नई दिल्ली : सरयू नदी में भगवान राम की जल समाधि को लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि जब सीता माता अपनी पवित्रता को सिद्ध करने के बाद धरती में समा गई थीं। इससे प्रभु राम बहुत ज्यादा दुखी हो गए थे। इसके बाद उन्होंने भी यमराज की सहमति से सरयू नदी के गुप्तार घाट में जल समाधि ले ली थी।
दूसरी कथा (वाल्मीकि रामायण) के अनुसार, एक बार यमदेव संत का रूप धारण कर अयोध्या नगरी में पहुंचे, तो उन्होंने प्रभु श्री राम से कहा कि ”हमारे बीच कुछ गुप्त चर्चा होगी, जिसकी जानकारी किसी को नहीं होनी चाहिए”
साथ ही वे यह भी कहते हैं कि अगर कोई इसे सुनता है या उस दौरान कक्ष में आता है, तो उसे मृत्यु दंड मिलेगा। इसपर राम जी ने यमराज को वचन दे दिया और लक्ष्मण जी को उस कक्ष के बाहर द्वारपाल बनाकर खड़ा कर दिया।
तभी ऋषि दुर्वासा वहां आते हैं और वे मर्यादा पुरुषोत्तम से मिलने की बात करते हैं। लक्ष्मण जी के बहुत समझाने पर भी वे नहीं मानते हैं और क्रोध में आकर भगवान राम को श्राप देने की बात कहते हैं। उनके इस क्रोध को देखकर लक्ष्मण जी अपने प्राणों की चिंता किए बिना ऋषि दुर्वासा को कक्ष में जाने की अनुमति दे देते हैं।
दुर्वासा ऋषि के जाते ही राम जी और यमराज की वार्ता भंग हो जाती है। साथ ही राम जी का वचन टूट जाता है। वचन टूटने से भगवान राम लक्ष्मण जी को राज्य से निष्कासित कर देते हैं। वहीं, लक्ष्मण जी भी अपने भाई राम का वचन पूरा करने के लिए सरयू नदी में जाकर जल समाधि ले लेते हैं। कहते हैं कि लक्ष्मण जी के इस वियोग प्रभु राम सह नहीं पाते हैं, इसके बाद वे भी जल समाधि लेने का निर्णय कर लेते हैं।