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1954 से देश के महान सपूतों को दिया जा रहा ‘भारत रत्न.. जानिए कैसे हुई शुरुआत और इसका इतिहास

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भारत के इतिहास में कई ऐसे महान व्यक्तित्व हुए हैं.. जिन्होंने विश्व मंच पर भारत का नाम रोशन किया. इन्हीं महान हस्तियों को सम्मानित करने के लिए 2 जनवरी 1954 को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ की शुरुआत की गई. यह सम्मान न केवल उनकी उपलब्धियों का सम्मान है बल्कि यह उनके कार्यों के प्रति देश की कृतज्ञता का प्रतीक भी है. ‘भारत रत्न’ की खास बात यह है कि इसे किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रखा गया. कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा और खेल जैसे क्षेत्रों में असाधारण योगदान देने वालों को यह सम्मान दिया जाता है. समय के साथ इस सम्मान ने कई ऐतिहासिक बदलाव भी देखे.. जैसे मरणोपरांत सम्मान देने का प्रावधान और खेल के क्षेत्र को शामिल करना. आइये आपको भारत रत्न के बारे में सबकुछ बताते हैं..

‘भारत रत्न’ की स्थापना

‘भारत रत्न’ की शुरुआत 2 जनवरी 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई. इस सम्मान का उद्देश्य था उन महान व्यक्तियों को पहचान देना.. जिन्होंने अपने क्षेत्र में असाधारण कार्य कर देश का नाम रोशन किया. शुरुआत में यह सम्मान केवल जीवित व्यक्तियों को दिया जाता था. लेकिन 1955 में इस प्रावधान को बदला गया और मरणोपरांत भी ‘भारत रत्न’ प्रदान करने का नियम जोड़ा गया.

पीपल का पत्ता और सूर्य

‘भारत रत्न’ का प्रतीक एक पीपल के पत्ते के आकार का पदक है.. जिस पर सूर्य की आकृति और ‘भारत रत्न’ शब्द उकेरे गए हैं. इसके साथ किसी भी प्रकार की नकद राशि या अन्य लाभ नहीं दिए जाते. लेकिन यह सम्मान अपने आप में अत्यंत प्रतिष्ठित माना जाता है.

खेल और अन्य क्षेत्रों का समावेश

शुरुआत में ‘भारत रत्न’ केवल कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों तक सीमित था. लेकिन 2013 में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को यह सम्मान दिए जाने के साथ खेल के क्षेत्र में भी इसे प्रदान करने का रास्ता खुल गया. यह बदलाव इस बात का प्रतीक है कि देश हर क्षेत्र में उत्कृष्टता को मान्यता देता है.

1954 में ‘भारत रत्न’ पहली बार तीन दिग्गजों को दिया गया..

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन – शिक्षा और दर्शन में योगदान.
सी.वी. रमन – भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता.
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी – स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और भारत के पहले गवर्नर-जनरल.
इसके बाद यह सम्मान महात्मा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, मदर टेरेसा, लता मंगेशकर, एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महान व्यक्तियों को दिया गया.

मरणोपरांत सम्मान

1955 में मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ देने का प्रावधान जोड़ा गया. इसके तहत नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जयप्रकाश नारायण, और एम.जी. रामचंद्रन जैसी हस्तियों को यह सम्मान दिया गया. ‘भारत रत्न’ के लिए किसी भी नागरिक को नामांकित किया जा सकता है. चयन प्रक्रिया पूरी तरह से राष्ट्रपति के विवेकाधिकार पर आधारित होती है. कोई निश्चित संख्या नहीं है, लेकिन अधिकतम तीन व्यक्तियों को एक वर्ष में यह सम्मान दिया जा सकता है.

सम्मान का महत्व और प्रभाव

‘भारत रत्न’ केवल एक पुरस्कार नहीं है.. यह देश के प्रति समर्पण, मेहनत और योगदान का प्रतीक है. यह सम्मान प्राप्त करने वाले व्यक्ति न केवल प्रेरणा के स्रोत बनते हैं. बल्कि उनके कार्य देश की आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करते हैं.

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