नई दिल्ली : आपने क्या इस बात पर ध्यान दिया है कि हाल के चुनावों में सभी राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए बढ़-चढ़ कर घोषणाएं कर रहे हैं। सिलाई मशीन से लेकर टैबलेट, लैपटॉप और स्कूटी तक देने के वादे महिलाओं से किए जाते हैं। अब महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजनाएं शुरू करने की होड़ है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
पिछले दशक में देश में 14.4 करोड़ मतदाता बढ़े
चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं, पिछले दशक में देश में लगभग 14.4 करोड़ मतदाता बढ़े। 2014 में कुल 83.4 करोड़ मतदाता थे जो 2024 में बढ़कर 97.8 करोड़ हो गए। इसमें महिला मतदाता पुरुष मतदाताओं के साथ तेजी से आगे बढ़ रही हैं। वर्तमान में, प्रत्येक 100 पुरुष मतदाताओं पर 95 महिला मतदाता हैं।
मतदाताओं की संख्या बढ़ने से मतदान केंद्रों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान डाक मतपत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जबकि ‘नोटा’ वोटों में कमी आती दिख रही है।
लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पहली लोकसभा में 5% से बढ़कर मौजूदा लोकसभा में 14% हो गया है, जो 2019 की तुलना में थोड़ा कम है, जब 78 महिलाएं निर्वाचित हुई थीं। कुल महिला उम्मीदवारों में से चुनी गई महिला उम्मीदवारों का प्रतिशत 9% है, जो 2019 के चुनाव से थोड़ा कम है, लेकिन 2014 के चुनाव के बराबर है।
आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा जैसे राज्यों में पिछले 10 वर्षों के दौरान महिला मतदान अनुपात में वृद्धि देखी गई है। जबकि उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, गुजरात, हरियाणा में महिलाओं के मतदान अनुपात में गिरावट आई है।
महिला केंद्रित योजनाओं से बढ़ रही महिलाओं की भागीदारी: एसबीआई रिसर्च
देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में कहा है कि महिला मतदाताओं की संख्या में यह वृद्धि मुख्य रूप से महिलाओं पर केंद्रित योजनाओं जैसे आय हस्तांतरण पहल, साक्षरता, रोजगार, घर के स्वामित्व, स्वच्छता, बिजली की उपलब्धता और पेयजल में सुधार जैसे कारणों से हुई है।
रिपोर्ट में महिला मतदाताओं की संख्या बढ़ने के अलग-अलग कारकों का विश्लेषण कर बताया गया है कि बेहतर साक्षरता दर के कारण लगभग 45 लाख नई महिला मतदाता जुड़ीं, वहीं मुद्रा योजना और रोजगार की अन्य पहल ने लगभग 36 लाख महिला मतदाताओं की भागीदारी में वृद्धि की, प्रधानमंत्री आवास योजना तहत घर के स्वामित्व ने लगभग 20 लाख महिला मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने में मदद की। वहीं, स्वच्छता ने 21 लाख महिला मतदाताओं को जोड़ने में भूमिका निभाई।
एससी/एसटी श्रेणी में भी मतदान में उल्लेखनीय वृद्धि
एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष के मुताबिक, हम देखा है कि 2019 की तुलना में 2024 में 1.8 करोड़ की अधिक महिलाओं ने मतदान किया। इसका मुख्य कारण महिला केंद्रित योजनाओं का कार्यान्वयन है। जिन 19 राज्यों में महिला केंद्रित योजनाएं चल रही थीं, वहां 2024 के चुनाव में 1.5 करोड़ महिला मतदाताएं बढ़ी, वहीं जिन राज्यों में 2019 के बाद ऐसी कोई योजना शुरू नहीं की गई, वहां सिर्फ 30 लाख की बढ़ोतरी हुई।
घोष के मुताबिक, मतदान अनुपात में एससी/एसटी श्रेणी में भी विशेष रूप से महिलाओं के मामले में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो फिर से पिरामिड के निचले हिस्से में रहने वालों के सशक्तीकरण का संकेत है।
त्रिपुरा सरकार में सचिव सोनल गोयल कहती हैं, वैसे तो हर चुनाव में मतदान का प्रतिशत घटता-बढ़ता रहता है, लेकिन महिलाओं का मतदान प्रतिशत कुल मिलाकर निरंतर बढ़ा ही है। 1962 के लोकसभा चुनावों में मात्र 46.6% महिला मतदाताओं ने वोट डाले थे, लेकिन 2019 के आम चुनाव में 66.9% प्रतिशत महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। 1962 में पुरुषों और महिलाओं के मतदान प्रतिशत में 16.7% का अंतर था, लेकिन पिछले आम चुनाव में यह घटकर सिर्फ 0.4% रह गया।
महिला मतदाता जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं
गोयल कहती हैं, आज महिला मतदाता किसी भी पार्टी की जीत-हार तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों और सरकार की नीतियों में महिलाओं को अहम स्थान दिया जाने लगा है। महिला वोटरों की बढ़ती भागीदारी भारतीय लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक बदलाव है। यह राजनीतिक दलों को महिलाओं के मुद्दों को गंभीरता से लेने पर मजबूर करता है।
एडीआर की प्रोग्राम मैनेजर नंदिनी राज के मुताबिक, महिलाएं अब सशक्त हो रही हैं और उन्हें समझ में आ रहा है कि उनकी आवाज का क्या महत्व है। राजनीतिक दल चुनावी कैंपेन में महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए काफी स्कीम लेकर आते हैं। ये एक तरीके का संकेत भी है कि राजनीतिक दल भी महिला शक्ति को पहचानने लगे हैं।
नंदिनी कहती हैं, महिला अपने परिवार की धुरी होती है। जब एक औरत मताधिकार को इतनी गंभीरता से लेती है तो उसका असर उनके बच्चों पर भी पड़ता है। जब वह बड़े होंगे तो वह भी मतदान को गंभीरता से लेंगे। यह किसी भी लोकतंत्र के लिए बहुत ही सकारात्मक बात है।
भारत में आजादी के बाद से महिलाओं को वोटिंग का अधिकार: गोयल
गोयल ने कहा, हमें इस बात पर गर्व है कि भारत जिस दिन आजाद हुआ, उसी दिन से महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिल गया था। अमेरिका को अपनी महिलाओं को वोट देने का अधिकार देने में 144 साल लग गए थे। ब्रिटेन को भी एक सदी का समय लग गया। कुछ ऐसा ही न्यूजीलैंड में भी था, जहां 13 साल के संघर्ष के बाद महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिल पाया था।
नंदिनी ने कहा कि महिला मतदताओं के साथ-साथ महिला प्रत्याशियों की भागीदारी बढ़ाने की भी बहुत जरूरत है। एडीआर के एक एनालिसिस में हमने देखा कि कुल प्रत्याशियों में से महिला प्रत्याशियों की संख्या मात्र 10 फीसदी है। भारतीय राजनीति में महिलाओं को सिर्फ वोटर के तौर पर नहीं, बल्कि एक राजनेता के रूप में भी मौका मिलना चाहिए।
भारत में प्रति सीट सबसे अधिक जनसंख्या
प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत में लोकसभा की प्रति सीट पर सबसे अधिक जनसंख्या है। यह 25 लाख से अधिक है। जबकि विश्व की ज्यादातर प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में यह संख्या एक लाख से 7.3 लाख के बीच है। हालांकि, निचले सदन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत विकसित देशों में काफी पीछे नजर आता है।