
45 किलो वजन का है मुकुट : गीतानंद महाराज ने बताया कि वह हरियाणा से आए हैं. सिर पर 22 सौ से ज्यादा रुद्राक्ष की मालाओं वाला मुकुट पहनते हैं. इनका वजन करीब 45 किलो है. इस मुकुट को पहनने के कारण लोग उन्हें रुद्राक्ष वाले बाबा के नाम से जानने लगे हैं. साधु का मतलब साधना करना होता है. इसी की वजह से उन्होंने भगवा चोला धारण किया है.
22 सौ से अधिक मालाओं में 2 लाख से ज्यादा रुद्राक्ष : महाराज ने बताया कि 3 प्रकार के योग होते हैं. इसमें बाल योग, हठयोग, क्रियायोग शामिल हैं. उन्होंने अपने शरीर पर सवा लाख रुद्राक्ष धारण करने का निश्चय किया था. इसके लिए उन्हें 1157 से ज्यादा रुद्राक्ष की माला धारण करनी थी, लेकिन उन्होंने लक्ष्य से लगभग दोगुना रुद्राक्ष धारण किया. उन्होंने 22 सौ से अधिक रुद्राक्ष की माला धारण की है. इनमें दो लाख से ज्यादा रुद्राक्ष हैं.
रुद्राक्ष वाली सदरी भी पहनते हैं : करीब 5 सालों से वह रुद्राक्ष की मालाओं का मुकुट पहन रहे हैं. उन्होंने रुद्राक्ष वाली सदरी भी पहने हुए हैं. रुद्राक्ष के वजनी मुकुट को संभालने के लिए उन्हें शुरू में थोड़ी तकलीफ हुई लेकिन अब यह उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है. बीच-बीच में वह मुकुट को अपने हाथों से सपोर्ट करते रहते हैं.
हठयोग से आराध्य को प्रसन्न करना चाहते हैं : गीतानंद महाराज ने बताया कि वह कठिन और कष्टदायी साधना के जरिए अपने आराध्य को प्रसन्न करना चाहते हैं. हठयोगी अपनी कठिन साधना से ही भगवान को प्राप्त करने के लिए साधना करते हैं. प्रयागराज में 2031 में लगने वाले अर्धकुम्भ मेले तक यह अनवरत चलता रहेगा.