16 जनवरी 2024:- कुंभ का इतिहास काफी पुराना है. इन दिनों उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ की धूम है. हजारों किलोमीटर दूर से लोग इस ऐतिहासिक महाकुंभ का साक्षी बनने आ रहे हैं. लोगों के भीतर इसे लेकर खूब क्रेज है. भारत के इस पौराणिक महाकुंभ में पूरी दुनिया आस्था के रंग में डूबी हुई है. कुंभ में इस साल लगभग 60 करोड़ लोगों के शामिल होने की उम्मीद है. 144 साल में पहली बार होने वाले महाकुंभ में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि इस महाकुंभ में स्नान करने पर टैक्स लगता था? जी हां, आपने सही पढ़ा. आइए जानते हैं इस मामले के बारे में विस्तार से…
ब्रिटिश शासन का यह कैसा टैक्स?
कई दशकों पहले कुंभ मेला एक अलग रूप में होता था. ब्रिटिश शासन के दौरान यह मेला राजस्व का एक सोर्स बन गया था. साथ ही राष्ट्रवाद और क्रांति का आधार भी बन गया था. 19वीं सदी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब प्रयागराज को अपने अधीन किया, तब उन्हें यह जानकारी मिली कि कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित होता है. तब अंग्रेजों ने इसे राजस्व के स्रोत के रूप में देखा. ब्रिटिशों को कुंभ के धार्मिक महत्व में कोई रुचि नहीं थी, वे बस इसे व्यवसाय के रूप में देख रहे थे.
इतना चुकाना होता था टैक्स
अब ब्रिटिश शासन ने इससे राजस्व के बारे में सोचना शुरू किया. फिर उन्होंने हर उस व्यक्ति से 1 रुपया लेना शुरू कर दिया, जो कुंभ के पवित्र संगम में स्नान करने के लिए आते थे. मजबूरन हर श्रद्धालु को यह टैक्स चुकाना पड़ता था. अब आप सोच रहे होंगे कि एक रुपया क्या ही होगा, लेकिन उस समय एक रुपया बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. उस वक्त औसत भारतीय की सैलरी 10 रुपये से कम होती थी. यह ब्रिटिशों का एक तरीका था भारतीयों का शोषण करने का.
क्रांति की शुरुआत
इसे देखते हुए स्थानीय लोगों का आक्रोश बढ़ गया. इस समय कई ईसाई मिशनरी भी प्रयागराज आ रहे थे और हिंदू श्रद्धालुओं को धर्मांतरण के लिए प्रेरित कर रहे थे. इससे स्थानीय लोग और भी नाराज हो गए थे. साल 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रयागवालों ने क्रांतिकारियों का समर्थन किया था. हालांकि वे खुद युद्ध में भाग नहीं ले पाए थे. इस प्रकार कुंभ मेला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गया था.
महात्मा गांधी की एंट्री
देखते-देखते कुंभ मेला राष्ट्रीय आंदोलन का एक बड़ा केंद्र बन गया था. साल 1918 में महात्मा गांधी ने कुंभ मेला में आकर गंगा में स्नान किया था. इससे ब्रिटिश प्रशासन परेशान हो गया था. उन्होंने गांधीजी पर नजर रखने के लिए खुफिया रिपोर्ट तैयार की थी. साल 1942 के कुंभ मेला में ब्रिटिशों ने श्रद्धालुओं पर पाबंदी लगा दी थी. ब्रिटिशों का कहना था कि यह जापान के हमले से बचने के लिए किया गया था. कई इतिहासकार मानते हैं कि यह कदम भारत छोड़ो आंदोलन की बढ़ती ताकत को देखते हुए लिया गया था.